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अभाव में बीता डेलॉयट के ग्लोबल CEO पुनीत रंजन का बचपन, स्कूल फीस भरने के भी नहीं होते थे पैसे

हरियाणा के एक छोटे से कस्बे से निकलकर पुनीत रंजन के दुनिया की चौथी सबसे बड़ी आडिट कंपनी डेलॉइट ग्लोबल के मुख्य कार्यकारी (सीईओ) बनने की कहानी बेहद दिलचस्प है।

हाइलाइट्स

  • जहां मिली पहली नौकरी आज उसी कंपनी के हैं सीईओ

  • रोहतक कॉलेज से पूरी की स्नातक स्तर की पढ़ाई

  • स्कालरशिप पाकर अमेरिका में पूरा किया हायर एजूकेशन

राज एक्सप्रेस। अगर आपका संकल्प मजबूत हो तो कोई भी अड़चन आपकी राह में मुश्किल नहीं खड़ी कर सकती। हरियाणा के एक छोटे से कस्बे से निकलकर पुनीत रंजन के दुनिया की चौथी सबसे बड़ी आडिट कंपनी डेलॉइट ग्लोबल के मुख्य कार्यकारी (सीईओ) बनने की कहानी बेहद दिलचस्प और दूसरे युवाओं के लिए प्रेरणादायक है। पुनीत रंजन का बचपन बेहद अभाव भरा रहा है। उनके जीवन में एक समय ऐसा भी आया, जब उनकी आर्थिक स्थिति इतनी खराब हो गई थी कि उनके पास स्कूल की फीस भरने तक के पैसे नहीं हुआ करते थे। उनते माता-पिता बेबसी में कुछ कर पाने की स्थिति में नहीं थे।

अभावों में पैदा हुआ कुछ कर दिखाने का जज्बा

उन भीषण अभावों के बीच उन्होंने कुछ कर दिखाने का जो सपना देखा था, उसे पूरा करने में उन्होंने पूरा जोर लगा दिया। उन्होंने पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित किया। किसी तरह अभावों से जूझते हुए रोहतक के एक स्थानीय कॉलेज से स्नातक तक की पढ़ाई पूरी कर डाली। इस कालेज से भी वह पढ़ाई इस लिए पूरी कर सके, क्योंकि यहां की फीस बहुत कम थी। पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने नौकरी के लिए प्रयास शुरू कर दिए। इसी बीच एक समाचार पत्र में छपे विज्ञापन को देखने के बाद उन्होंने नौकरी के लिए दिल्ली के लिए रवाना हो गए।

मुश्किलों का किया डटकर मुकाबला

हरियाणा के एक छोटे से गांव में पैदा हुए पुनीत रंजन का बचपन काफी अभाव में बीता है। पुनीत के माता-पिता की आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी। इसलिए उनके लिए स्कूल की फीस भरने में भी परेशानी होती थी। उनके माता-पिता के पास इतने पैसे नहीं होते थे कि वे उन्हें किसी अच्छे स्कूल में भेज पाएं। फीस नहीं भरने के कारण एक बार उन्हें अपना स्कूल छोड़ना पड़ा था। तमाम मुसीबतें आईं, लेकिन उन्होंने पढ़ाई बंद नहीं की। मुसीबतों ने पुनीत रंजन को बहुत मजबूत बना दिया था।

स्कालरशिप से विदेश में की पढ़ाई

पुनीत ने बचपन से ही अपने माता-पिता को आर्थिक संकटों से जूझते देखा था। वह चाहते थे अब वह बड़े हो गए हैं और अब उन्हें परिवार के कामों में अपना योगदान देना चाहिए। यह सोचकर उन्होंने नौकरी की तलाश शुरू कर दी। एक दिन एक अखबार में उन्होंने एक नौकरी का विज्ञापन देखा। नौकरी की तलाश में वह दिल्ली चले गए। तब तक पुनीत रंजन पढाई का महत्व समझ चुके थे। इसी बीच उन्हें विदेश में पढ़ाई करने के लिए स्कॉलरशिप मिल गई। यह वह टर्निंग प्वाइंट था जहां से उनके जीवन में बड़ा बदलाव आया।

डेलॉयट ने बुलाकर ऑफर की नौकरी

स्कालरशिप पाकर जिस समय वह अमेरिका के लिए रवाना हो रहे थे, उस समय उनके पास केवल दो जोड़ी कपड़े ही थे। दो जोडी कपड़ों और कुछ पैसे लेकर वह अमेरिका चले गए। जहां पहुंचकर उन्होंने पोस्ट ग्रेजुएशन पूरा किया। अमेरिका पहुंचकर पुनीत रंजन ने जबर्दस्त पढ़ाई शुरू की। उनकी अच्छे छात्र के रूप ख्याति थी, लेकिन जब स्थानीय पत्रिकाओं ने जब उनका चयन 10 सर्वश्रेष्ठ छात्रों में किया, तो उनकी प्रतिभा का जिक्र सार्वजनिक हो गया। पुनीत की चर्चाएं जब डेलॉयट प्रबंधन तक पहुंची तो उसने पुनीत रंजन को मिलने के लिए बुलाया। इस मुलाकात के बाद ही डेलॉयट ने उन्हें नौकरी आफर कर दी।

2015 में बने डेलॉयट के मुख्य कार्यकारी

इस तरह उन्हें सन 1989 में डेलॉइट में नौकरी मिल गई और इस तरह उनका और उनके परिवार की आर्थिक संकट खत्म हो गया। पुनीत रंजन ने डेलॉइट में 33 साल से अधिक समय तक अपनी सेवाएं दी। इतने दिन की मेहनत और समर्पण अंततः रंग लाया। पुनीत की प्रतिभा, मेहनती स्वभाव और कंपनी के प्रति निष्ठा को देखते हुए उन्हे डेलॉइट में 2015 में सीईओ नियुक्त किया गया। उल्लेखनीय है कि डेलॉइट दुनिया की चार सबसे बड़ी आडिट फर्मों में से एक मानी जाती है। डेलॉइट की मौजूदगी भारत समेत विश्व के 150 से अधिक देशों में है। डेलॉइट में दो लाख से अधिक कर्मचारी काम करते हैं।

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