आये दिन हो रही हैं दुर्घटनाएं, मर रही हैं गायें
आये दिन हो रही हैं दुर्घटनाएं, मर रही हैं गायें Syed Dabeer Hussain - RE
मध्य प्रदेश

शिवपुरी: आये दिन हो रही हैं दुर्घटनाएं, मर रही हैं गायें

Abhay Kocheta

राज एक्सप्रेस। हमने और आपने पूर्व समय में (भैया गैल गैल आना बैल से बचकर आना..) इस कविता को मध्यप्रदेश पाठय पुस्तक निगम की पुस्तकों में पढ़ा था। आज यह कविता हमें तब याद आती है जब हमारे क्षेत्र में 'गौधन' मवेशी आवारा एवं बदतर स्थिति में शहर, ग्राम व हाइवे सडकों पर मारे मारे फिर रहे हैं। दूध ना देने की स्थिति में घर से निकाल दी गई गौमाता का मालिक अब वह घर भी नहीं रहा जिस परिवार का प्रत्येक सदस्य उसी गाय का दूध खाकर बडा हुआ।

स्वार्थी भावनाओं के कारण आज पशुपालकों की ये हालत

स्वार्थी मनुष्य इस दुनियां में हैें जो अपना स्वार्थ निकलने के बाद गौधन को सड़क पर मरने के लिये छोड़ देते हैं। इन्हीं स्वार्थी भावनाओं के चलते आज गौधन मवेशियों की हालत यह है कि, चाहे हाइवे की सड़कें हो चाहे शहर व ग्राम की सड़कें इन दिनों हमें बड़े झुंडों के रूप में गौधन यहां से बहां खदेडा जाता हुआ देखा जा रहा है। हालात यह हैं कि, इनकी अधिकतम मात्रा को देखते हुये प्रशासन भी इन्हें सुव्यवस्थित करने में हाथ कडे करना दिखाई देने लगा है। परन्तु अभी तक मात्र एक कार्यवाही शिवपुरी कलेक्टर महोदया के द्वारा 29 गौशालाओं के स्वीकृत करने की सामने आई है। प्रशासन द्वारा इस दिशा में केाई ठोस कदम ना उठाया जाना आखिर क्या सिद्ध करता है। यह समझ से परे है।

क्या प्रशासन के पास इस समस्या का कोई हल नहीं है?

हालाकि यह समस्या लगभग पूरे प्रदेश की सडकों पर देखने को मिल रही है। परन्तु जिस क्षेत्र में जैसी समस्या दिखती है वहां के प्रशासन से ही आमजन गुहार लगाता है। अथवा क्या प्रशासन किसी बडे हादसे का इंतजार कर रहा है? सडकों पर आवारा डोलते, मरते, गौधन व दुर्घटनाग्रस्त होते वाहन व लोगों की समस्या से निजात दिलाने के लिये जिला प्रशासन को गंभीरता से लेते हुये योजनावद्ध तरीके से मवेशियों की व्यवस्थित करने की आवश्यक्ता महसूस होती है। वहीं इन आवारा मवेशियों के मालिकों द्वारा स्वार्थ निकलने के बाद इन्हें आवारा छोड देने का दण्डनीय कृत्य करने पर इनके मालिकों का पता लगाकर उनके खिलाफ कार्यवाही करने की भी आवश्यक्ता महसूस जान पडती है।

आज के दौर में कुत्ता घर में बंधा है व गौमाता बाहर छोड़ दी जाती है

कलियुग के इस दौर में जब एक ओर तो हम गाय को माता कहकर पूजते हैं। गौमाता में छत्तीस कोट के देवताओं का वास मानते हैं। वहीं दूसरी ओर कुछ स्वार्थी लोग इन्हीं गौमाता को बिना काम का मानकर आवारा पशु के रूप में सड़कों पर मरने के लिये छोड़ देते हैं। जबकि कुत्ते को बांधकर रखा जाता है। आज से कुछ वर्ष पूर्व हमारे पूर्वज घरों में गाय को गौशाला में बांधकर रखते थे। भले ही वह दूध ना दे फिर भी गायमाता की सेवा, भोजन का विशेष ध्यान रखा जाता था और कुत्तों को घर के वाहर रखकर उन्हें आवारा कुत्ता कहकर दुत्कारा जाता था।

