150 सालों में मात्र 7 लीडर वाले समूह में लीडरशिप पर बवाल!

“दोनों लीडर्स को नए भारत के लिए नए जमाने का नेता कहा जा सकता है। भारत में टाटा के बाद मिस्त्री तेजी से बढ़ रहे हैं। दोनों के पास अभी भी टाटा ग्रुप और भारत में योगदान करने के लिए बहुत कुछ बाकी है।"
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हाइलाइट्स :

  • ताकि बरकरार रहे गौरवशाली इतिहास

  • टाटा और मिस्त्री के पास सुनहरा मौका

  • टाटा के पूर्व अफसर ने रखी मसले पर राय

राज एक्सप्रेस।150 सालों के गौरवशाली इतिहास को बरकरार रखने रतन टाटा और साइरस मिस्त्री के बीच स्थायी समाधान ही एकमात्र रास्ता रह जाता है। नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्राइब्यूनल (एनसीएलएटी) ने टाटा को साइरस मिस्त्री को दोबारा टाटा सन्स का एग्जिक्युटिव चेयरमैन पद बहाल करने कहा है। टाटा ग्रुप को सुप्रीम कोर्ट में जाने के लिए चार सप्ताह का समय मिला है।

सुप्रीम कोर्ट जाने की मंशा-

इस चार सप्ताह की गुंजाइश से शायद दोनों को एक अवसर मिल पाएगा कि वो अपने स्तर पर समस्या का समाधान कर सकें। न्यायाधिकरण ने कहा कि बहाली आदेश चार सप्ताह बाद अमल में आ पाएगा। NCLAT के फैसले के खिलाफ टाटा संस ने सुप्रीम कोर्ट जाने की मंशा जताई है।

पूर्व अफसर की राय-

टाटा ग्रुप में चीफ इथिक्स ऑफिसर रहे मुकुंद गोविंद राजन का मानना है। “टाटा ट्रस्ट्स के लीडर के रूप में रतन टाटा और टाटा संस में एक महत्वपूर्ण शेयरधारक के रूप में मिस्त्री के पास स्टेट्समैनशिप दिखाने का बढ़िया अवसर है। उस संस्थान के लिए जिसके 151 सालों के शानदार सफर में मात्र 7 लीडर रहे।“

हितधारकों को असमंजस-

नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल (NCLAT) ने NCLAT के पहले वाले फैसले के खिलाफ शापूरजी पालनजी समूह की अपील पर हालिया फैसला देकर हलचल बढ़ा दी है। टाटा संस के एक्जिक्यूटिव चेयरमैन बतौर साइरस मिस्त्री की बहाली के आदेश की व्याख्या पर कानूनी समुदाय में दो राय बन गई है। अभी इस बारे में स्पष्ट नहीं है कि उच्चतम न्यायालय में आगे की अपील से कैसे निपटा जा सकता है। इस बीच इतना जरूर स्पष्ट है कि मामले में स्पष्टता उभरने तक टाटा समूह के हितधारकों पर अनिश्चितता के बादल मंडराते रहेंगे।

बाधाओँ का मुकाबला-

मुकुंद गोविंद राजन के मुताबिक साल 2001 और टाटा फाइनेंस से जुड़े मामलों की खबरें सुर्खियां बनने के बाद भी टाटा समूह ने परिस्थितियों का डटकर सामना किया और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ब्रांड इमेज लगातार बढ़ाई। 2001 में टाटा फाइनेंस घोटाले और 2010 के तथाकथित 2 जी घोटालों के आरोपों के बावजूद हर बार, टाटा ब्रांड मजबूत हुआ। आज भी ब्रांडनेम टाटा को अंतरराष्ट्रीय ब्रांड सलाहकार फर्म इंटरब्रांड ने सबसे शक्तिशाली भारतीय कॉर्पोरेट ब्रांड का दर्जा दिया है। हालांकि इस बार मामला समूह के आंतरिक मामलों से जुड़ा है, यह संकट अलग है, जिसमें ब्रांड के संचालन के साथ ही हितधारकों का भी हित समाहित है।

विनम्र और जमीनी लीडर-

टाटा समूह के दो कद्दावर नायक रतन टाटा और साइरस मिस्त्री के बीच मत और मनभेद जाहिर हो रहे हैं। राजन के मुताबिक अतीत में काम का अनुभव बताता है कि दोनों पूरी तरह से सज्जन, विनम्र और जमीनी लीडर हैं। तकनीक की अच्छी समझ और बदलती दुनिया के बारे में जिज्ञासु भी हैं। दोनों लीडर्स को नए भारत के लिए नए जमाने का नेता कहा जा सकता है। भारत में उदारीकरण के दौर में टाटा के बाद मिस्त्री तेजी से बढ़ रहे हैं। दोनों के पास अभी भी टाटा और भारत में योगदान करने के लिए बहुत कुछ है।

एनसीएलएटी ने कहा-

एनसीएलएटी ने सुप्रीम कोर्ट में अपील करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया है। उम्मीद जताई जा रही है कि इस कालखंड में शायद कोई रास्ता मिल सके। ऐसे समय में जब कॉर्पोरेट भारत को रोल मॉडल की सख्त जरूरत है, समूह के कई शुभचिंतक उम्मीद कर रहे होंगे कि, टाटा और मिस्त्री अपनी टीमों को एक स्थायी संकल्प पर पहुंचने के लिए निर्देशित करेंगे। जो कि, ब्रांड के सुरक्षित भविष्य के लिए भी जरूरी रहेगा।

