मॉब लिंचिंग में जान गंवा चुके सैकड़ों लोग पर सरकार क्यों बनी हुई है अनजान?
मॉब लिंचिंग में जान गंवा चुके सैकड़ों लोग पर सरकार क्यों बनी हुई है अनजान? Syed Dabeer Hussain - RE
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'मॉब लिंचिंग' पर क्यों पसरा है सन्नाटा?

Author : प्रज्ञा

राज एक्सप्रेस। मध्यप्रदेश के शिवपुरी जिले में 25 सितंबर 2019 को दो दलित बच्चों की पीट-पीट कर हत्या कर दी गई। एक दिन पहले 24 सितंबर को जबलपुर जिले में भीड़ ने एक बस ड्राइवर के साथ मार-पीट की। सतना जिले में 30 अगस्त, शुक्रवार को एक 40 वर्षीय व्यक्ति को पेड़ से बांधकर पीटा गया। उसके जख्मों पर नमक, मिर्च मली गई। रीवा जिले में 29 अगस्त को भीड़ ने बाहर से आए तीन लोगों को पीटा। बुरहानपुर जिले में 24 अगस्त को एक मूक-बधिर युवक भीड़ के शक का शिकार हो गया। लोगों के जमावड़े ने उसे पीट-पीटकर अधमरा कर दिया। नीमच जिले में 19 जुलाई को भीड़ ने एक 58 वर्षीय बुजुर्ग को पीटकर मार डाला।

शिवपुरी में मारे गए दलित बच्चे

पिछले कुछ दिनों में राज्य में हुई मॉब लिंचिंग की घटनाओं में से कुछ हैं, जो समाचार पत्रों में जगह बना सकीं। मध्यप्रदेश के साथ उत्तर प्रदेश, झारखण्ड, राजस्थान, बिहार, हरियाणा आदि राज्यों में साल 2014 के बाद से मॉब लिंचिंग की घटनाएं लगातार बढ़ी हैं।

Human rights Watch द्वारा फरवरी 2019 में जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, मई 2015 से दिसंबर 2018 तक भारत में मॉब लिंचिंग के मामलों में 44 लोगों की हत्या हुई है। इनमें से 36 लोग मुस्लिम समुदाय से ताल्लुक रखते थे।

वहीं इन्डिया स्पेंड की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2014 से इस तरह के 100 मामले सामने आए हैं। इनमें से 50% मामले मुसलमान समुदाय के खिलाफ, 10 दलितों, 9 हिन्दुओं और 3 प्रतिशत मामले आदिवासी समुदायों के खिलाफ हुए हैं।

  • भीड़ क्यों ले रही आम लोगों की जान?

  1. गौरक्षा के नाम पर भीड़ ने लोगों पर किया हमला-

    गाय का मांस खाने या बेचने के शक में लोगों की भीड़ ने कई बेगुनाह लोगों की मॉब लिंचिंग की।

  2. सोशल मीडिया के ज़रिए उड़ी बच्चा चोरी होने की अफवाह ने सैकड़ों लोगों की जान ले ली-

    जून 2017 में पश्चिम बंगाल में एक दिमागी रूप से बीमार महिला को लोगों ने बच्चा चोरी के शक में पीटा। इसके बाद वॉट्सएप के ज़रिए पूरे देश में बच्चा चोरी होने की अफवाह फैलने लगी। साल 2018 में असम, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, छत्तीसगढ़ आदि राज्यों में बच्चा चोरी होने की अफवाह के चलते कई लोगों के साथ भीड़ ने मारपीट की। इन घटनाओं में कई लोगों की जान चली गई तो वहीं कई लोग गंभीर रूप से घायल हुए।

  3. जातिगत छुआछूत के चलते दलितों की मॉब लिंचिंग-

    कभी चेन और चप्पल पहनने तो कभी बारात में घोड़ी पर चढ़ने के लिए दलित लिंचिंग का शिकार बन रहे हैं।

  4. 'जय श्री राम' का नारा नहीं लगाने पर भी कई बार भीड़ ने ली लोगों की जान-

    हिन्दू धर्म के स्वघोषित धार्मिक रक्षकों द्वारा जबरदस्ती 'जय श्री राम' का नारा लगवाने की घटनाएं सामने आई हैं। ऐसा नहीं करने पर भीड़ ने लोगों के साथ बुरी तरह मार-पीट की।

