सबसे बड़े आर्थिक संकट में सरकार ले विशेषज्ञों की मदद : रघुराम

निर्माताओं को अपनी आपूर्ति श्रृंखला को सक्रिय करने के लिए प्रशासनिक रोड मैप तैयार करने के बारे में भी अब सोचने की जरूरत है।
सबसे बडे़ आर्थिक संकट में सरकार ले विशेषज्ञों की मदद : रघुराम
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हाइलाइट्स :

  • COVID-19 पर RBI के पूर्व गवर्नर की राय

  • रघुराम राजन ने बताया आर्थिक आपात काल

  • सरकार को दिया विशेषज्ञों से मदद का मशविरा

राज एक्सप्रेस। भारतीय रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर एवं अर्थशास्त्री रघुराम राजन ने पेंडेमिक कोविड-19 से होने वाले आर्थिक नुकसान के बारे में अपनी राय रखी है। उन्होंने अपने लिंक्डइन पेज पर पोस्ट किए गए एक नोट में भारत के मौजूदा परिदृश्य को आजादी के बाद अब तक का सबसे बड़ा आर्थिक आपातकाल करार दिया।

आर्थिक आपातकाल :

रघुराम राजन के मुताबिक भारत आजादी के बाद अब तक के सबसे बड़े आर्थिक आपातकाल का सामना कर रहा है। राजन ने भारत में कोरोनो वायरस महामारी से उपजे आर्थिक पतन को आजाद भारत के इतिहास में अब तक का "सबसे बड़ा आपातकाल" बताया।

राजन ने शनिवार को अपने लिंक्डइन पेज पर पोस्ट में एक नोट साझा किया। इसमें उन्होंने उन्हें उचित लगे वे उपाय सुझाए जिनसे देश को कोविड-19 संक्रमण के प्रसार पर अंकुश लगाने के लिए राष्ट्र भर में लागू लॉकडाउन से होने वाले आर्थिक नुकसान की स्थिति से निपटने में मदद मिल सकती है।

GDP पर असर :

पूर्व गवर्नर राजन के अनुसार भारत वर्तमान में 21 दिनों के राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के मध्य में है। ऐसे में स्थानीय व्यवसायों और प्रमुख वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं में अचानक लागू रोक, सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि को नीचे खींच सकती है। अमेरिका की तीन प्रमुख क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों से एक फिच रेटिंग्स इन्कॉर्पोरेटेड का अनुमान है कि साल 2020-21 में विकास 2 प्रतिशत की दर से 30 साल के निचले स्तर पर गिर सकता है।

राजन ने लिखा है "आर्थिक रूप से बोल रहा हूं, शायद आज भारत का सामना, आजादी के बाद सबसे बड़े आपातकाल से है। हालांकि तत्काल प्राथमिकता महामारी के प्रसार को दबाने और तैयारी में सुधार करने के लिए है, हमें अब लॉकडाउन के बाद क्या होता है, इसके लिए योजना बनानी चाहिए।"

सतर्क शुरुआत :

राजन का मानना है कि देश को पूरी तरह से लंबी अवधि के लिए बंद करना कठिन होगा। ऐसे में प्रशासन को कम संक्रमण वाले क्षेत्रों में पर्याप्त सावधानी के साथ कुछ गतिविधियों को फिर से शुरू करने के बारे में सोचना शुरू करना होगा।

राजन ने लिखा है कि “मुट्ठी भर नियोक्ता काम को दोबारा से शुरू करने के लिए आवश्यक उपाय करने में सक्षम होंगे, ऐसे नियोक्ता बहुसंख्या में हो सकते हैं।निर्माताओं को अपनी आपूर्ति श्रृंखला को सक्रिय करने के लिए प्रशासनिक रोड मैप तैयार करने के बारे में भी अब सोचने की जरूरत है।

बहु-आयामी पहुंच :

गरीब और गैर-वेतनभोगी निम्न मध्यम वर्ग के लिए जिनकी आजीविका प्रभावित हुई है, उनके लिए राजन ने राज्य के हस्तक्षेप, निजी भागीदारी और प्रत्यक्ष हस्तांतरण के एक संयोजन का सुझाव दिया।

राजन के मुताबिक राज्य और केंद्र को भोजन, स्वास्थ्य सेवा और कुछ मामलों में आश्रय के लिए सार्वजनिक और गैर सरकारी संगठन के प्रावधानों के कुछ संयोजन का पता लगाने के लिए एक साथ आना होगा। साथ ही अगले कुछ महीनों में निजी क्षेत्र को ऋण भुगतान पर स्वैच्छिक अधिस्थगन आदि के बारे में भी विचार करना चाहिए।

प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण :

राजन के अनुसार प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण महत्वपूर्ण है और जरूरतमंद परिवारों को बनाए रखने में मदगार होगा, लेकिन सभी तक नहीं पहुंचा जा सकता। राजन का मानना है कि समाज के इस वर्ग को अपेक्षित सहयोग नहीं करने के परिणाम भी हो सकते हैं।

हम पहले भी प्रवासी श्रमिक आंदोलन के रूप में इस तरह के परिणाम देख चुके हैं। अन्यथा सर्वाइव नहीं कर सकने की स्थिति में एक अन्य कारण के रूप में लोगों के लॉकडाउन की उपेक्षा कर काम पर वापस लौटने की भी संभावना है।

