OYO, Paytm जैसी घाटे में चल रही कंपनियों में निवेश फलदायी या नहीं?

ग्राहकों के डिस्काउंट-ऑफर्स पर मर मिटने पर ही ई-कॉमर्स कंपनियों का साम्राज्य टिका हुआ है, लेकिन यह हमेशा रहने वाली स्थिति नहीं है, अगले 3-5 सालों में ये मुनाफा कमाने की स्थिति में नहीं रहेंगी।
OYO, Paytm जैसी घाटे में चल रही कंपनियों में निवेश फलदायी या नहीं?
OYO, Paytm जैसी घाटे में चल रही कंपनियों में निवेश फलदायी या नहीं?Syed Dabeer Hussain - RE

हाइलाइट्स :

  • ओयो, पेटीएम को लाभ न होने के बावजूद इन्वेस्टर्स की रुचि पर पड़ताल

  • ई-कॉमर्स के अनलिस्टेड स्पेस में कुछ नाम मचा रहे हैं धूम

  • ओला, ओयो, पेटीएम, ई-कॉमर्स स्टॉक्स की ट्रेड कीमत है आंख खोलने वाली

राज एक्सप्रेस। ई-कॉमर्स के अनलिस्टेड नामचीन नाम ANI टेक्नोलॉजीस़ (Ola), ऑरेवेल स्टेस़ (Oyo Rooms) और वन97 कम्युनिकेशन (Paytm) अनलिस्टेड मार्केट में धूम मचा रहे हैं। खास तौर पर ये नाम कंपनियों की हैसियत के मुकाबले छोटे और रीटेल इन्वेस्टर्स (Indian Startups Investment) के बीच खासे लोकप्रिय हो रहे हैं।

इन्वेस्ट करने उमड़ रहे हैं इन्वेस्टर्स :

बहुत से इन्वेस्टर्स अनलिस्टेड मार्केट से जुड़े मूल्य में उतार-चढ़ाव और सीमित तरलता (वैल्यु फ्लक्चुएशन और लिमिटेड लिक्विडिटी) जैसे फैक्टर्स को जांचे परखे बिना इन कंपनियों के काउंटर्स पर उमड़ रहे हैं। विनियोग करने वाले ऐसे अधिकांश इन्वेस्टर्स कंपनियों के अट्रेक्टिव मूल्यांकन और सुनी-सुनाई बातों के कारण भी इन्वेस्ट करने उमड़ रहे हैं ऐसा कहना गलत नहीं होगा?

स्टॉक की कीमत और वित्तीय प्रदर्शन :

अनलिस्टेड शेयर्स जगत से जुड़ी इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट में अभिषेक सिक्युरिटीज़ के मुताबिक ओला, ओयो रूम्स और पेटीएम की अनलिस्टेड बाजार में जुलाई 2019 के दौरान कीमत 27,500, 75,000 और 17,000 रुपया थी। कंपनी के मुताबिक, यह कीमतें तब थीं, जब ई-कंपनियों को भारी हानि का सामना करना पड़ रहा था। पेटीएम कारोबार भुगतान को देखने वाली वन 97 कम्युनिकेशन्स ने वित्तीय वर्ष 2018 के दौरान समेकित राजस्व में चार गुना से अधिक की वृद्धि 3,314.8 करोड़ रुपया दर्ज होने की जानकारी दी।

टॉफलर के मुताबिक :

टॉफलर के आंकड़ों के मुताबिक इसमें घाटा बढ़कर 1,606.05 करोड़ रुपया हो गया, जो वित्तीय वर्ष-17 में 903.09 करोड़ रुपया था। इस बीच, पेटीएम मॉल ने वित्त वर्ष 2018 में कुल 774.86 करोड़ रुपये के राजस्व पर 1,787.55 करोड़ रुपया घाटा होने की जानकारी दी। गौरतलब है, यह समूह वॉलमार्ट-समर्थित फ्लिपकार्ट और अमेज़न इंडिया के साथ प्रतिस्पर्धा करना चाहता है, जिनकी शेयर बाजार में समन्वित तौर पर 80% की हिस्सेदारी है। वित्तीय वर्ष-18 (FY18) में वन 97 एवं पेटीएम मॉल का संयुक्त घाटा 270 फीसदी की बढ़त के साथ 3,393 करोड़ रुपये बताया गया। FY17 में यह 917 करोड़ रुपया था। जबकि, इसी अवधि के दौरान संयुक्त राजस्व 417% बढ़त के साथ 4,089 करोड़ रुपया रहा।