मॉब लिंचिंग का सबसे बड़ा कारण गौरक्षा नज़र आता है। अधिकतर मामलों में गाय का मांस खाने या बेचने के कारण उड़ी अफवाहों के चलते भीड़ ने लोगों को बेरहमी से मारा-पीटा। इन घटनाओं में सबसे अधिक मुसलमान समुदाय के लोगों को भुगतना पड़ा। नवंबर 2017 में छपी रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2014 के बाद से 1,90,000 गाय मुस्लिम किसानों से स्वघोषित हिन्दू गौ रक्षकों द्वारा छीन ली गई हैं। इनमें से कुछ पुलिस की उपस्थिति में ली गई गाए हैं।

भारत के छह भाजपा प्रशासित राज्यों में किए एक सर्वे में रॉयटर्स ने पाया कि मौजूदा 110 गौशालाओं में 50% पशुओं की संख्या में वृद्धि हुई है। साल 2014 से पहले जहां इनकी संख्या 84,000 थी, वहीं अब ये 1,26,000 पहुंच चुकी है। इनमें से 14 गौशालाओं द्वारा ये बताया गया कि, उन्हें गायें गौ रक्षकों ने लाकर दीं। एक तिहाई गौशालाओं ने कहा कि वो लगभग सभी गाय हिन्दू किसानों और घरों को बेचते या देते हैं।

भारत के 29 में से 23 राज्यों में गौ हत्या प्रतिबंधित है। वहीं दिल्ली एनसीआर और पांच केन्द्र शासित प्रदेशों (लक्ष्यद्वीप को छोड़कर) में भी ये प्रतिबंधित है। कई राज्यों में गायों के साथ, बैलों की हत्या पर प्रतिबंध है। इसके साथ ही इनका मांस रखने पर भी प्रतिबंध है। कई जगहों पर भैंसों की हत्या और मांस खाने पर प्रतिबंध नहीं है।

मई 2017 में, भाजपा सरकार ने पशु क्रूरता निवारण (पशुधन बाजार का विनियमन) नियम पेश किया, इसके तहत गायों को पशु बाज़ार में हत्या के लिए बेचने पर प्रतिबंध लगाया गया। जिसे आप सबने बीफ बैन के नाम से सुना होगा। इसके खिलाफ केरल, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में कई आंदोलन हुए।

अगस्त 2017 में सर्वोच्च न्यायालय ने इस कानून को खारिज कर दिया। जिसके बाद मार्च 2018 में भारत सरकार ने 'पशु बाज़ारों में पशुओं के प्रति क्रूरता का निवारण नियम, 2018' (Prevention of Cruelty to Animals in Animal Markets Rules, 2018) पारित किया। जो छह महीने से कम उम्र के मवेशियों, विकसित गर्भवस्था की गायों, कमज़ोर, रोगी, बीमार, घायल या थके हुए मवेशियों को बेचने पर प्रतिबंध लगाता है।

इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के अनुसार, गृह मंत्रालय ने मार्च 2018 में लोकसभा में एक सवाल के जवाब में बताया कि साल 2014 से 3 मार्च 2018 के बीच नौ राज्यों में 40 मॉब लिंचिंग की घटनाएं दर्ज़ हुईं। इनमें 45 लोगों की हत्या हुई और 217 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। हालांकि, सरकार के पास मॉब लिंचिंग पर कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है।

"जुलाई 2018 में राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में सरकार ने कहा कि उनके पास मॉब लिंचिंग का कोई आंकड़ा नहीं है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो लिंचिंग के मामलों का रिकॉर्ड नहीं रखता है।"

एनडीटीवी की एक रिपोर्ट के अनुसार, बिहार में पिछले ढाई महीनों में मॉब लिंचिंग के मामलों में बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। इनमें 14 लोगों की हत्या कर दी गई तो वहीं 45 लोगों गंभीर रूप से घायल हो गए। इस समय में 39 मॉब लिंचिंग की घटनाएं दर्ज की गईं। पुलिस ने 348 नामजद और 4000 अज्ञात लोगों के खिलाफ शिकायत दर्ज की है।