आये दिन हो रही हैं दुर्घटनाएं, मर रही हैं गायें

परन्तु आज के दौर में इसके ठीक विपरीत हो चला है कि, कुछ लोग अपने घरों में कुत्ते को तो बांधकर रखते हैं। कुत्ते को सुबह जल्दी उठकर उसे शौच कराने व घुमाने ले जाते हैं। कुत्ते की डाइट का विशेष ख्याल रखा जाता है। बीमार पड़ने पर उसका विशेषज्ञ डाक्टर से इलाज कराया जाता है। दूध ना देने वाली गाय को बिना काम का समझा जाता है। बीमार पडने पर उस पर पैसा खर्च करने में परेशानी होती है। घरों में गौशालायें तो अब नाम मात्र ही रह गईं है। गौधन की सेवा करने का समय नहीं रहता है। अर्थात यूं कहा जा सकता है कि कलियुग के प्रभाव के चलते कुछ मनुष्यों पर इसका असर स्पष्ट देखने को मिल रहा है जिससे वे कुत्ते को गौधन एवं इसके बिपरीत गौधन को आवारा कुत्ते की तरह मरने के लिये छोड देने में जरा सा भी लिहाज नहीं करते हैं। एैसे मनुष्य वास्तविक रूप से दण्ड के भागीदार नहीं तो और क्या है?

पिछोर की टेकरी सरकार गौशाला नि:स्वार्थ भाव से सेवा में तत्पर

एक तरफ तो शिवपुरी जिले में एैसी कई पंजीकृत गौशालायें हैं जो महज कागजों में चलकर शासन से प्रदत्त राशि को हडपते हुये कागजी खर्च दिखाकर महज खानापूर्ति व गोरखधंधे में लगी हुई हैं। वहीं दूसरी ओर पिछोर की टेकरी सरकार गौशाला का शासकीय पंजीयन ना होने के बावजूद भी इसे पिछोर के आमजन में से बनाई गई समिति द्वारा, समाज सेवियों, व जनमानस के सहयोग से अत्यंत ही व्यवस्थित तरीके से चलाया जा रहा है। समिति अध्यक्ष शैलेन्द्र पाराशर पत्रकार से प्राप्त जानकारी के अनुसार टेकरी सरकार मुण्डा पहाड की तलहटी में, मोती सागर तालाब के सामने स्थापित पिछोर की इस गौशाला में बीमार व असहाय आवारा गौधन को यहां लाया जाता है।

सड़कों पर आवारा मवेशियों की भरमार

सड़कों पर छोड़ी गई जो गौधन दुर्घटना का शिकार हो जाता है उनकी सूचना यदि हम तक पहुंच जाती है तो उन्हें भी हम वाहन में लादकर गौशाला तक लाते हैं जिनका इलाज गौशाला में ही करवाया जाता है। इस कार्य में पिछोर नगर के वहुत से सेवाभावी युवकों, समाज सेवियों, कुछ जनप्रतिनिधियों, पशु चिकित्सालय के चिकित्सकों, व प्रवुद्धजनों का सहयोग हमें प्राप्त होता है। गौधन की सेवा को ही ईश्वर की पूजा मानकर यहां लोग अपना श्रम, धन व समय दान करते हैं। जिससे यह गौशाला अब तक भली भांति संचालित होकर विस्तार रूप लेती जा रही है। जिसके शासकीय स्थाई पंजीयन की मांग भी जिला प्रशासन से की गई है।