जरूरत ध्यान देने की :

भारत सरकार ने अब तक 1.7 लाख करोड़ रुपये के राजकोषीय समर्थन पैकेज की घोषणा की है, जो कि सकल घरेलू उत्पाद के 0.8 प्रतिशत के बराबर है। अन्य राष्ट्रों ने बड़े समर्थन पैकेजों की घोषणा की है।

चिंता का विषय :

“हमारे सीमित वित्तीय संसाधन निश्चित रूप से चिंता का विषय हैं। हालांकि, इस समय जरूरतमंदों पर खर्च करना संसाधनों का एक उच्च प्राथमिकता वाला उपयोग है, जो एक मानवीयता रखने वाले राष्ट्र के मायनों में सही भी है। साथ ही वायरस के खिलाफ लड़ाई में एक योगदान का कारक भी।”

रघुराम राजन, पूर्व गवर्नर, भारतीय रिज़र्व बैंक

राजकोषीय घाटा :

राजन का मानना है कि बजटीय बाधाओं को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता जबकि इस साल राजस्व गंभीर रूप से प्रभावित होगा। संयुक्त राज्य अमेरिका या यूरोप के विपरीत जो रेटिंग में गिरावट के डर के बिना जीडीपी का 10 प्रतिशत अधिक खर्च कर सकते हैं, हमने पहले ही भारी राजकोषीय घाटे के साथ इस संकट में प्रवेश किया है जबकि अभी और अधिक खर्च करना होगा।

सीमित संसाधनों पर मंथन :

राजन का सुझाव है कि कम महत्वपूर्ण व्यय के मुकाबले महत्वपूर्ण व्यय को प्राथमिकता दी जाए। उन्होंने कहा कई छोटे और मध्यम व्यवसाय, पहले से ही पिछले कुछ वर्षों से कमजोर हैं, उनके पास जीवित रहने के लिए संसाधन नहीं हैं।

राजन के मुताबिक हमारे सीमित संसाधनों को देखते हुए सभी को बचाया जा सकता है या नहीं इस बारे में भी विचार आवश्यक है। उन्होंने सरकार से पिछले वर्ष एसएमई द्वारा भुगतान किए गए आयकर की मात्रा तक वृद्धिशील बैंक ऋण में "पहला नुकसान" स्वीकार करने की सिफारिश भी की।

प्रतिभूतियों का विस्तार :

राजन के मुताबिक रेपो परिचालन के लिए प्रतिभूतियों का विस्तार किया जा सकता है। इसमें आपूर्तिकर्ताओं को धन देने का एक तरीका बड़े निगमों को माध्यम बनाकर हो सकता है जो इसमें सेवा प्रदान करते हैं। ये निगम बॉन्ड बाजारों के माध्यम से धन जुटा सकते हैं। हालांकि इस स्थिति में इसकी संभावना कम ही है।

राजन का मानना है कि बैंकों, म्यूचुअल फंड और बीमा कंपनियों को नए निवेश ग्रेड बांड जारी करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। हालांकि इसे अनुमति देने के लिए RBI अधिनियम को बदलना होगा। राजन ने उल्लेख किया है कि घरेलू और कॉर्पोरेट क्षेत्र में कठिनाइयां नि:संदेह वित्तीय क्षेत्र में भी प्रतिबिंबित होंगी।

बेरोजगारी का खतरा :

राजन के अनुसार अधिक तरलता ऋण नुकसान को अवशोषित करने में मदद नहीं करेगी।बेरोजगारी बढ़ने के साथ खुदरा ऋण सहित एनपीए बढ़ जाएगा। राजन का मानना है कि आरबीआई पूंजी भंडार बनाने के लिए वित्तीय संस्थान लाभांश भुगतान पर रोक लगाने पर विचार कर सकता है। फिर भी कुछ संस्थानों को पूंजी की आवश्यकता हो सकती है और आरबीआई को इसके लिए योजना बनानी चाहिए।

संकट में सुधार :

राजन ने इस सलाह के साथ अपना लेख समाप्त किया कि ऐसी स्थिति में सरकार को विशेषज्ञता और क्षमताओं वाले लोगों को आमंत्रित करना चाहिए। हालांकि अगर सरकार पीएमओ (प्रधान मंत्री कार्यालय) के अति व्यस्त लोगों से सब कुछ चलाने पर जोर देती है तो इसमें थोड़ा वक्त लगेगा।

राजन के मुताबिक अर्थव्यवस्था मौजूदा संकट से पहले भी कमजोर हो रही थी और कुछ लोग उस स्थिति में बस लौटने के बारे में उत्साहित होंगे। कहा जाता है कि भारत केवल संकट में ही सुधार करता है। उम्मीद है, यह त्रासदी हमें यह देखने में मदद करेगी कि हम एक समाज के रूप में कितने कमजोर हो गए हैं और महत्वपूर्ण आर्थिक मोर्चे पर भी हमारी राजनीति केंद्रित होगी। साथ ही स्वास्थ्य संबंधी सुधारों की हमें अत्यंत आवश्यकता है।

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