भारत में GST परिकल्पना कितनी हुई साकार?

“अब तक हासिल आर्थिक विकास अथवा राजस्व संग्रह के रुझानों के आधार पर GST को अभी से आंकना ज़रा जल्दबाजी होगी।”
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हाइलाइट्स :

  • “12 /495” क्रिकेट नहीं GST स्कोर है

  • अब टैक्स पर टैक्स की परेशानी नहीं

  • ट्रांसपोर्ट को जीएसटी से मिली गति

  • एकल कर प्रणाली से सुधरा कामकाज

  • वस्तुओँ के दामों में भी आई गिरावट

राज एक्सप्रेस। गुड्स एंड सर्विसेस टैक्स (GST-जीएसटी) की स्थापना पूर्व से लेकर उसके लागू होने के बाद तक पक्ष-विपक्ष में तमाम तर्क दिए गए। हाल ही में जीएसटी कलेक्शन में आई गिरावट के कारण भी फिर एक बार उस पर सवाल उठे। जीएसटी सफल है या फिर नाकाम? कैसे इससे इकोनॉमी में उछाल आ सकता है? इन तमाम पहलुओं के बारे में कदम दर कदम जानें हमारे संग -

क्यों बढ़ रहा प्रेशर?-

पॉलिसी मेकर्स को GST कलेक्शन में आई गिरावट परेशान कर रही है। इससे नीति निर्माताओँ पर GST की दरों में बढ़ोत्तरी करने का दवाब बढ़ रहा है।

बढ़ गई रफ्तार-

सड़क मंत्रालय के एक विश्लेषण के अनुसार भारत में पूर्व में लागू तमाम केंद्रीय और राज्य स्तरीय टैक्स के बजाए एक मात्र कर संरचना के तौर पर गुड्स एंड सर्विस टैक्स (GST) यानी माल और सेवा कर के लागू होने के बाद रसद उद्योग को गति मिली है।

अंतर-

इन आंकड़ों से यूं समझा जा सकता है, कि पहले कोई कमर्शियल ट्रक एक दिन में औसतन सवा दो सौ किलोमीटर की दूरी पूरी कर पाता था। जिसमें उसके कुल परिवहन समय का पांचवा हिस्सा अंतर-राज्य सीमा नाका जांच चौकी पर खर्च होता था।

दामों में कमी-

सड़क मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक; भारत में जुलाई 2017 में 17 केंद्रीय और राज्य करों को एक माल और सेवा कर (जीएसटी- GST) के दायरे में लाये जाने के बाद ट्रकों के पहियों की चाल सुधरने से वस्तुओं के दामों में कमी आई है।

कॉस्ट में कमी-

देश में बेची जाने वाली वस्तुओं के दाम तय करने वाली लॉजिस्टिक कॉस्ट में भी पहले के 14 फीसदी के मुकाबले 10 से 12 प्रतिशत तक की कमी आई है। एकल कर प्रणाली के कारण चौकियों पर पहले के मुकाबले कम समय लगने से परिवहन समय में सुधार हुआ है। पहले के रोजाना औसतन 225 किलोमीटर के सफर के मुकाबले अब रसद वाहन रोजाना 3 से सवा 3 सौ किलोमीटर तक का सफर पूरा कर रहे हैं।

लंबा अंतराल-

एक तरह से जीएसटी 17 सालों के लंबे वार्तालाप और योजना का नतीजा है। कई चरणों के कर की दर में आई कटौती से वॉशिंग मशीन, टेलिविज़न, कैमरा और अन्य दीगर घरेलू चीजों पर टैक्स निर्धारण में सहूलियत आई है।

जीएसटी से घरेलू वस्तुओं के दामों में कमी आई, जबकि मुद्रास्फीति नियंत्रण में रही। कुछ सेवाओं को छोड़ दें, तो वस्तुओं पर टैक्स जीएसटी पूर्व युग के मुकाबले कम कहे जा सकते हैं, रेस्तरां और निर्माणाधीन संपत्तियों को दर में कटौती से लाभ हुआ है।

12 /495- ये क्रिकेट का स्कोर नहीं बल्कि भारतीय कर संरचना में जीएसटी के सुधार के बाद की स्थिति है। इस फॉर्मूले से व्यवसायों और व्यापारियों को मिलने वाली राहत-लाभ को समझा जा सकता है। जी हां GST के लागू होने के पहले तक इस वर्ग को कुल जमा 495 प्रपत्रों को जमा करना होता था लेकिन जीएसटी के बाद से अनिवार्य प्रपत्रों की संख्या घटकर मात्र 12 रह गई है। हालांकि इसके अलावा भी कुछ सुझाव हैं जिन्हें अमल में लाकर जीएसटी को और ज्यादा प्रभावी और जनहितैषी बनाया जा सकता है।