स्वर्णिम इतिहास-

टाटा ब्रांड ने साल 2018 में स्थापना के 150 वर्ष पूरे किए हैं। इस कारण शेयरहोल्डर्स को भी गर्व होगा कि वो इतने सालों से जारी संगठन का हिस्सा हैं। इतना ही नहीं संगठन में नेतृत्व का लंबा कार्यकाल काफी सबल पक्ष रहा है। गौरतलब है कि, 150 सालों के इतिहास में नेतृत्व की बागडोर मात्र 7 लोगों के हवाले रही। समूह के मूल्य निर्धारित सिद्धांत से भी टाटा ग्रुप भारत में एक बड़ा नाम है। ऐसे में नेतृत्व को लेकर मची तकरार से समूह की साख भी प्रभावित होगी।

चेयरमैन के बारे में-

दो मौकों को छोड़कर टाटा परिवार से ही टाटा ग्रुप का चेयरमैन बना है। जमशेदजी एन. टाटा इसके पहले चेयरमैन थे। साइरस मिस्त्री से नाखुश टाटा संस ने चेयरैमन के पद से हटा दिया। मिस्त्री मात्र चार साल ग्रुप संग जुड़ पाए। रतन टाटा को दो बार मिलाकर 150 सालों में मात्र 6 चेयरमैन रहे। दरअसल टाटा परिवार में ज्यादातर लोगों ने शादी नहीं की इसलिए उत्तराधिकारी का सवाल नहीं उठा।

इतने चेयरमैन-

टाटा समूह की आधारशिला जमशेदजी एन. टाटा ने रखी थी वे समूह के पहले चेयरमैन रहे। उनके बाद सर दोराबजी टाटा चेयरमैन बनाए गए। टाटा ग्रुप के तीसरे चेयरमैन नौरोजी सकलतवाला हैं जबकि उनके बाद जहांगीर रतनजी दादाभाई टाटा बने चैयरमैन जो समूह में सबसे अधिक समय तक चेयरमैन रहे।

उनके बाद रतन टाटा ने टाटा ग्रुप की कमान सफलतापूर्वक संभाली। रतन टाटा के बाद चेयरमैनशिप साइरस पालोनजी मिस्त्री को दी गई थी। लेकिन बाद में रतन टाटा को ही अंतरिम चेयरमैन बना दिया गया।

दावा प्रभावित-

टाटा ग्रुप के मिशन वक्तव्य में ये विचार परिलक्षित भी होते हैं- "हम विश्वास के साथ नेतृत्व पर आधारित दीर्घकालिक हितधारक मूल्य निर्माण के माध्यम से विश्व स्तर पर सेवा करने वाले समुदायों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार करते हैं।" हालांकि अब इन दावों पर समूह में मची उथल-पुथल के बाद से सवाल भी उठ रहे हैं।

इतना असर-

टाटा समूह का राष्ट्रीय महत्व के औद्योगिक क्षेत्रों में रोजगार सृजन के माध्यम से राष्ट्र-निर्माण का इतिहास रहा है। हालांकि; हाल ही में ऑटोमोटिव और स्टील सेक्टर्स में स्वचालन और रोबोटिक्स के आगमन के कारण महत्वपूर्ण कार्यबल में कटौती हुई है। टेलिकॉम जैसे नए सेक्टर में उपजी स्थितियों के कारण संतुलन गड़बड़ा गया है। हालांकि TCS में चार लाख लोगों को रोजगार मिल रहा है।

JSW समूह और वेदांता-

समाज को वापस देने की ख्याति टाटा समूह की प्रतिष्ठा का एक और महत्वपूर्ण फैक्टर है। इसने इसके ब्रांड को लोकप्रियता भी दी है। टाटा स्टील और टाटा मोटर्स जैसी कंपनियों की सामुदायिक सहभागिता आधारित गतिविधियों से टाटा को भारी सद्भावना अर्जित हुई है। हालांकि, भारतीय कंपनी अधिनियम और नए सीएसआर नियमों में संशोधन का मतलब है कि केवल सीएसआर पर खर्च करना एक महत्वपूर्ण अंतर नहीं है। ओडिशा में टाटा स्टील कभी सामाजिक परिवर्तन का एकमात्र नाम था, लेकिन अब यहां JSW समूह और वेदांता जैसी कंपनियां स्थानीय समुदायों के साथ सामाजिक सरोकार के कार्यक्रम संचालित कर रही हैं।

भविष्य के लिए मॉडल-

जेआरडी टाटा ने ट्रस्टीशिप अवधारणा को प्रसिद्ध रूप से व्यक्त किया है। "जमशेदजी टाटा और उनके बेटों द्वारा एकत्रित धन ट्रस्ट में लोगों के लिए भरोसेमंद रूप से उनके लाभ के लिए विशेष रूप से उपयोग किया जाता है। ”वर्तमान स्थिति में कोर्ट पहुंचने से पहले रतन टाटा और मिस्त्री के समक्ष शेयरधारकों की उन उम्मीदों का भी भार है जिसका टाटा समूह दावा करता है। क्या एक सफल धर्मार्थ संगठन (टाटा ट्रस्ट्स) के भविष्य के लिहाज से भी यह ठीक नहीं रहेगा, कि दोनों पक्ष इतने बड़े संगठन और देश के लिए खुद बीच का रास्ता खोज लें?

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