कितना है अमेरिका में भारतीय तेल भंडारण से लाभ-हानि, खतरा?

"तेल भंडारण क्षमता बढ़ाने के लिए अमेरिका में किराया देकर तेल भंडार जमा करने से जुड़ी लाभ-हानि के अलावा कुछ खतरे भी हैं।"
अमेरिका में तेल रखवाने पर सहमति।
अमेरिका में तेल रखवाने पर सहमति।Syed Dabeer Hussain - RE

हाइलाइट्स

  • अमेरिका में तेल रखवाने पर सहमति

  • कच्चे तेल के लिए देना होगा किराया

  • भारत में अपर्याप्त है तेल का भंडारण

  • खतरे भी हैं विदेश में तेल रखवाने के

राज एक्सप्रेस। भारत और अमेरिका ने आपातकालीन कच्चे तेल के भंडार पर सहयोग के लिए एक प्रारंभिक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। जिसमें भारत द्वारा अमेरिकी आपातकालीन भंडार में तेल का भंडारण करने की संभावना भी शामिल है।

गिनाए फायदे -

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक इस बारे में अधिकारियों का कहना है कि भारत की योजना अमेरिकी कच्चे पेट्रोलियम भंडार में अपने कच्चे तेल को स्टोर करने की है। न केवल आपात स्थितियों के दौरान उपयोग करने बल्कि व्यापार के लिए किसी कीमत लाभ को हासिल करने में भी इससे मदद मिलेगी। इसे पढ़िये - क्यों छाया वैश्विक ऑयल सौदे पर संकट?

प्रारंभिक समझौता -

भारत और अमेरिका ने 17 जुलाई को आपातकालीन कच्चे तेल के भंडार पर सहयोग के लिए एक प्रारंभिक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। एग्रीमेंट के तहत भारत द्वारा अमेरिकी आपातकालीन भंडार में तेल का भंडारण करने की संभावना भी शामिल है।

तेल भंडारण क्षमता बढ़ाने के लिए अमेरिका में किराया देकर तेल भंडार जमा करने से जुड़ी लाभ-हानि के अलावा कुछ खतरे भी हैं। इसे पढ़िये -गिरते ही इतिहास बना अमेरिकी क्रूड

कितने पेंच -

एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी के मुताबिक "यह एक अच्छा विचार है। लेकिन बहुत सारे नियंत्रक पेंच भी इसमें रहेंगे ।"

स्टोरेज रेंट - अव्वल तो भारत को अमेरिका में भंडारण के लिए स्टोरेज रेंट यानी भंडारण किराया चुकाना होगा। यह किराया अंतरराष्ट्रीय तेल की कीमत के आधार पर तय होगा।

विकल्प - किराये के विकल्प पर गौर करने पर पाएंगे कि इसके लिए हमारे भारत के स्वयं के रणनीतिक भंडार का निर्माण करने की जरूरत पड़ेगी। इस काम में बड़ी पूंजी लागत तो शामिल होगी ही साथ ही बनाने में कुछ साल का वक्त भी लगेगा।

अधिकारी के मुताबिक "इसलिए रणनीतिक भंडारण का तत्काल उपयोग करने उसके किराये का भुगतान करना एक छोटा शुल्क है।"

निजी कंपनियों का दखल -

आपको पता हो अमेरिका में स्ट्रेटेजिक पेट्रोलियम रिजर्व (SPR) यानी सामरिक या रणनीतिक पेट्रोलियम भंडार निजी कंपनियों द्वारा बनाए जाते हैं। इनका रख-रखाव भी निजी कंपनियां करती हैं।

खेल कीमत का -

अमेरिकी भंडार में संग्रहीत ऑयल का उपयोग देश की अपनी जरूरतों के लिए किया जा सकता है। साथ ही व्यापारिक उद्देश्य से मूल्य लाभ भी इस तरीके से हासिल हो सकता है।

भारत यदि अमेरिकी भंडार में तेल खरीदकर उसे संग्रहीत करता है, तब तेल की कीमतों में वृद्धि होने पर मुनाफा तय है। हालांकि यदि इसकी कीमतें गिरती हैं तो नुकसान भी पक्का है। मतलब सारा खेल कीमतों का है।

तो...उपयोग से वंचित!

