डॉक्टर पिता जीवित थे, ग्रेटर कैलाश अस्पताल ने नहीं किया भर्ती
डॉक्टर पिता जीवित थे, ग्रेटर कैलाश अस्पताल ने नहीं किया भर्ती Raj Express
मध्य प्रदेश

इंदौर : डॉक्टर पिता जीवित थे, ग्रेटर कैलाश अस्पताल ने नहीं किया भर्ती

Author : Mumtaz Khan

इंदौर, मध्य प्रदेश। एमवायएच के सेवानिवृत सीएमओ डॉ. जीएस मित्तल की 8 सितंबर को मौत हो गई थी। इस मामले में उनके पुत्र प्रतीक मित्तल ने सोमवार को ग्रेटर कैलाश प्रबंधन पर इलाज में लापरवाही का आरोप लगाते हुए एक लिखित शिकायत पलासिया थाने में की है। इसमें आरोप लगाया गया है कि जब उनका पुत्र और कुछ राहगीर डॉ. मित्तल को अस्पताल लेकर पहुंचे थे, तब वह जीवित थे, लेकिन अस्पताल में आईसीयू में जगह खाली नहीं है, यह कहते हुए उन्हें भर्ती करने से इनकार कर दिया गया था।

बख्तावर राम नगर निवासी बेटे प्रतीक मित्तल ने अपनी शिकायत में लिखा है कि 8 सितंबर को दोपहर करीब 2 बजे पिता एमवायएच में सीएमओ रहे डॉ. जीएस मित्तल का अचानक निधन हो गया था। वे स्कूटर चला रहे थे, तभी ह्रदय गति रुकने से उनका निधन हो गया। डॉ. मित्तल एक ऑपरेशन में कैंसर सर्जन डॉ. अरुण अग्रवाल को असिस्ट करने के लिए स्कूटर से गोकुलदास अस्पताल जा रहे थे, तभी साकेत चौराहे पर अचानक स्कूटर से गिर गए।

अस्पताल संचालक के अच्छे मित्र थे डॉ. मित्तल :

प्रतीक ने आगे लिखा है कि इस पर मैं अपने कजिन गौरव बंसल और अन्य राहगीर अमान खान के साथ उन्हें पास स्थित ग्रेटर कैलाश अस्पताल लेकर पहुंचा था। उस समय पिता दर्द से कराह रहे थे, उन्हें सांस लेने में तकलीफ हो रही थी। हॉस्पिटल पहुंचे पर उन्हें स्ट्रेचर पर इमरजेंसी रूम में ले गए, लेकिन वहां पर ड्यूटी डॉ. अखिलेश और दो महिला स्टाफ ने कहा कि बेड खाली नहीं है। मैंने डॉ. अखिलेश को निवेदन किया कि इमरजेंसी है, लेकिन वो किसी भी तरह से राजी नहीं हो रहे थे। इस दौरान मेरे पिता (डॉ. मित्तल) ने डॉ. मित्तल को इशारा कर बंडी-बंडी कहा। लेकिन उनका फोन लॉक था, जो कोशिश के बाद भी नहीं खुला। इस पर मैंने डॉ. अखिलेश को कहा कि अस्पताल संचालक डॉ. बंडी पिता के मित्र हैं और लंबे समय साथ काम किया है। फिर भी मेरी बात नहीं सुनी गई, तो तेज आवाज में चीखा, तो स्टाफ ने डॉ. बंडी को कॉल किया। उन्होंने कहा कि मैं आ रहा हूं। करीब 15 मिनट बाद वे वहां आए। इस दौरान किसी भी डॉक्टर ने पिताजी का इलाज शुरू नहीं किया। इसके बाद डॉ. बंडी आए और चेक कर कहा कि यह तो ब्राड डेड हैं। इस पर मैंने उन्हें कहा कि चेक करके रिवाइव करने की कोशिश करिए। क्योंकि वे तो जीवित थे और उन्होंने ही आपको कॉल करने को कहा था। इस पर वे बोले कि मैं डॉक्टर हूं, तुमसे ज्यादा जानता हूं।

मरा हुआ ही अस्पताल लेकर आए :

इसी दौरान मेरे पिता के दोस्त डॉ. अरुण अग्रवाल मौके पर पहुंचे और पिता के बारे में पूछा। इस पर डॉ. बंडी ने बताया कि उन्हें मरा हुआ ही अस्पताल लेकर आए थे। इस पर उन्होंने बहस करते हुए कहा कि वे तो गंभीर हालत में आए थे। आपके स्टाफ ने तो कोशिश तक नहीं की। इस पर डॉक्टर ने बॉडी कहीं और लेकर जाने को कहा। इस पर डॉक्टर अग्रवाल ने कहा कि बॉडी हैंडओवर करने का लेटर तो दो, इस पर वे बोले कि डेथ सर्टिफिकेट चाहिए तो बॉडी एमवाय अस्पताल लेकर जाओ। इस पर हम बॉडी को एमवाय लेकर पहुंचे। जहां उनका पोस्टमार्टम किया गया। प्रतीक मित्तल का कहना है कि शहर के एक प्रसिद्ध डॉक्टर के साथ अस्पताल प्रबंधन द्वारा इस तरह से व्यवहार किया जा सकता है, तो आम आदमी के साथ कैसा व्यवहार होता होगा। अगर मेरे पिता को शुरू के गोल्डन समय में उपचार मिल जाता, तो वो बच सकते थे। उल्लेखनीय है कि डॉ. मित्तल ने करीब 30 वर्षों तक एमवायएच में बतौर केजुल्टी मेडिकल ऑफिसर (सीएमओ) अपनी सेवाएं दी थीं।

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