“कोई भी नया नियम लागू करने से पहले संबंधित वर्ग को इतना समय दिया जाना चाहिए जिससे वो नई व्यवस्था को समझ सके। जीएसटी को लागू करने में जल्दबाजी की गई लगता है। हर महीने बिलिंग-रिटर्न की जानकारी देने की बाध्यता से बिज़नेस और बिज़नेसपर्सन को खासी परेशानी हो रही है।”

हेमराज अग्रवाल, प्रवक्ता, महाकोशल चैम्बर ऑफ़ कॉमर्स & इंडस्ट्री, जबलपुर (मप्र.)

ताकत GST की-

भारतीय संविधान निर्माण के बाद जीएसटी को नए कर सुधार के तौर पर लागू करना आसान नहीं था। टैक्स के ऊपर टैक्स की अनिवार्यता खत्म होने और राज्यों में टैक्स कानून की एकरूपता ही जीएसटी की सुविधा और शक्ति का सशक्त प्रमाण है। कर सुधार प्रक्रिया के कारण बहुत से केंद्र और राज्य के प्रभुत्व वाले अप्रत्यक्ष कर संघीय निकाय ‘जीएसटी परिषद’ के दायरे में आ गए।

GST की चुनौतियां-

कर सुधार में प्रस्तावित जीएसटी के बदलावों से जुड़ी सूचनाओं, खबरों के आधे-अधूरे और भ्रामक प्रचार-प्रसार, यहां तक कि गलत रिपोर्टिंग के कारण भी जीएसटी के प्रभावी होने के एक सप्ताह पहले उत्पादकों ने उत्पादन दर कम कर दी थी।

ऐसा माना जाता है कि, मार्च 2017 को समाप्त होने वाली चौथी तिमाही में 7 प्रतिशत विस्तार की तुलना में वित्तीय वर्ष 2018 की जून तिमाही में ग्रॉस डॉमेस्टिक प्रॉडक्ट (GDP) यानी सकल घरेलू उत्पाद गिरावट के साथ 6% रहा।

यूं बदली तस्वीर-

लेकिन इसके बाद नीति निर्माताओं के चालान मिलान और रिटर्न भरने की समय सीमा में बढ़ोत्तरी से जुड़े कुछ प्रावधानों के निलंबन के कारण बाद की तिमाहियों के दौरान स्थिति में सुधार की बयार आई। वित्त वर्ष 18 की आखिरी तिमाही तक विकास दर 8.1% तक जा पहुंची। हालांकि इसके बाद अर्थव्यवस्था का ठंडा दौर शुरू हो गया। फाइनेंसियल इयर 20 की दूसरी तिमाही तक यह प्रवृत्ति बरकरार रही विकास दर गिरावट के साथ 4.5 फीसदी रही। गौरतलब है मार्च 2013 के बाद से यह इसकी सबसे सुस्त रफ्तार है।

मिलेगी उछाल-

एक तरह से गहराती आर्थिक मंदी जीएसटी से जुड़ी धारणाओं का परीक्षण कर रही है। कुछ अन्य अर्थव्यवस्थाओं के पूर्व के अनुभव के आधार पर इस एक और संभावना को बल मिलता है कि, GST से आर्थिक विकास दर में 1 से 2 फीसदी की उछाल आ सकती है।

“GST के रेट फाइनल नहीं हैं और इनको कभी फाइनल भी नहीं माना जाना चाहिए। दरों में कमी एक सतत प्रक्रिया है। नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद ने चार स्लैब के बजाए 2 स्लैब करने की अनुशंसा की है, जिससे बदलाव आएगा। रेट गिराने से रेवेन्यु कलेक्शन बढ़ता है जिसके हाल ही में पॉजिटिव संकेत मिले हैं। हालांकि सभी कर एक साथ कम करना संभव नहीं है।"

प्रो. एनजी पेंडसे, विभाग प्रमुख, विभाग-अर्थशास्त्र, रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय, जबलपुर, (मप्र.)