इसके अलावा समुद्री मार्ग बाधित होने की दशा में अमेरिका में रखे भारतीय तेल भंडार का भारत चाहकर भी समय पर उपयोग करने से वंचित रह सकता है। दरअसल अमेरिका से तेल लाने में एक महीने का समय लगने की जानकारी विश्लषकों ने दी।

बाजार के जानकारों का कहना है अमेरिका में तेल का भंडारण एक प्रकार की फिजिकल हेजिंग या भौतिक प्रतिरक्षा है और सभी हेजिंग एक लागत पर ही संभव हैं।

अग्रिम भुगतान –

अधिक महत्वपूर्ण बात बड़ी मात्रा के भंडारण में कच्चे तेल की खरीद पर अग्रिम भुगतान शामिल है। साथ ही कंपनियों को इसके लिए काफी पूंजी रोकनी होगी।

गणित तेल की मांग का -

भारत ने कुछ महीने पहले अमेरिका में तेल के भंडारण की संभावना तलाशना शुरू कर दिया था। लेकिन COVID-19 की मार से तेल की मांग ज्यादा बढ़त नहीं बना सकी।

दुनिया भर में अतिरिक्त तेल के लिए अग्रणी भंडारण केंद्र क्षमता के मान से लबालब भरे थे। इतना ही नहीं जहाजों में भी एक इंच अतिरिक्त तेल भरने की जगह नहीं बची थी। भले ही तेल की कीमतों ने वापसी कर ली हो लेकिन कोविड-19 से पहले की तुलना में मांग फिलहाल कम है।

अगर भारत को अमेरिकी तेल उत्पादक द्वारा बनाई गई रणनीतिक सुविधा को किराए पर लेना है तो ऐसे में अमेरिका में तेल का भंडारण करने से बहुत फायदा हो सकता है। हालांकि दाम कम होने की स्थिति में किराये के अतिरिक्त बोझ के लिए भी तैयार रहना होगा।

समझौते के जानकार सूत्र के मुताबिक "वाणिज्यिक सौदे को इस तरह से संरचित किया जा सकता है कि मांग कम होने पर भी हम उत्पादन को बनाए रखने के लिए अमेरिकी फर्म का समर्थन करें और बदले में हमें इसके भंडारण की सुविधा मिलती रहे।"

समझौता पत्रक पर हस्ताक्षर -

हाल ही में 17 जुलाई को भारत और अमेरिका ने एक समझौता पत्रक पर हस्ताक्षर किए हैं। जिसमें अमेरिका में रणनीतिक पेट्रोलियम रिजर्व (एसपीआर) की स्थापना पर भारत के साथ तकनीकी जानकारी साझा करने की अनुमति शामिल है।

संधि भारत को अमेरिकी एसपीआर में अपने तेल के भंडारण की संभावना का पता लगाने की भी अनुमति देती है। जिसमें टेक्सास और लुइसियाना की भूमिगत गुफाएं शामिल हैं।

मार्च में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने एसपीआर को लगभग 714 मिलियन बैरल की पूरी क्षमता से भरने का आदेश दिया था, लेकिन कांग्रेस एक खरीद को फंड देने में विफल रही।

ऑस्ट्रेलिया का हवाला -

एमओयू पर हस्ताक्षर करने के बाद पत्रकारों से बात करते हुए, अमेरिकी ऊर्जा सचिव डैन ब्रोइलेट ने कहा था कि भारत संधि हाल ही में ऑस्ट्रेलिया के साथ बनी योजना को प्रतिबिंबित कर सकती है।

जिसने अप्रैल में अमेरिकी एसपीआर में स्टोर करने के लिए क्रूड खरीदकर एक आपातकालीन तेल भंडार के निर्माण के लिए लगभग 60 मिलियन अमरीकी डालर खर्च करने की प्रतिबद्धता जताई थी।

स्थिर हुए भाव -

इस साल की शुरुआत में कोविड-19 यानी कोरोनावायरस डिजीज नाइनटीन के कारण वैश्विक तेल की कीमतों में भारी गिरावट आ गई थी। महामारी बनकर उभरे कोरोनोवायरस के कारण मांग में कमी आने से तेल का पूरा खेल गड़बड़ा गया। लेकिन लगभग 43 डॉलर प्रति बैरल पर स्थिर हो गया है। इसे पढ़िये - कोरोना वायरस की दहशत से बदला तेल का खेल!