क्या कहते हैं आमजन

शहर पर वाहनों से ज्यादा जानवर देखकर प्राथमिक शाला में पढ़ा याद आता है कि -भैया गैल गैल आना, बेल से बचकर आना- यह पंक्तियां उस जमाने में तब खेत की बात थी लेकिन इस जमाने में सडकों पर डोल रहे गौधन के चलते अब यह शहर की बात हो गई है। शहर की सडकों व चौराहों की स्थिति भी इस समस्या से ग्रसित है। दो पहिया वाहन से शहर में बच्चों को बिठाकर निकलना बहुत मुश्किल लगता है क्योंकि कब कहां कौन मवेशी दौडकर वाहन के सामने आ जाये इसका भय हमेशा बना रहता है। दुर्घटनायें भी देखने को मिल रही हैं। शहर की सडकें हों या गांव की सडके अथवा हाइवे इन दिनों जहां देखो वहां इधर से उधर डोलते मवेशियों को देखा जा रहा है। जिससे जहां मवेशी बडी संख्या में मर रहे हैं व अपाहिज हो रहे हैं वहीं दूसरी ओर वाहन व जनमानस भी दुर्घनाओं का शिकार हो रहे हैं। प्रशासन को इस ओर अधिक ध्यान देने की जरूरत है। यह वहुत गंभीर समस्या है।

प्रशासन को कागजी गौशालाओं पर कसना होगा सिकंजा

सड़कों पर आवारा हालत में डोलकर आये दिन दुर्घटना की घटनाओं की बलि चढ रहे गौधन एवं उनसे टकराकर क्षतिग्रस्त हो रहे वाहन व यात्रीगण की समस्या से निजात पाने के लिये प्रशासन को गंभीरता से विचार करते हुये केवल कागजों में चल रही गौशालाओं पर सिकंजा कसते हुये उन्हें जमीनी स्तर पर कार्य करने के लिये प्रेरित करना होगा। यदि वास्तविकता में इन गौशालाओं द्वारा पिछोर की गौशाला की तरह गौधन सेवा को अंजाम दिया जाता है। तो यह कह पाना कोई अतिशयोक्ति ना होगी कि सडकों पर आवारा हालत में विचरण कर रहे गौधन की सुरक्षा हो सकेगी और दुर्घटनाओं पर भी अंकुश लग सकेगा।

सामाजिक संगठनों व राजनेताओं केा देना होगा ध्यान

कोई भी समस्या पहले छोटी होती है परन्तु धीरे धीरे वह बडा रूप लेती चली जाती है। प्रदेश की हाइवे सडकों पर, नगर , ग्राम की सडकों चौराहों पर आवारा पशुओं के विचरण से होने वाली दुर्घटनाओं की समस्या पहले छोटी थी परन्तु अब तो यह समस्या विकराल रूप लेती चली जा रही है। यदि कोई भी राजनीतिज्ञ व्यक्ति, समाजसेवी प्रशासकीय अधिकारी, अथवा आमजन अपने वाहन से यात्रा करता है तो सडकों पर आवारा मवेशियों का नजारा स्वत: ही सामने आ जाता होगा।

जो उनकी गाड़ी को अवरोधित करते हुये ध्यान आकृष्ट कराता होगा। परन्तु अन्य कार्यों में व्यवस्त होने के कारण केाई इन आवारा मवेशियों के सडक पर इधर से उधर खदेडे जाने पर विचार नहीं करता है। लेकिन जब कोई मवेशी सडक पर मरा होकर दुर्गन्ध छोडता है तब एवं जब दुर्घटना घटित हो जाती है तब यह ख्याल आता है कि हां मवेशियों के सडक पर खडे होने से गौधन व जनधन दौनों केा नुकशान हो रहा है। तो फिर क्यों ना इस समस्या को गंभीरता से लेते हुये प्रदेश सरकार से इस संदर्भ में कार्यवाही करने की आजमाइश की जाये। तभी कोई बडा हल निकलना संभव है।

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