हाइलाइट्स :
करना पड़ सकता है बजट में संशोधन
पहले के मुकाबले परिस्थितियां ज्यादा प्रतिकूल
देश पहले भी कर चुका आर्थिक संकट का सामना
राज एक्सप्रेस। महामारी घोषित कोरोना वायर डिसीज 2019 (कोविड-19) के संक्रमण से कई देशों की जान-माल को खतरा पैदा हो गया है। पेंडेमिक कोविड के कारण दुनिया भर की अर्थव्यवस्था खतरे में पड़ गई है। ऐसे में भारतीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को भी कुछ इस तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
परिस्थिति तब :
1 फरवरी को, अपना दूसरा बजट पेश करते वक्त भारत की केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को व्यापक रूप से कई दबावों का सामना किया सामना करना पड़ा था। इस दौर में परिवार खर्च नहीं कर रहे थे, कंपनियां अनसोल्ड शेयरों के ढेर के शिखर पर थीं, किसान परेशान थे, दुनिया की अर्थव्यवस्था अस्थिर थी, कर राजस्व प्रवाह मंद था और नौकरी की चाह रखने वालों की कतार लंबी होती जा रही थी वगैरह-वगैरह। जबकि इससे अवसरों की लंबी खाई पैदा हो रही थी।
नजरिया अब :
ऐसे में अब वार्षिक लेखा अभ्यास में अब लगभग हर घटक और अनुमान के हर तत्व के साथ ही योजनाओं को अब दूसरे नजरिये से देखने की जरूरत होगी। COVID-19 और इसका प्रसार आर्थिक परिदृश्य में विनाशकारी राह पर है। साथ ही कोरोना वायरस महामारी प्रकोप के कारण रूढ़िवादी राजकोषीय नीति नियोजन को भी खतरा पैदा हुआ है।
आगामी कड़ी में वित्त मंत्री इन बाधाओं से अच्छी तरह से दो-चार होंगी। दुनिया के हर तत्व और भारत की राजकोषीय नीति नियोजन, वार्षिक लेखा अभ्यास संबधी लगभग हर घटक एवं धारणा के हर तत्व के साथ-साथ योजना के बारे में अब दूसरे नजरिये से सोचने की जरूरत होगी।
तथ्यों पर नज़र :
नीतिगत रूप से शून्य भी 4.4 से बहुत दूर नहीं है; रेपो में रिकॉर्ड गिरावट, सीआरआर (कैश रिजर्व रेश्यो) की ओर बढ़ रही है COVID-19 के लिए वित्त मंत्री का 1.7 लाख करोड़ रुपये का सुरक्षा कवच पैकेज प्रोत्साहन की राह पर है। इसी तरह अर्थनीति के जानकारों के मुताबिक COVID-19 महामारी के इस बुरे दौर में भारत के पास अब धन के लिए ‘हेलीकॉप्टर से धन वर्षा’ (हेलिकॉप्टर ड्रॉप ऑफ मनी) का उचित वक्त है।
आपको ज्ञात हो सीतारमण ने वित्त वर्ष 2020-21 में 10 प्रतिशत मामूली जीडीपी वृद्धि की कल्पना की थी, एक ऐसा लक्ष्य जो मौजूदा परिदृश्य को देखकर अब लगभग अकल्पनीय लगता है। गौरतलब है वित्त मंत्री ने 2020-21 में भारत का कर राजस्वपिछले वर्ष की तुलना में12 प्रतिशत बढ़ने का अनुमान लगाया था। उन्होंने गैर-कर राजस्व वृद्धि को 11.4 प्रतिशत के साथ 3,85,017 करोड़ रुपया रेखांकित किया था।
मैथ्स कुछ इस तरह :
गणित में कुछ बहुत लंबे लक्ष्य भी तय किए गए थे। पर्दाफाश जैसी प्राप्तियों से 2.1 लाख करोड़ रुपये। टेलीकॉम से स्पेक्ट्रम और अन्य आय से लगभग 1.33 लाख करोड़ रुपया। जबकि भारतीय रिज़र्व बैंक और बैंकों से लाभांश के रूप में 89,648 करोड़ रुपया। इन सभी घटकों के अलावा और भी अन्य कई मोर्चों की गंभीर रूप से अब पुन: परीक्षा की जरूरत होगी।
लॉकडाउन संकट :
गंभीर रूप से नुकसान की सीमा इस बात पर निर्भर करेगी कि लॉकडाउन कब तक लागू रहता है और किस गति से प्रतिबंध लागू किये जाते हैं। लोगों के जीवन और सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा के मद्देनजर लागू आपातकाल के कारण आर्थिक गतिविधियों पर लगाम कसी गई है। भले ही इसके ऐवज में आजीविका के साधनों पर प्रतिबंध क्यों न लागू करना पड़ा हो कमोबेश दुनिया भर की सरकारों ने जनस्वास्थ्य की रक्षा के लिए फिलहाल यही रणनीति अपनाई है।
नई नीति पर बहस :
इस सवाल का एक नैतिक पहलू यह है कि अब दुनिया में आने वाले वर्षों के लिए एक नई बहस को बल मिलेगा। साथ ही अनिश्चित परिस्थितियों में राजकोषीय विकल्प की नीति बनाने के लिए भी अब नीति प्रबंधकों को आमंत्रित किया जा सकता है।
