कितनी चिंता करना चाहिए भारत को चाइनीज कंपनियों से?

"कुछ मायनों में चीनियों में इस समझ की एक बुनियादी कमी है कि रणनीतिक रूप से भारतीय कैसे सोचते हैं और कैसे राष्ट्रीय मूल्यों पर अटल हैं? समझ की यही कमी चीन को भारत का बड़ा भागीदार बनने से रोक रही है।"
भारत को भारतीय बाजार में चीनी वर्चस्व को चुनौती देने कुछ खास मुद्दों पर गौर करना होगा।
भारत को भारतीय बाजार में चीनी वर्चस्व को चुनौती देने कुछ खास मुद्दों पर गौर करना होगा।Syed Dabeer Hussain - RE

हाइलाइट्स

  • तो अगले 20 साल होंगे भारत के

  • समुद्री लाइनें, पाकिस्तान से संबंध

  • चाइनीज मंदी और अमेरिका से रार

  • भारत की निर्भरता और फिल्मी सीख

राज एक्सप्रेस भारत-चाइना व्यापारिक रिश्तों के बीच युद्ध की पुरानी-मौजूदा खटास है, तो पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम में चीन के छिपे सहयोग की तल्खी भी। समुद्र में चौकसी करते भारतीय बेड़ों पर भी चीन रोढ़े लगाता है। ऐसे में भारत को भारतीय बाजार में चीनी वर्चस्व को चुनौती देने इन कुछ खास मुद्दों पर गौर करना होगा।

क्या हमें चिंता करनी चाहिए?

चीन के साथ भारत के संबंध सामान्य नहीं रहे हैं। मुख्य रूप से पाकिस्तान के साथ चीन के जटिल संबंधों के कारण और 1962 के युद्ध और डोकलाम में सीमा पर सामयिक तनाव के कारण भी भारत-चीन रिश्तों की स्थिति बदलती रहती है।

भूलना तो चाहा....

कहा जाता है भारतीय शायद 1962 के युद्ध को भुला भी सकते थे यदि चीन पिछले कई सालों से पाकिस्तान को उकसाने और उसके चोरी छिपे जारी परमाणु कार्यक्रम में सहयोग न प्रदान करता।

इस बारे में कई खबरें देश-दुनिया में चर्चा का केंद्र रह चुकी हैं कि पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम के लिए चीन के समर्थन को किस तरह सीआईए ने ट्रैक किया था। चाइनीज विचारधारा को लेकर भी भारतीय जनमानस में शंका प्रबल रही है।

समुद्री लाइनें -

चीन की रणनीति चायनीज सेना और वाणिज्यिक सुविधाओं के नेटवर्क और संचार की समुद्री लाइनों के साथ संबंधों को संदर्भित करती है, जो चीन की मुख्य भूमि से सूडान पोर्ट तक फैली हुई है।

समुद्री लाइनें पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश, मालदीव और सोमालिया में रणनीतिक समुद्री केंद्रों के साथ कई प्रमुख समुद्री अवरोधक केंद्रों से होकर गुजरती हैं।

समुद्र की चिंता -

चीनी रणनीतिक विचारकों के बीच यह धारणा है कि भारत को खाड़ी में रोकने के लिए पाकिस्तान का इस्तेमाल किया जाना चाहिए और भारत को एक सशक्त प्रतिद्वंद्वी के रूप में उभरने से रोकना चाहिए।

समझ का अंतर -

कुछ मायनों में, चीनियों के बीच इस समझ की एक बुनियादी कमी है कि भारतीय रणनीतिक रूप से कैसे सोचते हैं और कैसे राष्ट्रीय मूल्यों पर अटल हैं?

