क्या एमपी में भी सुनाई देगी गुजरात की धमक!
क्या एमपी में भी सुनाई देगी गुजरात की धमक! Raj Express
मध्य प्रदेश

क्या एमपी में भी सुनाई देगी गुजरात की धमक!

राज एक्सप्रेस

मप्र में अगले वर्ष इस समय तक सरकार आकार ले चुकी होगी। गुजरात के चुनाव परिणाम के बाद भाजपा-कांग्रेस की नए सिरे से बनेगी रणनीति। वर्ष 2018 में दशमलव 11 फीसदी कम वोट लेकर भी कांग्रेस ने भाजपा को कर दिया था सत्ता से बेदखल।

भोपाल, मध्यप्रदेश। मध्यप्रदेश के पड़ोसी राज्य गुजरात में विधानसभा चुनाव के परिणाम आ गए हैं। इस परिणाम का असर मप्र की राजनीति पर नहीं हो, ऐसा नहीं हो सकता। आखिर पड़ोसी राज्य की राजनीति का पूरी तरह भले ही न हो लेकिन आंशिक या फिर कुछ हद तक प्रभाव जरूर पड़ता है। जाहिर कि मप्र पर भी पड़ेगा। यह इसलिए भी कि वर्ष 2023 में मप्र में होने वाला विधानसभा चुनाव कई मायनों में बेहद महत्वपूर्ण होगा। इसके लिए वर्ष 2018 के चुनाव के फ्लेशबैक में भी जाना होगा, जब मप्र में सत्ताधारी दल भाजपा मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस से दशमलव 11 फीसदी ज्यादा वोट लेकर भी 15 वर्ष की सत्ता से बेदखल हो गई थी। यह और बात है कि वर्ष 2020 में भाजपा ने कांगे्रस की टूट का फायदा उठाते हुए फिर सरकार बना ली थी।

गुजरात विधानसभा चुनाव में भाजपा ने ऐतिहासिक प्रदर्शन किया और लगभग एकतरफा मुकाबले में कांग्रेस को चारों खाने चित कर दिया। इस तरह के परिणाम की उम्मीद संभवत: कांग्रेस के रणनीतिकारों को भी नहीं थी। भाजपा ने यहां बहुमत के मामले में ऑल टाइम बेस्ट परफार्मेंस किया है और उसकी सीटें बढ़कर 156 तक जा पहुंची है। गुजरात में अब तक का सबसे बेहतर परफार्मेंस 1985 में कांग्रेस ने किया था, जब उसने माधव सिंह सोलंकी के नेतृत्व में 149 सीटें जीतने का रिकॉर्ड बनाया था। यह रिकार्ड पिछले 30 वर्ष से भी अधिक समय से भाजपा के गढ़ के रूप में तब्दील हो चुके गुजरात में टूट नहीं सका था, लेकिन इस बार यह कारनामा भी हो गया। तो फिर उसके पीछे फेक्टर को समझना होगा, जिससे मप्र के चुनावी परिदृश्य को लेकर अब दोनों ही दलों भाजपा और कांग्रेस को नए सिरे से रणनीति बनाना होगी।

आप फेक्टर मप्र में भी काम करेगा :

गुजरात में आम आदमी पार्टी ने पूरी ताकत से विधानसभा चुनाव लड़ा। इसका परिणाम यह हुआ कि आप भाजपा के किले में तो सेंध नहीं लगा सकी, लेकिन विपक्षी कांग्रेस की कमर तोडऩे में कामयाब रही। गुजरात में कांग्रेस का वोट प्रतिशत आप के प्रभाव के कारण 41.4 से घटकर 27.3 फीसदी तक आ सिमटा। आप को 13 फीसटी वोट के साथ पांच सीटें भी मिलीं। जाहिर है कि मप्र में अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव में भी आप मप्र में पूरी ताकत से जोर आजमाइश करेगी। दोनों ही बड़े दल इस बात को भलीभांति जानते हैं। चार माह पहले हुए नगरीय निकाय चुनाव में आप ने मप्र में उपस्थिति दर्ज कराकर इस बात के संकेत दे दिए हैं। लिहाजा यह भी तय है कि मप्र की कम से कम 50 सीटें ऐसी हो सकती हैं, जिसमें आप हार-जीत में निर्णायक भूमिका निभा सकती है। अब इसका नफा- नुकसान किसे होगा, यह देखना दिलचस्प होगा। वैसे पिछले विधानसभा चुनाव में भी आप उम्मीदवार 0.66 फीसदी वोट कबाड़ने में कामयाब हो गए थे।