राजस्व और कर अनुपालन को आर्थिक व्यवधान बहुत हद तक कम करेगा। वहीं लॉकडाउन और लंबे समय तक प्रतिबंध कई कंपनियों को परिचालन बंद करने या परिचालन को रोकने के लिए मजबूर कर सकते हैं।
नतीजतन सरकार के कर संग्रह में कमी आएगी। हेल्थकेयर की लागत में तेज बढ़ोतरी देखने को मिलेगी। इससे सरकार व्यापार और व्यक्तियों की रक्षार्थ राहत उपायों की एक श्रृंखला की पेशकश के लिए विवश हो सकती है।
इबोला का आर्थिक संकट :
ये कर राहत के रूप में आ सकते हैं। लाभ, वेतन सहायता और ऋण के परिणामस्वरूप बजट घाटा बढ़ेगा। इसके पहले अफ्रीका के तेजी से फैलने वाले इबोला प्रकोप के दौरान पश्चिम अफ्रीका के कई देशों की जीडीपी के घाटे में 9 प्रतिशत तक की उछाल देखी जा चुकी है। ऐसा तब भी हुआ, जब इनमें से अधिकांश अर्थव्यवस्थाओं में सार्वजनिक क्षेत्र अपेक्षाकृत रूप से कम थे और भारत की तुलना में इन देशों में सार्वजनिक हित में कल्याण खर्च काफी कम था।
चुनौती स्वीकार :
देशों की सीमाओँ पर बम-गोले और टैंकर्स से लैस शत्रु सेना का संकट न होने के बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित विश्व के नेताओं ने कोरोनो वायरस महामारी के संकट को युद्ध की चुनौतियों की तरह स्वीकार करने में संकोच नहीं किया है। हालांकि इस अदृश्य शत्रु से युद्ध का परिणाम अर्थव्यवस्था के लिए अधिक गहरा और व्यापक हो सकता है।
संकट तब के मुकाबले :
राजकोषीय नीति को पटरी पर लाने के लिए अर्थव्यवस्था में एक युद्धकालीन वापसी की आवश्यकता होगी। गौरतलब है; पिछले 74 वर्षों के बजट-निर्माण के इतिहास में साल 1956-57, 1965-66 और 1971-72 को मिलाकर कुल तीन बार ऐसा मौका आया जब वित्त मंत्री को वित्तीय वर्ष के दौरान बजट प्रस्तावों का एक नया सेट प्रस्तुत पड़ा।
इन तीन मामलों में से दो मामलों में साल 1965-66 और 1971-72 के दौरान भारतीय सेैनिक पाकिस्तानी सेना से लड़ने मोर्चे पर डटे थे। ऐसी परिस्थितियों में तत्काल वित्त आपूर्ति की जरूरत होती है।
1965 में तत्कालीन वित्त मंत्री टीटी कृष्णमाचारी ने 9 अगस्त, 1965 को कराधान प्रस्तावों के लिए एक नया सेट प्रस्तुत किया। जबकि इस दौरान भारत अप्रैल से सितंबर 1965 के बीच पाकिस्तान से युद्धरत् था।
इसी तरह वर्ष 1971 में तत्कालीन वित्त मंत्री वाईबी चव्हाण ने 13 दिसंबर1971 को "रक्षा प्रयास के लिए अधिकतम संसाधन जुटाने के लिए अतिरिक्त उपाय" प्रस्तावित किया। जबकि इसके तीन दिन पहले बांग्लादेश को आज़ाद कराने पाकिस्तान से भारत का युद्ध समाप्त हुआ था।
इसी तरह 30 नवंबर, 1956 को भारत के वित्त मंत्री ने अरब-इज़राइल युद्ध के कारण दुनिया भर में माल निर्यात रुकने से आसन्न विदेशी मुद्रा संकट से मजबूर होकर दूसरा बजट पेश किया।
नई चुनौतियां :
मौजूदा वित्त मंत्री के सामने जो चुनौतियां हैं वे कृष्णमाचारी और चव्हाण के सामने आई बाधाओँ के मुकाबले कहीं ज्यादा कठिन हैं। सीतारमण के सामने एक तरह से राजकोषीय युद्ध का सामना करने की चुनौती है। कोरोना वायरस संक्रमण जैसे अज्ञात शत्रु के हमले से अर्थतंत्र को होने वाले नुकसान के भेदन के लिए सीतारमण को अपने तरकश से सभी अचूक बाण अब एक-एक कर निकालने होंगे।
समीक्षा की चुनौती :
कोविड-19 का संकट टलने के बाद आगामी कुछ महीनों में वित्त मंत्री के समक्ष प्रस्तावित बजट की फिर से समीक्षा करने की चुनौती संभव है। क्योंकि बदली परिस्थितियों में बदले लक्ष्य और मान्यताओं के साथ देशवासियों को भी बदले हुए मददगार बजट की भी दरकार महसूस होगी।
अब जबकि कोविड-19 संक्रमण के कारण देश-समाज की परिस्थिति पल-पल बदल रही है ऐसे में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण पर भारतीय अर्थव्यवस्था में संतुलन बनाए रखने की बहुत बड़ी जिम्मेदारी रहेगी। इसके लिए उन्हें संशोधित बजट प्रस्ताव भी पेश करना पड़ सकता है।
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