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राज ख़ास

मुंबई में बारिश से जो लोग मारे गए उसका दोषी कौन है

Author : राज एक्सप्रेस

मुंबई में भारी बारिश ने लोगों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। बुधवार को हुई भारी बारिश ने बीते दो दशकों का रिकॉर्ड तोड़ दिया। बारिश के हालातों के बीच मुंबई की रफ़्तार थम गई है। बड़ी बात ये कि सिर्फ मंगलवार शाम से बुधवार सुबह तक मुंबई शहर में करीब 270 एमएम बारिश हुई है। बीते 26 सालों में सितंबर महीने में यह दूसरा मौका है, जब इतनी बड़ी बारिश रिपोर्ट की गई है। मुंबई शहर में बीते 24 घंटे की बारिश ने तमाम इलाकों में भारी जलजमाव की स्थिति बना दी है। मुंबई में पिछले दो दिनों के दौरान भारी बारिश से जो तबाही हुई है, वह कोई नई बात नहीं है। हर साल मानसून की बारिश में इमारतें ढहने के हादसे होते हैं, लोग मारे जाते हैं, घायल होते हैं। सड़कों पर दो-तीन फीट तक पानी भर जाना तो आम है, रिहायशी इमारतों के भूतल पर बने घर डूब जाते हैं। नाले उफनते रहते हैं, पटरियां पानी में डूबी रहती हैं और लोकल ट्रेन के पहिए ठहर जाते हैं। हवाई अड्डे तक लबालब हो जाते हैं और उतरने के दौरान विमान के हवाई पट्टी से फिसल जाने जैसी घटनाएं भी हो जाती हैं। वर्षाजनित हादसे होते रहते हैं। जनजीवन ठप हो जाता है।

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मुंबई की यह कहानी हर साल की है। बारिश तो कहर बरपाती ही है, लेकिन उससे भी ज्यादा गंभीर बात है कि यह सब जानते-बूझते स्थानीय निकाय और सरकार पूरे साल ऐसा बंदोबस्त नहीं करती जो लोगों को मरने से या फिर परेशानी से बचा सके। जाहिर है, भारी बारिश के कारण महानगर के जो हालात बिगड़ते हैं, उसके पीछे सरकार प्रशासन की लापरवाही ज्यादा है। तब सवाल है कि मुंबई में बारिश से जो लोग मारे गए उसका दोषी कौन है, बारिश या वह प्रशासन जिसने सालभर जनता से करोड़ों रुपए टैक्स लेने के बाद भी उन्हें रहने लायक सुविधाएं नहीं दी। अब से पहले मुंबई में जुलाई 2005 में हालात बिगड़े थे और उससे पहले 1974 में। करीब साढ़े चार दशक बाद मुंबई में दो दिनों में 550 मिलीमीटर बारिश हुई। इतनी ज्यादा बारिश के आगे बीएमसी के सारे इंतजाम ध्वस्त हो गए।

ऐसा भी नहीं है कि महानगर पालिका के पास पैसा नहीं हो, इसका बजट भारी-भरकम होता है। लेकिन वह भी भ्रष्टाचार की बीमारी से ग्रस्त है। बारिश भले कितनी हो, लेकिन सरकार और महानगर पालिका अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते! बांध में दरार आना, दीवारों का ढहना, सडक़ों का बड़े गड्ढों में तब्दील हो जाना, इमारतों पर खतरा, पुलों का ढहना-ये सब ऐसी घटनाएं हैं जिनसे एक सजग, जिम्मेदार सरकार और प्रशासन लोगों को बचा सकता है। मुंबई में हर साल पानी भरता है और फिर इस पर सत्तापक्ष और विपक्ष की राजनीति होती है, लेकिन नाले, सीवर और झोपड़पट्टियों की सुध कोई नहीं लेता। सवाल गरीब और आम आदमी के प्रति सरकार के सरोकार का है। अगर आमजन की सुरक्षा सरकार की प्राथमिकता हो और पिछली घटनाओं से सबक ले लिए जाएं तो लोगों को मरने से बचाना मुश्किल है क्या!

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