रेवेन्यु ग्रोथ में उछाल :

इसी तरह ओयो इंडिया की रेवेन्यु ग्रोथ में भी उछाल देखने को मिली। फर्म ने FY17 के 120 करोड़ रुपया रेवेन्यू के मुकाबले FY18 में 416 करोड़ रुपया ऑपरेटिंग रेवेन्यु की जानकारी दी। फ्लिपकार्ट इंडिया भी कठिन मार्जिन के रास्ते पर है। ई-कॉमर्स इंडस्ट्री की इस दिग्गज के घाटे में FY18 के दौरान 700 फीसदी वृद्धि हुई। इस दौर में कंपनी की रेवेन्यु ग्रोथ 39 फीसद रही। फ्लिपकार्ट इंडिया ने FY18 में पिछले साल के 245 करोड़ के मुकाबले 2060 करोड़ रुपया घाटा होने की रिपोर्ट जारी की।

अनलिस्टेड बाजार में जब ये स्टॉक्स तेज़ी से बढ़ रहे हों तब इनका मूल्यांकन करना कितना न्याय संगत है?

परंपरागत व्यापार के मुकाबले ई-कॉमर्स इंडस्ट्री का व्यापार मॉडल सामान्य तौर पर अलग है। वो (ई-कॉमर्स इंडस्ट्री) भूमि, प्लांट या फिर वेयर-हाउस जैसी मूर्त संपत्तियों के मालिक नहीं हैं। बड़े घाटे के बावजूद उनके पास संचय नहीं है। इसके बावजूद उनका वैल्युएशन अरबों तक जा रहा है, जिसका ताज़ा उदाहरण फ्लिपकार्ट हैं जिसने वालमार्ट को अपने नियंत्रण की हिस्सेदारी 1.11 लाख करोड़ रुपये में बेची है।

संदीप गिनोदिया (अभिषेक सिक्युरिटीज़)

क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स इ-कॉमर्स के मूल्यांकन के गणित को लेकर:

E-commerce का बाहरी आकर्षण आभासी दुकानें हैं और वो उनका मूल्यांकन सालाना विक्रय का 10 से 15 गुना ज्यादा करते हैं। सेगमेंट के ग्रोथ स्टेज के कुछ मामलों में यह मूल्यांकन कई गुना ज्यादा भी हो सकता है।

दिनेश गुप्ता (अनलिस्टेडज़ोन.कॉम के साझेदार)

सिद्धांत क्या है?

किसी स्टॉक की फेयर वैल्यू उसके लिस्टेड होने तक बहुत सब्जेक्टिव होती है। अगर हम इसके पीछे के सिद्धांत का विश्लेषण करे तो सभी की अपनी अपनी थ्योरी हैं।

दूसरी तरह के लोग समान चीजों को अलग मैथड से आंककर अलग विश्लेषण पर पहुंचते हैं। यहां एक किसी चीज की वैल्यू आंकता है जबकि दूसरा नहीं।

संदीप गिनोदिया (अभिषेक सिक्युरिटीज़)

कोलकाता बेस्ड अरुण मुखर्जी जो कि एक वैल्यू इन्वेस्टर हैं और सेबी रजिस्टर्ड SA इन्वेस्टमेंट एडवाइज़र्स के को-फाउंडर भी हैं कहते हैं कि ये कंपनियां अपने काम के दौरान ‘द ग्रेट फूल थ्योरी’ पर काम करती हैं। क्या कहती है ये थ्योरी:

थ्योरी कहती है, प्रतिभूतियों को खरीदकर रुपया बनाने की संभावना है, चाहे वो ओवरवैल्यूड हों या नहीं और उनको बाद की तारीख में बेचकर लाभ अर्जित किया जा सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि यहां हमेशा ऐसा कोई (बड़ा और महामूर्ख) मौजूद है जो ऊंची कीमत देने के लिए राज़ी है।

