PDPB: सरकारी सुरक्षा से चिंता क्यों?

“बिल का इतिहास लंबा है। यह बिल निजी डाटा से संबंधित है। जब 14वीं लोकसभा में सोमनाथ चटर्जी स्पीकर थे तब सेंसटिव पर्सनल डाटा पर चर्चा हुई थी।”
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PDPB: सरकारी सुरक्षा से चिंता क्यों?Social Media

हाइलाइट्स :

  • क्या आपका डाटा अब तक था सुरक्षित?

  • इंटरनेट की दुनिया में कितने सुरक्षित थे आप?

  • नियम लागू होने से कितने असुरक्षित होंगे भारतीय?

राज एक्सप्रेस। निजी डाटा प्रोटेक्शन बिल 2019 के बारे में चर्चा, राय, बहस के दौर में यह जानना सबसे ज्यादा जरूरी है कि, आखिर यह बिल है क्या? साथ ही हमें इस बात पर भी ध्यान देना होगा कि, इंटरनेट के इस युग में हमारा-आपका निजी डाटा कितना सुरक्षित है? हमारी इस पड़ताल में यह भी जानिए कि, सरकारी बिल से पहले हमारे निजी सूचना संचार में किस तरह सेंध लग रही थी और इस बिल से आखिर हमें क्या अधिकार हासिल होंगे?

विपक्ष को ऐतराज

देश में लगातार एक के बाद एक जारी हो रहे कानूनों के बाद अब निजी डाटा प्रोटेक्शन बिल पर बहस गरम है। एक भारतीय की हैसियत तय करने वाले इस बिल पर राय अलग-अलग हैं। चर्चा के साथ ही बुधवार को इसे सदन में सभी दलों ने सिलेक्ट कमेटी को भेजने पर रज़ामंदी दिखाई है। निजी डाटा की चोरी या फिर उसके गलत इस्तेमाल पर रोक लगाने की दिशा में इस बिल को लागू करने की मंशा केंद्र सरकार ने जताई है, लेकिन इस मंशा पर विपक्ष को ऐतराज भी है।

सरकार के मुताबिक इस बिल में निजी डाटा के दुरुपयोग पर लगाम कसने के साथ ही दुरुपयोग करने वालों पर सजा का प्रावधान भी शामिल है। इसके मुताबिक कोई भी निजी या सरकारी संस्था किसी व्यक्ति की रजामंदी के बगैर उसकी जानकारियों का दुरुपयोग नहीं कर सकतीं। लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा और कानूनी प्रावधान के जरिए सरकार ने इसमें हस्तक्षेप का भी जरिया ढूंढ़ लिया है।

बिल का इतिहास-

गौरतलब है पिछले 4 दिसंबर को यूनियन कैबिनेट ने पर्सनल डाटा प्रोटेक्शन बिल को संसद में रजामंदी दी थी। ड्राफ्ट बिल 2018 को उच्च स्तरीय अनुभवियों की समिति ने तैयार किया था जिस समिति की अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज बीएन श्रीकृष्णा ने की थी।

बिल के अंदर क्या?-

इस बिल में निजी जानकारियों के संकलन, स्टोरेज के साथ ही हस्तांतरण यानि की प्रोसेसिंग पर किसी व्यक्ति पर दंड और मुआवजे के साथ ही दंड प्रक्रिया के बारे में प्रावधान पर व्याख्या की गई है। ड्राफ्ट बिल के मुताबिक किसी का निजी डाटा लेने-देने के लिए संबंधित व्यक्ति की सहमति जरूरी है। संवेदनशील निजी डाटा जैसे पासवर्ड, वित्तीय और स्वास्थ्य से जुड़ी निजी जानकारी, सेक्सुअल ओरिएंटेशन, बायोमेट्रिक डाटा और धार्मिक अथवा राजनीतिक विश्वास के बारे में संबंधित की सहमति के बगैर जानकारी साझा नहीं की जा सकती है।

मिले यह अधिकार-

ड्राफ्ट के प्रावधान के मुताबिक व्यक्ति को अधिकार है कि, वो उसकी निजी जानकारियों के खुलासे पर प्रतिबंध लगाने की शक्ति रखता है। भारतीय नागरिक का डाटा भारत में सुरक्षित-संरक्षित रहेगा। साथ ही संबंधित व्यक्ति एवं सरकार की सहमति के उपरांत भारत से बाहर शेयर किया जा सकेगा।

दंड का प्रावधान-

इस कानून में प्रावधान का उल्लंघन करने पर दंड का भी प्रावधान किया गया है। डाटा लीक करने की स्थिति में यह पेनाल्टी पांच करोड़ रुपए या फिर संबंधित कंपनी की दशा में उसके टर्नओवर का 2 फीसदी या अधिक हो सकती है।

श्रीकृष्णा की चिंता-

हालांकि बाद में जस्टिस श्रीकृष्णा ने कहा कि कैबिनेट ने जो बिल पास किया है वो ओरिजनल ड्राफ्ट बिल से जुदा है। विपक्ष का कहना तो यह भी है कि बिल के नए संस्करण का सरकार कई रास्तों से दुरुपयोग भी कर सकती है। श्रीकृष्णा के मुताबिक - “यदि बिल को मौजूदा रूप में पास किया गया तो इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है।“

