दिल्ली। देश में कोरोना की एंट्री के बाद से पूरा भारत इस कदर बंद (लॉकडाउन ) हो गया था। जैसा इससे पहले कभी नहीं हुआ। इतना ही नहीं इस दौरान सभी सेवाएं भी बंद कर दी गईं थीं चाहे वो यातायात की सेवाएं हो या कोई अन्य सेवाएं। हालांकि, ऐसा इससे पहले कभी नहीं किया गया कि, रेलवे और हवाई सेवा तक रोक दी गई हो। इस लॉकडाउन के चलते लगभग सभी सेक्टर्स को नुकसान उठाना पड़ा। इसमें दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन (DMRC) का भी नाम शामिल है।
DMRC को उठाना पड़ा काफी नुकसान :
जी हां, देश में पिछले साल से लेकर अब तक जितनी बार भी लॉकडाउन लागू किया गया। उस दौरान दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन (DMRC) की सेवाएं भी रोक दी गई जिससे DMRC को खासा नुकसान उठाना पड़ा। इस नुकसान के चलते DMRC को ट्रेनों के संचालन के लिए सेविंग की जरूरत पड़ रही है। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि, DMRC को आर्थिक सहायता की तत्काल जरूरत है, जिसके लिए पिछले साल भी याचिका दायर की गई थी।
DMRC के नुकसान का आंकड़ा :
बताते चलें, कोरोना काल में पिछले साल 2020 में दिल्ली मेट्रो की सेवाएं कुल 169 दिनों तक ठप्प पड़ी रही। इसके अलावा जब इनका संचालन शुरू किया गया तो, पैसेंजर्स की संख्या काफी कम थी। इनसब के चलते DMRC को वार्षिक राजस्व में काफी नुकसान का सामना करना पड़ा। यदि आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो, DMRC का राजस्व 2019-20 में 3897.3 करोड़ रुपये से घटकर 2020-21 में 895.9 करोड़ रुपये पर आ पहुंचा था। जबकि, DMRC को 2019-20 में 758 करोड़ रुपये का नुमाफा हुआ था।
DMRC के मैनेजिंग डायरेक्टर ने बताया :
DMRC के मैनेजिंग डायरेक्टर मंगू सिंह ने बताया है कि, 'हर रोज की कमाई से तुलना करें तो हमारा ऑपरेशनल कॉस्ट पहले जैसा ही है। पॉवर बिल और स्टाफ की सैलरी पर अधिक खर्च हो रहा है।' यात्रियों से होने वाली कमाई के साथ ही अन्य सोर्स की तुलना में DMRC का खर्च ढाई गुना अधिक हो रहा है। घाटे की वजह से कॉस्ट कम करने के कई सारे कदम उठाए जा रहे हैं। हमें ट्रेनों के संचालन, सेफ्टी, कोविड गाइडलाइन्स का भी ध्यान रखना है। एयरकंडीशन लोड, लाइट को कम कर दिया गया है। सफाई और मेन्टेनेंस स्टाफ के साथ ही टिकट वेंडिंग ऑपरेटर्स की आउटसोर्सिंग में भी कटौती की गई है।'
आमदनी एक रुपये और ढाई रुपये है खर्च :
DMRC के मैनेजिंग डायरेक्टर मंगू सिंह ने आगे बताया कि, 'इस वक्त दिल्ली मेट्रो की वित्तीय स्थिति भारी दबाव में है। फिलहाल दिल्ली मेट्रो की आमदनी एक रुपये है और उसे ढाई रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं। इसकी वजह यह है कि जो फिक्स खर्च है, उन्हें तो कम करना मुश्किल है। इसमें कर्मचारियों का वेतन, मेट्रो के सेफ्टी से जुड़े रखरखाव के काम, पावर बिल का फिक्स चार्ज आदि। दूसरी तरफ मेट्रो की आमदनी बेहद कम हो गई है। प्रॉपर्टी डिवेलपमेंट से जो आमदनी होती थी, वह भी प्रभावित हुई है। मेट्रो को अपने लोन की किस्तें तो चुकानी ही पड़ रही हैं।'
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