आर्थिक विकास को समर्थन देने के लिए एक कुशल-सरल और परेशानी-दोष मुक्त कर प्रणाली की उम्मीद की गई थी। इस मुद्दे पर विशेषज्ञों का कहना है कि अभी तक मिले आर्थिक विकास या राजस्व संग्रह में रुझान से जीएसटी को आंकना जल्दबाजी होगी।

“इसमें कोई संदेह नहीं है कि उपभोक्ताओं और व्यवसायों को जीएसटी से लाभ हुआ है, लेकिन विविध राज्य अर्थव्यवस्था वाले एक बड़े देश में, जीएसटी की पूरी क्षमता का एहसास करने में लगभग पांच साल लगेंगे। भारतीय अर्थव्यवस्था उस लक्ष्य के अभी आधे रास्ते में हैं। कहा जा सकता है जीएसटी जितना जल्द स्वीकार किया जाएगा, वृद्धिशील परिवर्तन भी उतना ही जल्द क्रियाशील हो पाएंगे। कुल मिलाकर, जीएसटी सुधार से व्यवसाय जगत का कल्याण हुआ है।”

रितेश श्रीवास्तव, प्रोप्राइटर, तृप्ति इंजीनियरिंग, इंदौर

जीएसटी संग्रह में गिरावट नीति निर्माताओं के लिए परेशानी का सबब है। इससे राज्यों को राजस्व हानि के बदले में चुकाए जाने वाले पूर्व में वादा किए गए मुआवजे के भुगतान में नरेंद्र मोदी प्रशासन की क्षमता पर असर पड़ रहा है। साथ ही नीति निर्माताओं पर जीएसटी की दर को बढ़ाने का भी दवाब बढ़ रहा है। जीएसटी लेनदेन पर कर है। राजस्व संग्रह और विकास दर में सीधा संबंध है। यदि विकास लड़खड़ाता है तो राजस्व का बढ़ना असंभव है।

हालांकि, पेट्रोलियम, बिजली और रियल एस्टेट, निर्माणाधीन संपत्तियों के अलावा, जीएसटी से बाहर हैं, अप्रत्यक्ष कर प्रणाली राज्यों में अधिक एकीकृत हो गई है। इससे व्यापार आसान हुआ है। जीएसटी को और ज्यादा सरल बनाया जा सकता है, लेकिन यह पहले की अप्रत्यक्ष कर प्रणाली की तुलना में अधिक सरल प्रणाली है।

“जब एक कर संरचना की बात है, तो पेट्रोल-डीजल को भी जीएसटी के दायरे में लाना चाहिए। मध्य प्रदेश राज्य में इनका दाम अधिक होने से न केवल कारोबारी प्रभावित हो रहे हैं, बल्कि इकोनॉमी भी प्रभावित हो रही है। प्रदेश में महंगा होने के कारण अक्सर वाहन चालक अन्य प्रदेशों से पेट्रोल-डीजल भराते हैं। इसमें शक नहीं कि, महंगे पेट्रोल-डीजल के कारण उससे अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ी वस्तुएं भी स्वतः महंगी हो जाएंगी।”

हेमराज अग्रवाल, प्रवक्ता, महाकोशल चैम्बर ऑफ़ कॉमर्स & इंडस्ट्री, जबलपुर

“पेट्रोल-डीजल पर काउंसिल ऑफ मिनिस्टर्स के एक राय नहीं होने से ये जीएसटी के दायरे में नहीं आ पाए हैं। इस कारण देश के राज्यों में इनके दाम में असमानता है। जब पेट्रोल-डीजल दायरे में आ जाएंगे तब निश्चित ही इनके दामों में भी क्रमबद्ध रूप से कमी आती जाएगी।”

प्रो. एनजी पेंडसे, विभाग प्रमुख, विभाग-अर्थशास्त्र, रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय, जबलपुर, (मप्र.)

व्यापार की आंतरिक बाधाओं को दूर करने और कर दक्षता से नियत समय में अर्थव्यवस्था में लाभांश मिलने की उम्मीद है। एक प्रौद्योगिकी-उन्मुख कर प्रणाली से करारोपण प्रक्रिया को विस्तृत रूप मिलेगा साथ ही जीएसटी टीम को भी व्यापक रूप से मदद मिल सकेगी। इसके साथ ही वर्तमान में छूट गए क्षेत्रों को शामिल करने और इंट्रा-कंपनी सेवा जैसे मुद्दों पर भी स्पष्टता मिल पाएगी।

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