एयरटेल, वोडाफोन-आइडिया तंत्र पर भारी जियो का एकाधिकार मंत्र!

यक्ष प्रश्न- “विरोधियों के धड़ाम होने पर, क्या रिलायंस जियो और MTNL-BSNL लगभग 1.19 अरब के टेलिकॉम यूज़र्स बेस को संभाल पाएंगे?”
Telecom Company
Telecom CompanyKavita Singh Rathore -RE

हाइलाइट्स :

  • AGR की सुई पर अटकी टेक सेक्टर की नब्ज

  • क्या JIO, MTNL-BSNLसंभाल पाएंगे 1.19 बिलियन सब्सक्राइबर्स बेस?

  • क्या भारती एयरटेल, वोडाफोन-आइडिया को जीने नहीं देगा “जियो”?

राज एक्सप्रेस। देश में मुकेश अंबानी नियंत्रित रिलायंस जियो के अपने प्रतिस्पर्धियों भारती एयरटेल और वोडाफोन आइडिया के खिलाफ विरोध के स्वर दिन-ब-दिन मुखर होते जा रहे हैं। न्यूकमर जियो ने मौके का लाभ उठाते हुए सरकार को एक तरह से सवालिया अंदाज में चेताया भी है कि उसके पास ऐसा कोई विकल्प नहीं है कि वो सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ जाए और जरूरतमंद कंपनियों को आर्थिक राहत दे।

ट्रैक टू :

हालांकि वहीं दूसरी तरफ जियो का ये भी मानना है कि प्रतिस्पर्धी टेलीकॉम्स की इतनी हैसियत है कि वे AGR का बकाया 92,000 करोड़ रुपया से अधिक का भुगतान कर सकें। जियो ने भले ही प्रतिद्वंदी दूरसंचार कंपनियों को वित्तीय रूप से ताकतवर माना है लेकिन साथ ही यह भी कहा कि; प्रतिस्पर्धी ऑपरेटर्स के विफल होने की स्थिति में टेलिकॉम सेक्टर निष्प्रभावी रहेगा।

एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यु (AGR) :

क्या जीएसटी की दर में कटौती ने होटलों को सस्ता कर दिया है? वास्तव में नहीं! फिर कैसे तैयार हैं एयरटेल, वोडाफोन आइडिया 93,000 करोड़ रुपये के एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यु (AGR) यानी समायोजित सकल राजस्व के झटके का सामना करने?

CoS :

एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यु पर अक्टूबर में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सरकार ने पिछले सप्ताह कमेटी ऑफ सेक्रेटरीज़ (CoS) यानी सचिवों की एक समिति गठित की। यह समिति टेलिकॉम सेक्टर में सामना किए जा रहे वित्तीय तनाव को कम करने के तरीकों पर गौर करेगी।

कुछ नहीं होगा :

जियो का दावा है कि पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग्स (PSUs) यानी सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम एमटीएनएल और बीएसएनएल (MTNL and BSNL) की मौजूदगी से कुछ प्रतिस्पर्धी ऑपरेटर्स के विफल होने की स्थिति में टेलिकॉम सेक्टर की प्रतिस्पर्धा निष्प्रभावी रहेगी।

एयरटेल की हालत :

गौरतलब है कि, मौजूदा दौर में निर्भर टेलिकॉम कंपनियों की वित्तीय स्थिति खराब है। एयरटेल ने अपने दूसरी तिमाही (2019/20) के परिणामों को 14 नवंबर तक के लिए स्थगित कर दिया है। ताकि एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यु (AGR) यानी समायोजित सकल राजस्व के सदमे से उबरने में थोड़ा वक्त मिल सके।

स्थिति साफ नहीं :

इसी तरह वोडाफोन आइडिया ने भी स्टॉक एक्सचेंजों को सूचित किया है कि समूह को वोडाफोन समूह की योजनाओं के बारे में पता नहीं है कि वो भारत में परिचालन जारी रखेगा भी या नहीं।

"सुप्रीम कोर्ट का फैसला एक तरह से पहले से ही संघर्षरत टेल्कोज़ (वोडाफोन-आइडिया) के लिए एक तरह से मौत की घंटी की तरह है। इस मुद्दे पर सरकार का समर्थन नहीं मिलने से, इसकी संभलने की संभावना सीमित हो गई है।"

