हाइलाइट्स :
'डूइंग बिजनेस इंडेक्स' में सुधार के बावजूद क्यों छाई मंदी?
तमाम सुधारों के बाद भी कहां प्रभावित हो रहा ऑनलाइन काम?
अर्थव्यवस्था की गति में क्या है ऑनलाइन कामकाज का सर्वर डाउन कनेक्शन?
तमाम सवालों पर खास पड़ताल में सामने आए वो मुद्दे जिन पर त्वरित सुधार करना जरूरी!
राज एक्सप्रेस। विश्व बैंक के हाल ही में जारी डूइंग 'बिज़नेस इंडेक्स' में भारत 14 स्थान की छलांग लगाकर 63वीं रैंक पर आ गया। निश्चित ही ऑनलाइन प्रोसेस के गति पकड़ने से कारोबार भी गति पकड़ रहा है, लेकिन अलग-अलग राज्यों में करारोपण और नीतियों की असमानता के कारण अभी भी भारत में कारोबारियों को वो सुगमता नहीं मिल पाई है जिसके वो वाजिब हकदार हैं।
गर्व और चिंता का कारण :
तीन साल पहले भारत डूइंग 'बिज़नेस इंडेक्स' में 130वें नंबर पर था। मतलब तीन साल पहले तक भारत में बिजनेस करने की परिस्थितियां देश-विदेश के कारोबारियों-निवेशकों के माकूल नहीं थी? लेकिन अब ताजा सफलता भारत और भारतीयों के लिए गौरव का विषय है। फिलहाल भारत के युवा कारोबारी काफी खुश भी नज़र आ रहे हैं।
पुरानी परेशानी से छुटकारा :
भारत में आजादी के बाद से किसी सरकारी कार्य की अनुमति लेने से लेकर तमाम कामकाज में फाइल संस्कृति हावी रही। इस कारण भारत में देशवासियों को नौकरशाही और लालफीताशाही की समस्या का सामना करना पड़ा। इसके इलाज के लिए भारत में ऑन लाइन प्रक्रिया अपनाई जा रही है ताकि कामकाज में पारदर्शिता लाई जा सके।
ऑनलाइन अपडेशन का काम :
फिलहाल भारत का पूरा सरकारी कामकाज अभी पूरी तरह से ऑनलाइन नहीं हो पाया है, जो हुआ है उसमें तमाम खामियां हैं। कहना गलत नहीं होगा। पूरी तरह से डिजिटल इंडिया का सपना पूरा होने में अभी भी दो दशक के समय की देश को दरकार है।
हालांकि रेल, मेल और बैंकिंग डिजिटल सर्विस के मामले में देश में काफी बदलाव आया है और इन विभागों के कामकाज में लालफीताशाही पर बहुत हद तक रोकथाम भी लग गई है।
विश्व बैंक की रिपोर्ट :
"डूइंग बिज़नेस 2020" के अनुसार भारत ने आर्थिक मोर्चों पर कई सुधारों के साथ अपना ढांचा मजबूत किया है। इनसॉल्वेंसी और बैंकरप्सी सुधार, कंस्ट्रक्शन परमिट, टैक्स प्रक्रिया और सीमा पार व्यापार जैसे मामलों में सुधार करने के मामलों में भारत लगातार तीसरे साल दुनिया की टॉप टेन कंट्रीज़ में शामिल रहा।
पीएम का सपना :
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'मेक इन इंडिया' अभियान का भी जिक्र विश्व बैंक की हालिया रिपोर्ट में किया गया है। गौरतलब है पीएम मोदी प्रतिस्पर्धा बढ़ाने के लिए देश की निर्माण इकाइयों में विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने की इच्छा जता चुके हैं। रिपोर्ट में "भारतीय अर्थव्यवस्था के आकार की तुलना में सुधार की दिशा में उठाए गए मोदी सरकार के कदमों को सराहनीय माना गया है।
इनकी राय :