जुलाई 2019 में 49 प्रख्यात लोगों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखकर मॉब लिंचिंग पर सख्त कार्रवाई करने के लिए कहा। इसमें फिल्म निर्देशक मणिरत्नम, श्याम बेनेगल, अनुराग कश्यप और इतिहासकार राम चन्द्र गुहा शामिल थे। इन लोगों का कहना था कि जय श्री राम का नारा एक युद्ध को बुलावा देने जैसा हो गया है।

इस पत्र के विरोध में 61 मशहूर हस्तियों ने प्रधानमंत्री को एक और पत्र लिखा और इनकी आलोचना की। विवेक अग्निहोत्री, प्रसून जोशी, कंगना रनौत और मधुर भंडारकर जैसी हस्तियों ने सवाल किया कि, ये पत्र एकतरफा आक्रोश को दिखाता है। उन्होंने प्रश्न किया कि जब नक्सली आदिवासियों को परेशान करते हैं, उन पर जुल्म करते हैं तब ये लोग चिंता ज़ाहिर क्यों नहीं करते?

जिन 49 लोगों ने 'मॉब लिंचिंग' पर चिंता जताते हुए प्रधानमंत्री को पत्र लिखा था, उनके खिलाफ बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के स्थानीय न्यायालय में केस दर्ज़ किया गया है। स्थानीय वकील सुधीर कुमार ओझा की तरफ से 2 महीने पहले दायर याचिका पर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (सीजेएम) सूर्यकांत तिवारी के आदेश के बाद मामला दर्ज किया गया है।

अधिवक्ता सुधीर ओझा ने फिल्म कलाकारों के खिलाफ 27 जुलाई 2019 को कोर्ट में याचिका दायर की थी। जिसके बाद 3 अक्टूबर को सदर पुलिस थाने में प्राथमिकी दर्ज की गई। इन कलाकारों पर आरोप लगाया गया है कि, इन लोगों ने देश की छवि को धूमिल करने का प्रयास किया है।

मॉब लिंचिंग के विरूद्ध प्रदर्शन

मॉब लिंचिंग पर सरकार का रुख ढीला रहा है। कई मंत्रियों ने इनका समर्थन किया है तो वहीं मोहम्मद अखलाख की लिंचिंग में आरोपित 17 आरोपियों को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की चुनावी रैली में देखा गया। विपक्ष भी इस मुद्दे पर अधिकतर शांत ही दिखा है। हां, वॉट्सएप ने जुलाई 2018 में फैलती अफवाहों के चलते मैसेज फॉरवर्ड करने की सीमा को कम कर के पांच कर दिया था।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने साल 2017 में दिए एक भाषण में लोगों से अपील की कि, वो कानून को अपने हाथों में न लें और कहा, 'अगर कोई व्यक्ति गौ हत्या या गौमांस की तस्करी में शामिल होता है तो कानून व्यवस्था के तहत उसको सज़ा मिलेगी।' साल 2019 में भी प्रधानमंत्री ने लिंचिंग को खतरनाक बताया पर साथ ही उन्होंने सवाल भी किया कि क्या ये साल 2014 के बाद ही शुरू हुई हैं?

28 जून 2017 को

मुस्लिम समुदाय के लोगों ने 28 जून 2019 को मॉब लिंचिंग के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। द हिन्दू की रिपोर्ट के मुताबिक, कर्नाटक के बीजापुर तालुका में मुस्लिम मुत्ताहिदा काउंसिल के बैनर तले आयोजित इस रैली में सैंकड़ों लोग शामिल हुए। प्रस्तुत लोगों ने जिला प्रशासन के माध्यम से राष्ट्रपति को ज्ञापन सौंपा और कहा कि लिंचिंग धर्मनिरपेक्षता के नाम पर न सिर्फ एक धब्बा है बल्कि व्यवस्थित रूप से हिन्दू और मुस्लिम धर्म में वैमनस्यता फैलाने का तरीका है।

मॉब लिंचिंग के वो केस, जिन्होंने पूरे देश को किया शर्मसार-

  • पहलू खान, राजस्थान-

    अलवर जिले में 1 अप्रैल 2017 को गाय तस्करी के इल्जाम में एक डेयरी किसान पहलू खान को भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला। वो हरियाणा के नूह जिले से गाय और बछड़े खरीद कर अपने दो बेटों इरशाद और आरिफ के साथ वापस आ रहा था। उन्हीं के गांव के अज़मत और रफीक़ को भी मारा गया।