एक रिपोर्ट (सेफ इन्वेस्टमेंट फॉर इन्वेस्टर्स पर आधारित)

इसमें इतना घाटा- वोडाफोन-आइडिया लगातार तीन साल से शुद्ध घाटा दर्शा रहा है। कंपनी का शुद्ध घाटा 2019/20 की पहली तिमाही में 4,873.9 करोड़ रुपया बताया गया। ऐसे में टेलिकॉम के जानकारों की यह आशंका निर्मूल नहीं कही जा सकती है कि "वोडाफोन-आइडिया के सामने निपटारे के लिए यह एक अनिश्चित स्थिति है, उनके पास कोई विकल्प नहीं है।"

अहम सवाल :

क्या होगा यदि, मौजूदा खराब स्थिति में ये ऑपरेटर विफल हो जाते हैं? क्या अन्य प्रतिस्पर्धियों की गैरमौजूदगी में सिर्फ Jio और MTNL-BSNL 1.19 बिलियन के बड़े टेलिकॉम यूजर बेस को सेवा दे पाएंगे?

इस समय :

मार्केट हिस्सेदारी के आंकड़ों के मुताबिक Jio और BSNL / MTNL मिलकर वायरलेस मार्केट सब्सक्राइबर बेस का लगभग 40 फीसदी हिस्सा नियंत्रित कर रहे हैं। जबकि 31.7 फीसदी रेवेन्यू मार्केट शेयर के साथ Jio सेक्टर में सिरमौर है।

एक्पर्ट्स की राय में ये स्थिति चिंतनीय जरूर है लेकिन एक निजी और एक पीएसयू ऑपरेटर के लिए इतने सारे यूजर्स को सर्विस दे पाना संभव है। हालांकि जानकारों के मुताबिक ऐसी स्थिति में नुकसान सिर्फ उपभोक्ताओं का ही ज्यादा होगा।

"खिलाड़ियों की संख्या में कमी या प्रतिस्पर्धा कम होने से उपभोक्ताओं को नुकसान होगा। लेकिन आपूर्ति के दृष्टिकोण से कोई समस्या नजर नहीं आ रही। क्योंकि कुछ के अलग होने पर बाकी बचे खिलाड़ी अधिक टॉवर्स, स्पेक्ट्रम और इलेक्ट्रॉनिक्स के साथ आसानी से अपनी सेवाओं में भी इजाफा कर सकते हैं।”

सुबीर एस कुमार, टेक ट्रैंड कंसल्टेंट

मौजूदा परिदृश्य में बुनियादी ढांचा क्षेत्र में एकाधिकार होता दिख रहा है। भारतीय रेलवे लंबे समय से बिना किसी प्रतिस्पर्धा के काम करता आ रहा है और चूंकि यह सरकार द्वारा नियंत्रित है, इसलिए कंज्यूमर्स के शोषण का इसमें भय कम है।

डर ये भी :

दूरसंचार क्षेत्र में सबसे बड़ा डर ये भी है कि एकाधिकार छाने से मार्केट से वो अनुशासन गायब हो जाएगा जो कि स्वस्थ प्रतिस्पर्धा से ही पैदा होता है। जरा आप खुद सोचिये कि एयरटेल, वोडाफोन, आइडिया जैसे बड़े नाम यदि मार्केट से अलग कर दिए जाएं तो फिर अंत में उपयोगकर्ताओं के पास चुनाव के लिए कितने विकल्प बचेंगे भला?