सिमट सकता है बसपा का दायरा :

मप्र में पिछले विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी 5.10 फीसदी वोट प्रतिशत पाने में कामयाब हो गई थी। बसपा मप्र में विंध्य, चंबल और बुंदेलखंड में ज्यादा प्रभाव दिखाती रही है, लेकिन वर्ष 2023 में मप्र में बसपा का प्रभाव पहले के मुकाबले कम हो सकता है। ऐसे में मप्र में तीसरे नंबर की राजनीतिक पार्टी की हैसियत रखने वाली बसपा का अगले वर्ष यह दर्जा आप छीन सकती है।

मप्र में एंटी इन्कम्बेंसी कुछ हद तक काम करेगी :

गुजरात के चुनाव परिणाम से मप्र में भाजपा अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए आत्म विश्वास से लबरेज हो सकती है, लेकिन भाजपा के रणनीतिकार भी मानते हैं कि गुजरात और मप्र की स्थिति में अंतर है। माना जा रहा है कि मप्र में एंटी इन्कम्बेंसी फेक्टर कुछ हद तक काम करेगा। इसी फेक्टर के चलते वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने उसे नजदीकी मुकाबले में सत्ता से बाहर कर दिया था। भाजपा को चुनाव में 41.02 फीसदी वोट मिले थे जो कि कांग्रेस को मिले 40.89 फीसदी वोट से लगभग दशमलव 11 फीसदी अधिक थे। अधिक वोट प्रतिशत हासिल करने के बाद भी भाजपा इसे सीटों में तब्दील नहीं कर सकी थी और उसे महज 109 सीटों से संतोष करना पड़ा था, वहीं कांग्रेस ने 114 सीटें जीतकर सबसे बड़े दल के रूप में उभरकर सत्ता की दहलीज पर कदम रखा था।

एक से दो फीसदी वोट प्रतिशत बदल सकती है सत्ता के समीकरण :

वर्ष 2018 में यह तो साफ हो गया है कि महज 0.11 फीसदी वोटों का अंतर भी सत्ताधारी दल को सत्ता से बेदखल कर सकती है और 15 वर्ष बाद विपक्षी कांग्रेस को सत्ता का सुख दिला सकती है। मौजूदा हालातों में तो फिर वर्ष 2023 के चुनाव परिणाम में भी इसी तरह के कांटे का मुकाबला देखने का अनुमान जताया जा रहा है। यदि ऐसा रहा तो फिर महज एक से दो फिसदी वोट प्रतिशत प्रदेश में सत्ता के समीकरण बनाएंगे भी और बिगाड़ेंगे भी। ऐसे में मप्र की भाजपा गुजरात चुनाव परिणाम से ऑक्सीजन लेगी जरूर, लेकिन केवल इस भरोसे नहीं रहेगी कि गुजरात की हवा पूरी तरह मप्र में भी असर दिखाएगी।

कांग्रेस अभी से सतर्क :

कांग्रेस के रणनीतिकार मानते हैं कि गुजरात में कांग्रेस के लिए खोने के लिए कुछ नहीं था। हां यदि परिणाम कुछ बेहतर होते तो अच्छा होता, लेकिन उसे इतने बुरे परिणाम का अंदेशा नहीं था। कांग्रेसी यह भी मानते हैं कि अगले विधानसभा चुनाव में मप्र में आप भी बड़ा फेक्टर रहेगी। ऐसे में विपक्ष के वोट को एकजुट रखना उसके लिए बड़ी चुनौती होगी। इसलिए वह अभी से सतर्क हो गई है। उसे गुजरात की तरह ही मप्र में भाजपा से ज्यादा खतरा आप से होगा। यह इसलिए कि आप की अभी मप्र के लिए जो चुनावी तासीर बन रही है, उसमें वह भले ही वह अपवाद स्वरूप कुछ सीटें जीत पाने में कामयाब हो पाए, लेकिन उससे ज्यादा वह भाजपा के लिए मुफीद हो सकती है और विपक्षी वोटों के बंटवारे में वह कांग्रेस की संभावनाओं को नुकसान पहुंचा सकती है।

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