राज एक्सप्रेस। मध्य प्रदेश में कोई ढाई दशक पहले बंद हुए दिवाली बोनस को लेकर एक बार फिर कर्मचारियों की पीड़ा सामने आई है। सेवकों का आरोप है कि उन्हें ब्यूरोक्रेट की तरह कोई सुविधाएं नहीं है। बोनस राशि ही त्यौहार मनाने का सशक्त माध्यम था, जो एक सोची समझी रणनीति के तहत बंद किया गया। सरकार के समक्ष लगातार पक्ष रो गये, लेकिन कोई ध्यान नहीं दिया गया।
25 साल से नहीं मिली दिवाली बोनस की खुशी
अभी तक करोड़ों रूपये राजकोष में ही हजम हो गये हैं। जबकि विधानसभा चुनाव के समय मौजूदा सरकार के संगठन ने कहा था कि इस सुविधा को पुन: प्रारंभ किया जाएगा। मप्र में शासकीय सेवकों की मानें तो करीब 25 वर्ष पूर्व 1995 में केन्द्र के समान राज्य में भी कर्मचारियों को बोनस देने की प्रथा प्रारम्भ की गई थी। तृतीय एवं चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को यह लाभ देने का कदम उठाया गया था। वर्ष 1996 तक तो बोनस मिलता रहा। इसके उपरांत एरियर्स को अचानक सरकार ने बंद करने का निर्णय ले लिया।
वर्ष 1996 से अब तक की स्थिति को देखे, तो बोनस के नाम पर कर्मचारियों को फूटी कौंड़ी नहीं मिल पाई है। कर्मचारियों की संख्या के अनुपात में प्रत्येक वर्ष सरकार पर 100 करोड़ का भार रहता था। प्रारम्भिक दौर से अभी तक कर्मचारियों को 16 सौ करोड़ का नुकसान हो चुका है। 80-90 के दशक में मप्र तृतीय वर्ग, लघु वेतन और राजपत्रित जैसे गिने चुने संगठन ही हुआ करते थे। इन्हीं संगठनों के नेताओं की पहल पर बोनस देने का क्रम शुरू हुआ था। तब सबसे पहले कर्मचारियों को वर्ष में 14 दिन के वेतन बराबर बोनस की शुरूआत की गई थी। इसके उपरांत इसे बढ़ाकर 19 दिन फिर 21 दिन कर दिया गया। मसौदा भी बना था कि दिवाली पर्व पर ही कर्मचारियों को बोनस दिया जाएगा। बोनस से कर्मचारी अब पूरी तरह से हाथ धो बैठे हैं।
2716 करोड़ का हो चुका है नुकसान-
कर्मचारियों की मानें तो महंगाई भते में भी सरकार ने कर्मचारियों को बड़ी आर्थिक क्षति पहुंचाई है। उनके बकाया एरियर्स की राशि नहीं दी जा रही है। राज्य सरकार ने कर्मचारियों के 77 माह के एरियर्स की राशि दबा री है। आरोप है कि इसके 2716 करोड़ रूपये सरकार ने राजकोष में हजम कर रखे हैं। कर्मचारी प्रतिवर्ष दिवाली के समय मांग करते रहे हैं कि, अगर दिवाली पर्व पर उन्हें यह राशि मिल जाती है तो वह इस खर्चीले त्यौहार को उत्साह से मना सकते हैं, लेकिन कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है।
ब्यूरोक्रेट को मिल रहे सभी लाभ-
कर्मचारियों का आरोप है कि, एक ओर जहां निचले संवर्गो को सताया जा रहा है। जबकि ब्यूरोक्रेट सभी सुविधाएं ले रहे हैं। इनके भत्ते में कभी कोई कटौती नहीं की गई है। दूसरी ओर कर्मचारियों को मिलने वाले परंपरागत प्रासंगिक लाभों पर कैंची चलाई जा रही है। मौजूदा सरकार ने ही बोला था कि शासकीय सेवकों की बंद सभी सुविधाओं को पुन: प्रारंभ किया जाएगा, लेकिन अभी तक कोई हलचल शासन में नहीं दिख रही है।
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