एकाधिकार होने से कंपनी के पास कंज्यूमर्स पर मनमर्जी के प्लान और दाम थोपने की खुली छूट होगी। ऐसे में तकनीक के लत के शिकार बन चुके कंज्यूमर्स को भी आभासी संसार में जीने के एवज में बड़ी कीमत चुकानी होगी।

सरकार को पत्र- प्रभावित वर्ग ने सेल्युलर ऑपरेटर्स बॉडी एसोसिएशन ऑफ इंडिया (COAI) के जरिए डिपार्टमेंट ऑफ टेलीकॉम (DoT) को हस्तक्षेप कर कंपनियों को डूबने से बचाने कहा है। इस बारे में पत्र में लिखा है कि-

- "सरकार से जल्द राहत के अभाव में, तीन निजी मोबाइल ऑपरेटरों में से दो दिग्गज एयरटेल और वोडाफोन आइडिया जो भारत में बड़े सब्सक्राइबर बेस को सेवाएं प्रदान करते हैं, को अभूतपूर्व संकट का सामना करना पड़ेगा।"

दूरसंचार मंत्री रविशंकर प्रसाद को जारी COAI के पत्र का अंश

चर्चाओं का दौर :

क्या सरकार सेक्टर में प्रभावित स्तंभों को गिरने से बचाने कदम उठाएगी? फिलहाल ऐसे कई प्रस्तावों पर बात हो रही है, जिनका मुख्य विषय टेल्कोज़ को बचाना है। चर्चा के विषय में स्पेक्ट्रम नीलामी के भुगतान में मोहलत एवं एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यु (AGR) यानी समायोजित सकल राजस्व में रोक लगाने का मुद्दा भी शामिल है।

दूसरी राय :

एक राय ये भी है कि प्राइवेट टेल्कोज़ को छूट देने से व्यापार जगत में गलत मिसाल कायम होगी। इस स्थिति में दूसरे सेक्टर्स के संकटग्रस्त दिग्गज भी छूट की गुहार लगा सकते हैं। ऐसे में कानून सिर्फ दिखावा बनकर रह जाएगा। सरकार को नियमों को सख्ती से लागू करना चाहिए ताकि सभी कंपनी प्रवर्तक नियमों का पालन करने बाध्य हों।

"सरकार के लिए ये एक बड़ी विषम स्थिति है। इंडियन बिजनेस इंडस्ट्री के एग्रीकल्चर, पॉवर एंड एनर्जी, ऑटोमोबाइल और एविएशन जैसे कई सेक्टर्स इस समय सरकार की ओर छूट, राहत, समायोजन जैसी छोटी-बड़ी मदद के लिए देख रहे हैं। ऐसे में किसी एक सेक्टर को वित्तीय राहत या छूट देने पर अन्य सेक्टर्स से पक्षपात होगा, साथ ही गलत संदेश भी जाएगा। सरकार के लिए तो ये और भी बुरा होगा।"

सार्थक मिश्रा, बिजनेस एंड इन्वेस्टमेंट एडवाइज़र

सुप्रीम कोर्ट के आदेश से प्रभावित 15 में से 10 ने बोरिया बिस्तर समेटना शुरू कर दिया। हालांकि उनकी प्राणवायु पहले से ही संदेह के घेरे में रही। तीन साल पहले Jio की धमाकेदार एंट्री ने उनको बाजार से एक्ज़िट के लिए विवश कर दिया था।

अब यह देखना दिलचस्प होगा कि मौजूदा कठिन दौर से लड़ रहे उन प्रतिस्पर्धियों का क्या होगा? जो एक तरफ वित्तीय लड़ाई लड़ रहे हैं और दूसरी तरफ Jio द्वारा नियोजित रणनीतिक दबाव का मुकाबला भी करने मजबूर हैं। कंज़्यूमर्स के हक पर डाका पड़ेगा या फिर उसे राहत के साथ सौगात मिलेगी? इसका जवाब फिलहाल सरकार को देना है। क्योंकि फैसले की गेंद अभी उसके पाले में है।

ताज़ा ख़बर पढ़ने के लिए आप हमारे टेलीग्राम चैनल को सब्स्क्राइब कर सकते हैं। @rajexpresshindi के नाम से सर्च करें टेलीग्राम पर।

ताज़ा समाचार और रोचक जानकारियों के लिए आप हमारे राज एक्सप्रेस वाट्सऐप चैनल को सब्स्क्राइब कर सकते हैं। वाट्सऐप पर Raj Express के नाम से सर्च कर, सब्स्क्राइब करें।

और खबरें

No stories found.
logo
Raj Express | Top Hindi News, Trending, Latest Viral News, Breaking News
www.rajexpress.com