समझ की यही कमी चीन को भारत का बहुत बड़ा भागीदार बनने से रोक रही है। यह वह बाधा है जो चीन को भारत में उसकी आर्थिक रणनीति को लागू करने में आड़े आ रही है।

चाइनीज मंदी का अर्थ -

विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के पेरिस स्थित अंतरराष्ट्रीय समूह द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार चीनी अर्थव्यवस्था में मंदी का मतलब है कि चीन को धीरे-धीरे एकमात्र बड़ी अर्थव्यवस्था पर अपनी निर्भरता बढ़ानी होगी।

अमेरिका से रार -

अमेरिका से बढ़ते व्यापारिक टकराव और चीन की बढ़ती उत्पादन लागत चीन को भारत पर और अधिक निर्भर बना देगी। स्पष्ट है निर्भरता बढ़ने पर चीन की सरकार को भारत से और अधिक समझदारी से पेश आना पड़ेगा जैसा कि वह इन दिनों बरतने का नाटक कर रहा है। भारत को भी अगले दशक को ध्यान में रखकर सौदेबाजी आधारित नीतियों पर ध्यान देना होगा।

भारत की निर्भरता -

यदि भारत पड़ोसी चीन की सोच में सुधार नहीं ला पाता है, तो भारत को विशेष रूप से अपने कारखानों की चीन पर निर्भरता कम करने के प्रयास के अपने मार्ग पर डटे रहना चाहिए।

इतिहास से भी स्पष्ट है कि जब दो देशों की अर्थव्यवस्थाओं का गहरा अंतर्संबंध और सहजीवन होता है, तो राजनीतिक संबंध और अधिक सौम्य एवं अनुकूल हो जाते हैं। या फिर इसके विपरीत।

हालांकि वर्तमान में अमेरिका और चीन के बीच क्या हो रहा है? दोनों देश नया चलन लागू कर रहे हैं। जिसका अर्थ यह है कि मजबूत आर्थिक निर्भरता अहंकार और शक्ति के टकराव से बचने की कोई गारंटी नहीं है।

फिल्मों से सीख -

हाल ही में भारतीय फिल्मों की चीन में सफलता से भी साफ है कि भारत भी चाइनीज मार्केट में सेंध लगाने की दखल रखता है। इन फिल्मों की सफलता से पसंद-नापसंद और समझ का स्तर भी पता चलता है। इसमें कुशल विपणन नीति, स्थानीय लोकप्रिय चेहरे का चुनाव भी खास है।

भारत और विदेश में बड़ी संख्या में ऐसे भारतीय हैं जिनको चीनी उपभोक्ता मानसिकता और संस्कृति की काफी अच्छी समझ है।

भारत को ऐसे विशेषज्ञों की तेजी से पहचान करनी चाहिए और व्यक्तियों के इस समूह की राय पर अधिक मूल्य देना शुरू करना चाहिए। ताकि टक्कर बराबरी की हो सके।

रणनीतिक समूह का गठन -

भारत सरकार को एक रणनीतिक समूह का गठन करना चाहिए। इसमें सुरक्षा विशेषज्ञों, उद्योग विशेषज्ञों, शोधकर्ताओं और प्रतिनिधियों का समावेश होना चाहिए। ताकि समूह के चयनित सदस्य चीनी सोच से निपटने के लिए निरंतर बुद्धिमत्ता प्रदान करने और चीन में भारतीय कंपनियों के लिए सफलता का सर्वोत्तम मार्ग प्रशस्त कर सकें।

इस बीच, भारत को अपने औद्योगिक और विनिर्माण आधार को बढ़ाने, अपनी जनसंख्या वृद्धि दर को नियंत्रण में लाने और चीन से चीन में प्रतिस्पर्धी बनने के लिए और अधिक नवाचार करना शुरू करना होगा।

आत्मनिर्भर भारत का सपना -

मौजूदा भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत सरकार ने आत्मनिर्भर भारत का सपना देखा है। यदि पिछले 20 वर्ष चीन के थे, तो इसमें कोई संदेह नहीं है कि; स्थिति नियंत्रण में रहने और भारतीय एकजुटता के दम पर आगामी 20 वर्ष भारत के होंगे। जय भारत।

डिस्क्लेमर आर्टिकल प्रचलित रिपोर्ट्स पर आधारित है। इसमें शीर्षक-उप शीर्षक और संबंधित अतिरिक्त प्रचलित जानकारी जोड़ी गई हैं। इस आर्टिकल में प्रकाशित तथ्यों की जिम्मेदारी राज एक्सप्रेस की नहीं होगी।

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