    हमले के दो दिन बाद पहलू खान ने एक प्राइवेट अस्पताल में दम तोड़ दिया। मौत के पहले पहलू खान ने छह लोगों को आरोपी बताया था। इस मामले में पहले पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ शिकायत लिखने के बजाए पहलू खान और चारों पीड़ितों के खिलाफ गायों की तस्करी करने की शिकायत दर्ज़ की।

    राज्य पुलिस ने जांच में पाया कि तीन आरोपी घटना की जगह पर मौजूद नहीं थे वहीं तीन नाबालिग हैं। 14 अगस्त 2019 को राजस्थान के स्थानीय न्यायालय ने नौ आरोपियों में से छह को छोड़ दिया। बाकी के तीन नाबालिग हैं और जूवेनाइल कोर्ट उन पर कार्यवाही करेगा।

    अलवर जिले की जनसंख्या साल 2011 में हुई आखिरी जनगणना के हिसाब से 36.74 लाख है। हिन्दू बहुल इस जिले में 30 लाख 39 हज़ार 279 हिन्दू हैं तो वहीं 5 लाख 47 हज़ार 335 मुसलमान जनसंख्या है।

पहलू खान
  • मोहम्मद अखलाख, उत्तर प्रदेश-

    दिल्ली से लगभग 50 किमी दूर दादरी नगर पालिका परिषद में रहने वाले अखलाख को उनके घर में घुस कर भीड़ ने मार डाला था। ये घटना साल 2015 की है। लोगों ने घर में बीफ (गाय का मांस) रखने और खाने के शक में अखलाख की हत्या की थी। इस मामले के सभी 17 आरोपियों को जमानत मिल गई थी। घटना के चार साल बाद 2 सितंबर 2019 को नोएडा पुलिस ने एक आरोपी को गिरफ्तार किया है।

    दादरी शहर की जनसंख्या साल 2011 में हुई आखिरी जनगणना के अनुसार, 91 हज़ार 189 है। इसमें 64.16 प्रतिशत हिन्दू तो 35.22 प्रतिशत मुसलमान जनसंख्या है।

  • कासिम कुरैशी, उत्तर प्रदेश-

    राज्य के हापुड़ जिले में 18 जून 2018 को एक भीड़ ने कासिम कुरैशी नाम के 45 वर्षीय व्यक्ति को मार डाला। मांस व्यापारी कासिम और उनके साथी समायदीन को गौमांस बेचने के शक में भीड़ ने पीटा था। यह घटना गांव बझेरा खुर्द की थी और इसका वीडियो सोशल मीडिया पर बहुत वायरल हुआ था। लोग उस अधेड़ उम्र के आदमी को मार रहे थे और कह रहे थे कि गाय की हत्या के अपराधी को यही सज़ा मिलेगी। कासिम लोगों की भीड़ में दर्द से कराह रहा था पर किसी को उसकी नहीं पड़ी थी। पानी मांगने पर किसी ने उसे पानी तक नहीं दिया।

    इस मामले में पुलिस ने लगभग 25 लोगों को गिरफ्तार किया था। सूत्रों के हवाले से ये बताया गया कि कासिम और समायदिन गाय और उसके बछड़े को अपने खेत से भगा रहे थे, तब ही किसी ने अफवाह उड़ा दी कि ये लोग गाय की हत्या करने के लिए ले जा रहे हैं। बस, फिर क्या था? लोग जमा हो गए और उन दोनों को मारने लगे। कासिम को बहुत गहरी चोटें लगी जिससे उसकी मौत हो गई।

    हापुड़ जिले की जनसंख्या साल 2011 में हुई आखिरी जनगणना के मुताबिक, 2 लाख 62 हज़ार 983 है। ये एक हिन्दू बहुल इलाका है। यहां 1 लाख 74 हज़ार 278 हिन्दू हैं, जो कि कुल जनसंख्या का 66.27% हैं तो वहीं 84 हज़ार 447 मुसलमान हैं, जो कि 32.12% जनसंख्या है।