रियल स्टेट कारोबार :
इस जगत से जुड़े लोकेश राजा साहनी ने ऑनलाइन प्रोसेस और सरकार के प्रयासों को काफी सार्थक माना है। वो कहते हैं पहले नामांतरण और पी-वन, पी-टू प्रक्रिया में काफी अधिक समय लगता था। लेकिन अब एक माह में नामांतरण और 15 दिन में सीमांकन अवधि तय होने से कामकाज में गति आई है। क्योंकि ऑन लाइन प्रोसेस के कारण आरआई और एसडीएम को प्रकरणों के लिए अपडेट रहना होता है।
“नक्शों से जुड़े कामकाज में भी पहले की तुलना में काफी गतिशीलता आई है। जल्द ही सैटेलाइट मैपिंग शुरू होने के बाद जमीन के रकबों से जुड़ी परेशानियों का हल भी डिजिटली हो जाएगा। वो इसलिए क्योंकि आगामी दौर में सैटेलाइट इमेज से जमीन और उसके मालिकाना हक का सारा ब्यौरा चुटकियों में पेश हो जाएगा।”
लोकेश राजा साहनी, प्रॉपर्टी कंसल्टेंट, साहनी रेंटल सर्विस
हालांकि साहनी ने ऑन लाइन प्रोसेस को और ज्यादा फटाफट बनाने की राय भी दी और शिकायती लहजे में बताया कि फॉलोअप प्रोसेस में अभी भी वक्त जाया होता है। तकनीकि खराबी, सर्वर डाउन या लिंक फेल होने जैसी समस्या से लोगों को रोजाना जूझना पड़ता है।
इस समस्या को सबसे पहले दूर करना होगा क्योंकि ऑन लाइन प्रक्रिया की यही एकमात्र रीढ़ जो है। एक राय ये भी है कि सर्वर डाउन होने की परेशानी हल होते ही सरकारी दफ्तरों से दलालीकरण की प्रथा पर भी अपने आप विराम लग जाएगा।
जीएसटी के पक्ष :
अनंत मिश्रा कहते हैं कि कारोबारियों के लिए जीएसटी पंजीकरण कराना अनिवार्य किया गया है। कभी जटिल माना जाने वाला ये कार्य सरकारी वेबसाइट पर बहुत कम समय में आसानी से हो जाता है।
दवा व्यवसाय से जुड़े विकास अग्निहोत्री ने बताया कि अपना कारोबार शुरू करने से पहले तक वो आने वाली परेशानियों को सुनकर परेशान थे लेकिन जमीन खरीदने से लेकर बिजली कनेक्शन लेने और प्रदूषण नियंत्रण के सर्टिफिकेट्स के काम ऑनलाइन होने से काम काफी आसान हो गया।
“दवाओं के प्रमाण पत्र और लाइसेंस प्रक्रिया को भी ऑनलाइन फॉलोअप कर सकने की व्यवस्था से पल-पल की स्थिति पर नज़र रखने और प्लान बनाने में बहुत आसानी हुई।”
विकास अग्निहोत्री दवा कारोबारी, अल्फा फार्मा
जीएसटी की विविधता :
भारत का सरकारी और निजी कामकाज अभी भी ऑन लाइन प्रक्रिया का हिस्सा पूरी तरह नहीं हो पाया है। ये काम अभी आधा-अधूरा, अधूरा या फिर अपनी शुरुआत में है। ऐसे में व्यापार के सबसे जरूरी पक्ष टैक्स को लेकर काफी दिक्कतों का सामना संबंधित वर्गों को करना होता है।
सबसे ज्यादा परेशानी :
अधिक परेशानी जीएसटी से जुड़े उस वर्ग को है जो अपने राज्य की सीमाओं से बाहर दूसरे राज्यों के कारोबारियों से व्यापार करते हैं। ऐसे में सभी राज्यों के जीएसटी में एकरूपता न होने से अक्सर खर्चे बढ़ जाते हैं। ऐसी ही परेशानी से दो-चार होने वाले गारमेंट कारोबारी पुलकित जैन ने बताया कि नए कारोबारियों को टैक्स में छूट देने के साथ ही जीएसटी में समरूपता लानी चाहिए ताकि कारोबारियों को कामकाज में आसानी हो।