फिलहाल इस बिल को एक संयुक्त समिति के हवाले किया गया है जो कि बजट सत्र के दौरान बिल के बारे में अपनी राय पटल पर रखेगी।

इतिहास पर नज़र-

बिल का इतिहास लंबा है। यह बिल निजी डाटा से संबंधित है। जब 14वीं लोकसभा में सोमनाथ चटर्जी स्पीकर थे तब सेंसटिव पर्सनल डाटा पर चर्चा हुई थी।

अभी के बिल में पर्सनल डाटा क्या है, उसका उपयोग कौन कर सकता, किस कारण कर सकता है और क्या संरक्षण हैं? इस बारे में व्याख्या की गई है। साथ ही यदि कानून का उल्लंघन होने पर इसमें दंड का प्रावधान भी किया गया है। इतना ही नहीं डाटा पर अधिकार के बारे में भी इस बिल में विस्तारित किया गया है।

डाटा कहां सेव रहेगा?-

आपका डाटा कहां रखा जाए भारत में या फिर भारत के बाहर? इस बारे में भी बिल में उल्लेख किया गया है। निजी डाटा के उपयोग पर आरोप लग रहे हैं कि सरकार यदि जरूरी समझेगी तो फिर इसका उपयोग भी कर सकती है जिससे निजी जानकारियों का दुरुपयोग तक हो सकता है।

इस कानून की जरूरत क्यों?-

कुछ साल पहले अरुण जेटली की सीडीआर किसने निकाली? साथ ही नीता राडिया टेप्स के इतिहास से इसे समझा जा सकता है कि निजी जानकारियों को रेवड़ी के जैसे बांटने से निजता का कितना नुकसान हो सकता है। इस बारे में सुप्रीम कोर्ट तक को कहना पड़ा कि निजता का अधिकार जरूरी है। पहले लोगों को सिर्फ निजता का अधिकार दिया गया था लेकिन उसका पैमाना तय नहीं था कि किस हद तक उसकी निजता सुरक्षित रहेगी।

क्यों जरूरी है?-

इंटरनेट के युग में आमतौर पर बड़ी कंपनियों का सम्राज्य अमेरिका या फिर किसी दूसरे देश में केंद्रित है। इतिहास गवाह है इन कंपनियों के किसी घालमेल की दशा में अधिकतर भारतीय या दूसरे देशों के लोगों को आपत्ति दर्ज कराने विदेश जाने की विवशता का सामना करना पड़ा है। जैसा की बीते 3 सालों पहले बड़ी कंपनियों का डाटा लीक होने पर भी देखा जा चुका है।

अब क्या होगा?-

अब भारत सरकार ने प्रावधान किया है कि भारत के लोगों का डाटा भारत में ही सेव रहेगा। सायबर एक्सपर्ट्स की मानें तो इस नियम से अब हैकिंग पर भी लगाम लगेगी साथ ही बच्चों के डाटा कलेक्ट करने की अनुमति नहीं होने की व्यवस्था से पोर्न सामग्री के साथ ही बच्चों को भ्रमित करने वाले कंटेंट्स भी नियंत्रण में आ सकेंगे। जैसा कि कहा जा रहा है विदेशी कंपनियों को भारतीय नागरिकों के डाटा से जुड़े कानूनी मसलों पर भारत आकर ही चर्चा करना होगी। मतलब मल्टीनेशनल कंपनियों को कानूनी मसलों पर अब भारत में ही उपस्थित होना होगा।

सरकार से कितनी चिंता?-

हालांकि यह बिल जब तक पूरी तरह से प्रकाश में नहीं आ जाता तब तक उस पर कुछ ही कहना निराधार है। विपक्ष का कहना है कि बिल के जो प्रावधान सामने आए हैं उसके मुताबिक सरकार निजी सूचनाओं का कुछ अधिरकारों के अंतर्गत दुरुपयोग कर सकती है।

लेकिन इस बारे में यह भी गौर करना जरूरी है कि, फिलहाल देश में इंटरनेट के उपयोग की जो स्थिति है उसमें विदेशी कंपनियों के हवाले हमारी निजी जानकारियां सुरक्षित भी नहीं हैं। फेसबुक, गूगल पर निजी सूचनाओं के दुरुपयोग के आरोप इस बात का गवाह हैं। कहा तो यह भी जा रहा है कि यदि सरकार के प्रबंध पर लोगों को ऐतराज है तो फिर सड़क पर कैमरा लगाना भी निजता में हनन ही होगा?

पहले भी था प्रावधान-

विपक्ष को कुछ प्रावधानों पर आब्जेक्शन हैं कि, सरकार या फिर स्टेट सुरक्षा के नाम पर डाटा का दुरुपयोग कर सकते हैं। हालांकि अन्य कानूनों में भी सुरक्षा के मद्देनज़र सरकार के लिए छूट का प्रावधान होता है। टेलिफोन युग में टेलिग्राफ एक्ट के तहत इसका प्रावधान रहा है।

चर्चा के बाद-

संयुक्त समिति में सुप्रीम कोर्ट के निजता के अधिकार के आदेश के आधार पर आधारित इस बिल पर चर्चा होगी। जहां जस्टिस कृष्णा का कहना है कि यह बिल उनके मूल रूप पर आधारित नहीं है वहीं सायबर एक्सपर्ट्स की राय है कि, केंद्र सरकार के नए प्रारूप में सोशल मीडिया के अधिकारों पर भी लगाम कसने का जतन किया गया है।

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