  • मॉब लिंचिंग के खिलाफ कानून-

साल 2017 में सर्वोच्च न्यायालय ने केन्द्र और राज्य सरकार को मॉब लिंचिंग को रोकने के लिए कड़े कदम उठाने के निर्देश दिए। सर्वोच्च न्यायालय के दिशा निर्देशों के आधार पर सभी राज्यों में लिंचिंग के खिलाफ कानून बनाया जाना था लेकिन अभी तक केवल तीन राज्यों में इसके लिए कानून बन पाया है।

1. मणिपुर - The Manipur Protection From Mob Violence Ordinance, 2018

मणिपुर भारत का पहला राज्य है जहां मॉब लिंचिंग के खिलाफ कानून बना। लिंचिंग के मामलों में पीड़ित की मौत होने पर आरोपी को ताउम्र सज़ा और पांच लाख रूपए तक का ज़ुर्माना हो सकता है। अगर पीड़ित को चोट लगती है तो आरोपी को सात साल तक की जेल और एक लाख रूपए तक का जुर्माना हो सकता है। वहीं पीड़ित को गंभीर चोट लगने पर दस साल तक की जेल और तीन लाख रूपए तक का जुर्माना हो सकता है। अगर कोई व्यक्ति मॉब लिंचिंग की घटना में किसी भी तरह से संलिप्त होता है तो उसे भी इस कानून के तहत ही सज़ा होगी।

2. पश्चिम बंगाल- West Bengal (Prevention of Lynching) Bill, 2019

राज्य में 30 अगस्त 2019 को "पश्चिम बंगाल (प्रिवेंशन ऑफ लिंचिंग) बिल 2019" पास हुआ। इसके तहत पीड़ित को चोट लगने पर आरोपी को तीन साल से लेकर ताउम्र तक सज़ा, एक से तीन लाख रूपए तक का जुर्माना हो सकता है। वहीं पीड़ित की हत्या होने पर आरोपी को फांसी की सज़ा, ताउम्र कारावास और पांच लाख रूपए तक जुर्माना हो सकता है। अगर कोई मॉब लिंचिंग की घटना का प्रचार करता है, चाहे मौखिक तौर पर या इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से उसे एक साल तक की सज़ा हो सकती है, साथ ही 50000 रूपए का जुर्माना भी हो सकता है। अगर कोई पुलिस की कार्रवाई में दखल देता है या उससे छेड़छाड़ करने की कोशिश करता है तो उसे तीन से पांच साल की सज़ा हो सकती है।

3. राजस्थान- The Rajasthan Protection from Lynching Bill, 2019

राज्य ने अगस्त 2019 में मॉब लिंचिंग के खिलाफ कानून बनाया। इसके तहत किसी मामले में पीड़ित की हत्या होने पर आरोपियों को ताउम्र जेल और पांच लाख तक का जुर्माना हो सकता है।

साल 2017 में तुषार गांधी ने वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह के माध्यम से भारत के सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका (Writ Petition) दायर की। इस याचिका में बताया गया कि साल 2014 से अगस्त 2017 के बीच 70 से भी ज्यादा मॉब लिंचिंग के मामले देश के प्रमुख अखबारों के ज़रिए दर्ज किए गए। याचिका में राजसमंद, राजस्थान में हुई लिंचिंग के साथ कई और लिंचिंग की घटनाओं का ज़िक्र है। याचिका में कहा गया कि कार्यपालिका, विधायिका और कानून बनाने वालों की निष्क्रियता के चलते मॉब लिंचिंग को सामान्य मानने की सोच को बढ़ावा मिला है। साथ ही अपने समुदाय से मिली सहमति ने भी इसे बढ़ावा दिया है। अगर यही स्थिति बनी रही तो कोई भी व्यक्ति कानून के साथ खिलवाड़ कर अपने गलत/सही फैसलों को लोगों पर थोपता रहेगा।

मॉब लिंचिंग पर लोगों को जागरूक करने के लिए वंडरमेन थॉम्पसन कलकत्ता और भारतीय फैशन ब्रैंड टर्टल ने 30 सितंबर 2019 को एक वीडियो जारी किया। हिन्दू धर्म के प्रमुख त्यौहार दुर्गा पूजा के पहले दिन जारी किए गए इस वीडियो में लोगों से मॉब लिंचिंग जैसी घटनाओं को बढ़ावा न देने की अपील की गई है।

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