अहम परेशानियां :
नया बिज़नेस शुरू करने वाले जैन ने सरकार से नए कारोबारियों को टैक्स में कुछ कटौती करने या जीएसटी, बिजली के बिल में कुछ राहत देने की राय दी है ताकि भारतीय कारोबारियों और कारोबार को गति मिल सके। उनकी शिकायत है कि कई राज्यों में करारोपण को लेकर कोई खाका तक तैयार नहीं है। कागज़ात और प्रोसेस के बारे में भी जानकारी की कमी से काम में विलंब होता है।
सरकारी गाइडलाइंस :
देश में तमाम गाइड लाइंस की स्थिति बहुत चिंताजनक है। फिल्मों से लेकर तमाम इश्तहारों में धूम्रपान से परहेज करने से जुड़े अति आवश्यक संदेश तक मात्र औपचारिकता बतौर पेश किए जा रहे हैं। ऐसे में नवागत जीएसटी और ऑन लाइन प्रक्रिया की पुष्ट गाइड लाइंस के बारे में उम्मीद करना जरा जल्दबाजी होगी। लेकिन ये भी साफ है कि गाइडलाइन की उलझन न होने पर ही कारोबार में सुगमता और गति आ पाएगी।
मूलभूत सेवाओं में सुधार :
देश के कई हिस्सों में अभी भी व्यापार के लिए जरूरी बिजली, पानी और ज़रूरी इंफ्रास्ट्रक्चर जुटाने में कारोबारियों को दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है। यदि भारत सरकार 2020 तक टॉप 50 अर्थव्यस्थाओं में शामिल होने के लक्ष्य को तय समय में पूरा करना चाहती है तो उसको सड़क-बिजली-पानी की उपलब्धता के साथ ही करारोपण की प्रक्रिया में भी सरलीकरण करने की जरूरत होगी।
विदेशी निवेशकों की परेशानी :
भारत के मध्य प्रदेश राज्य के उदाहरण को ही लें। यहां लंबे समय तक शासन में रही भारतीय जनता पार्टी के लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह चौहान का भारत के दिल मध्य प्रदेश में विदेशियों के निवेश का सपना अधूरा ही रह गया। स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन (सेज) भी मध्य प्रदेश के कारोबार और अर्थव्यवस्था को गति नहीं दे पाए। मौजूदा दौर में इनकी बदहाली किसी से नहीं छिपी।
सबसे खास पक्ष :
एक राय ये भी है कि विदेशी निवेशक भौगोलिक, आर्थिक, राजनीतिक स्थिरता और कड़े कानून की सुनिश्चितता से आकर्षित होते हैं। साथ ही कारोबार शुरू करने और फिर उसे चलाने के लिए ज़रूरी आधारभूत ढांचे का भी इसमें अहम रोल होता है।
मतलब यदि भारत को दुनिया के सामने सुस्त मंद अर्थव्यवस्था के बजाए तेज रफ्तार इकोनॉमी की पहचान बनानी है तो इंडिया को अपने ऑन लाइन कामकाज, टैक्स फ्रैमवर्क में बहुआयामी और निष्पक्ष सुधार लाना होगा।
भारत की तरक्की का ग्राफ तभी ऊंचाई हासिल कर पाएगा जब भारतीय अर्थव्यवस्था में व्याप्त सर्वर डाउन या लिंक फेल होने की परेशानी हल हो जाएगी। डिजिटल युग की ओर बढ़ रहे भारत में सर्वर डाउन या लिंक फेल होने की समस्या अब जल्द ही अक्षम्य भी मानना होगी।
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