"हम भारत के रणनीतिक तेल भंडार को बढ़ाने के लिए कच्चे तेल के अमेरिकी रणनीतिक पेट्रोलियम भंडार में भंडारण के लिए चर्चा के एक उन्नत चरण में हैं।"

धर्मेंद्र प्रधान, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस एवं इस्पात मंत्री, भारत

शुक्रवार को ब्रोइलेट के साथ दूसरे भारत-अमेरिकी रणनीतिक ऊर्जा भागीदारी कार्यक्रम के बाद उन्होंने इस बारे में जानकारी दी।

अमेरिकी क्षमता -

अमेरिका के पास अपने रणनीतिक पेट्रोलियम रिजर्व में 714 मिलियन बैरल तेल भंडारण की क्षमता है। जो दुनिया में आपातकालीन कच्चे तेल की सबसे बड़ी आपूर्ति है।

भारतीय भंडारण क्षमता -

इसकी तुलना में भारत पूर्वी और पश्चिमी तट के तीन स्थानों पर भूमिगत भंडारण में कच्चे तेल का 5.33 मिलियन टन (लगभग 38 मिलियन बैरल) भंडार रखता है। जो कि देश की 9.5 दिनों की जरूरतों को पूरा करने के लिए शायद ही पर्याप्त है।

IEA में सुविधा -

अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) ने अपने सदस्यों को रणनीतिक भंडार में कम से कम 90 दिनों का स्टॉक रखने के लिए कहा है। सूत्रों के मुताबिक भारत भंडारण क्षमता में 6.5 मिलियन टन का अतिरिक्त विस्तार करना चाहता है।

चौथा सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य –

इसलिए भारत अब अमेरिका में कुछ तेल को स्टॉक करने के लिए भंडार केंद्र को किराये पर लेने की संभावना भी तलाश रहा है। ताकि इस भंडार का उपयोग अत्यधिक मूल्य अस्थिरता या आपूर्ति गड़बड़ाने के समय किया जा सके। यूएस क्रूड के लिए भारत चौथा सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य है।

"2017 और पिछले वर्ष के बीच, भारत में अमेरिकी कच्चे तेल का निर्यात लगभग 10-गुना बढ़कर लगभग 2,50,000 बैरल प्रति दिन हो गया। मार्च 2016 और इस वर्ष मई के बीच 234 बिलियन क्यूबिक फीट से अधिक 68 एलएनजी लदान भारत को निर्यात किया गया।"

– डैन ब्रोइलेट, अमेरिकी ऊर्जा सचिव

छठा सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता -

अमेरिका नंबर के मामले में भारत का छठा सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता है। भारत ने 2017 में अमेरिका से कच्चे तेल का आयात शुरू किया। क्योंकि भारत ओपेक देशों से परे अपनी आयात टोकरी में विविधता लाना चाहता था।

भारत ने 2017-18 में अमेरिका से 1.9 मिलियन टन (38,000 बीपीडी*) और 2018-19 में 6.2 मिलियन टन (1,24,000 बीपीडी) तेल खरीदा। *बीपीडी- बैरल्स पर डे

इतनी निर्भरता -

भारत तेल की अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए आयात पर 85 प्रतिशत निर्भर है। भारत ने अप्रैल 2019 से मार्च 2020 के दौरान विदेशों से 101.4 मिलियन टन कच्चा तेल खरीदा।

खतरा यह भी –

भारत ने यूएई और सऊदी अरब को अपने भंडारण की सुविधा की पेशकश की है जबकि जापान, न्यूजीलैंड और दक्षिण कोरिया के बीच समझौता है कि जरूरत पड़ने पर वे एक-दूसरे के भंडार से तेल निकाल सकते हैं।

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क्या है सऊदी अरामको, कैसे करता है काम?

कच्चे माल को बनाए रखना एक नई अवधारणा नहीं है, लेकिन किसी अन्य देश की आपातकालीन ऊर्जा आपूर्ति को संग्रहीत करना इस विश्वास का एक बड़ा हिस्सा है कि रिजर्व बनाए रखने वाला देश वास्तव में आपातकाल के दौरान इसे वापस कर देगा।

डिस्क्लेमर – आर्टिकल प्रचलित रिपोर्ट्स पर आधारित है। इसमें शीर्षक-उप शीर्षक और संबंधित अतिरिक्त प्रचलित जानकारी जोड़ी गई हैं। इस आर्टिकल में प्रकाशित तथ्यों की जिम्मेदारी राज एक्सप्रेस की नहीं होगी।

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