अरुण मुखर्जी

दुनिया की सबसे बड़ी ई-कॉमर्स कंपनी, अमेजन, भी पैसा नहीं बनाती

संदीप गिनोदिया

ई-कॉमर्स एक वैश्विक प्रवृत्ति है, यही वजह है कि ऐसी कंपनी का मूल्य तब भी अधिक होगा जब उनके पास कोई संपत्ति या मुनाफा नहीं होगा। चूंकि कोई संरचनात्मक तंत्र नहीं है, इसलिए वे मूल्यांकन में इच्छानुसार वृद्धि कर रहे हैं।

मौजूदा दौर में ई-कॉमर्स भारत में नया ट्रेंड बनकर उभरा है, लेकिन एक बार सेंटिमेंट्स प्रभावित होने पर इन्वेस्टर्स का मोह इस नई व्यापार प्रणाली से भंग होने पर वो इन कंपनियों को अर्श से फर्श पर भी उतार सकते हैं।

इन कंपनियों का मूल्यांकन इनकी वरीयता और उनके द्वारा दिखाई जाने वाली ग्रोथ के आधार पर किया जाता है। उनकी उचित वैल्यू तक पहुंच पाना बहुत कठिन काम है।

संदीप गिनोदिया

प्रचलन के अनुसार जब कोई कंपनी लिस्टेड नहीं होती तो, उसे इन्वेस्टर्स पर ध्यान केंद्रित करने की भी जरूरत नहीं होती। उस पर स्टॉक वैल्यू को प्रभावित करने वाले राइट्स इश्यु या बोनस के मुद्दों का भी बोझ नहीं होता। इस कारण भी सभी मूल्यांकन में कंपनियां पास होती जाती हैं।

फ्लिपकार्ट को हर साल अरबों रुपयों का नुकसान हो रहा है। आप कौड़ियों के मोल पर विक्रय कर रहे हैं लेकिन वैल्यु करोड़ों की है। यह पागलपन है। यह गैर तार्किक है। किसी न किसी वक्त यह बुलबुला फूटेगा जरूर। भारतीय ग्राहकों के डिस्काउंट और अन्य ऑफर्स पर मर मिटने की आदत पर ही ई-कॉमर्स कंपनियों का साम्राज्य टिका हुआ है, लेकिन यह हमेशा रहने वाली स्थिति नहीं हैं। ऐसी कंपनियां अगले तीन से पांच सालों तक जल्द मुनाफा कमाने की स्थिति में नहीं हैं।

अरुण मुखर्जी, वैल्यू इन्वेस्टर एंड को-फाउंडर, SA इन्वेस्टमेंट एडवाइजर्स

कुछ विश्लेषकों का कहना है कि कुछ प्रमोटर्स, जैसे कि ई-कॉमर्स दिग्गज, अपने स्टॉक को चुनिंदा निवेशकों के बीच प्रीमियम पर ट्रेड करना चाहते हैं। इस कारण MRF, पेज इंडस्ट्रीज़ या श्री सीमेंट्स जैसी कंपनियां स्टॉक विभाजन या बोनस मुद्दों का विकल्प नहीं चुनतीं।

ओला ने सभी छूटों में कमी की है और वो एक या दो साल में लाभ की स्थिति में होगी। लोग ओला का उपयोग कर रहे हैं क्योंकि उन्हें अब इसकी आदत हो गई है। बाद के चरणों में, पेटीएम अपनी मुफ्त सेवाओं के लिए चार्जेस लेना भी शुरू कर सकता है। यह कई सेवाओं में सक्रिय है, जो बदले में, राजस्व में वृद्धि करेंगे। यही बिजनेस मॉडल है और ज्यादातर ई-कॉमर्स कंपनियां इसको ही फॉलो करती हैं।

दिनेश गुप्ता (अनलिस्टेडज़ोन.कॉम के साझेदार)

बिजनेस एक्सपर्ट्स की राय है कि, अनलिस्टेड संसार में इन्वेस्टर्स को बहुत सोच समझकर सावधानी के साथ निवेश करना चाहिए, क्योंकि ई-कॉमर्स की ऐसी कुछ कंपनियां भी पानी के उस बुलबुले की तरह हैं जिसका वजूद कुछ देर के लिए ही होता है। भारत में तो कहा भी गया है- “पानी केरा बुदबुदा, अस मानस की जात, देखत ही बुझ जाएगा, ज्यों तारा परभात।”

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