हाइलाइट्स :
अमरीका का लिया पक्ष
भारतीय निर्यात होगा प्रभावित
भारत के पास है अपील का मौका
राज एक्सप्रेस। भारत और अमेरिका के बीच निर्यात से जुड़े व्यापार संबंधी एक मामले में वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन (WTO) यानी विश्व व्यापार संगठन ने अमेरिका के पक्ष में फ़ैसला दिया है। इस फैसले से भारतीय निर्यात कार्यक्रम को तगड़ा झटका लग सकता है।
निर्धारक नियम :
यह मामला भारत से अमेरिका में निर्यात किए जाने वाले प्रॉडक्ट्स पर डब्ल्यूटीओ द्वारा दी जाने वाली सब्सिडी से जुड़ा हुआ है। डब्ल्यूटीओ ने इस छूट को निर्धारक नियमों का उल्लंघन बताया है। इस फैसले से भारतीय निर्यात कार्यक्रम को बड़ा झटका लग सकता है।
WTO ने भारत को निर्यात पर दी जाने वाली सब्सिडी लगभग 700 करोड़ डॉलर से अधिक आंकी है। भारत की ओर से स्टील, कैमिकल, टेक्सटाइल और दवाइयों से जुड़े उत्पादों पर निर्यात में सब्सिडी दी जाती है।
अमेरिका की आपत्ति :
गौरतलब है अमेरिका ने पिछले साल 2018 में भारत की एक्पोर्ट सब्सिडी का मामला मामला विश्व व्यापार संगठन के समक्ष बुलंद किया था। अमरीका ने यह कहकर आपत्ति जताई थी कि भारतीय निर्यात पर दी जा रही सब्सिडी अवैध है। इस बारे में अमेरिका ने अमेरिकन व्यापार जगत और वर्कर्स के नुकसान का हवाला दिया था।
झटका इतना तगड़ा :
भारतीय निर्यात का एक बड़ा हिस्सा अमेरिका से जुड़ा हुआ है। भारतीय निर्यात की कुल 16 फीसदी हिस्सेदारी अमेरिकी निर्यात से जुड़ी है। इस बात से चिंतित अमेरिका ने डब्ल्यूटीओ के समक्ष तर्क पेश किया है कि भारत अब मजबूत आर्थिक ताकत बन चुका है, ऐसे में भारत को निर्यात पर सब्सिडी देने से उसे बड़ा नुकसान होगा।
वजह ये भी :
बताया तो ये भी जा रहा है कि, भारतीय निर्यात पर सब्सिडी में कटौती की वजह भारत का सकल राष्ट्रीय उत्पाद भी है। जो वर्ष 2015 से 2017 के दौरान एक हज़ार डॉलर के पार तक जा पहुंचा। इस कारण भी डब्ल्यूटीओ का निर्णय भारत को अब सब्सिडी का अधिक फायदा नहीं देने के पक्ष में गया।
ट्रांजीशन पीरियड :
भारत ने भी निर्यात सब्सिडी के बारे में अपना दमदार पक्ष रखा था। भारत ने दलील दी है कि किसी विकासशील देश के हजार डॉलर मार्क को क्रॉस करने की स्थिति में उस देश की सब्सिडी रोकने या फिर समाप्त करने के लिए ट्रांजीशन पीरियड की भी व्यवस्था है, यह समयकाल आठ साल का होता है।
व्यापारिक संबंध :
भारत की नरेंद्र मोदी सरकार और अमेरिका के डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन के बीच हाल के सालों में कई व्यापारिक संबंधों को हरी झंडी मिली है। अब डब्ल्यूटीओ का यह झटका इंडिया-अमेरिका बिजनेस एक्पोर्ट के साथ ही व्यापारिक संबंधों में भी कई गतिरोध पैदा कर सकता है।
प्राथमिकता समाप्त :
रिपोर्ट्स के मुताबिक अमेरिकी बाजार में वर्ष 2019 की शुरुआत से ही भारत को दी जाने वाली प्राथमिकता पर रोक लगाई जा चुकी है। इसके पहले से ही अमेरिका की मांग रही है कि भारत अमेरिकी प्रॉडक्ट्स पर लगाए जाने वाले टैरिफ को कम करे। अमेरिका ने ऐसा करने का मकसद दोनों देशों के बीच मौजूद व्यापारिक घाटे के अंतर को कम करना बताया है।
इंडियन एक्सपोर्ट पर कितना असर :
दर्ज आंकड़ों के मुताबिक पारंपरिक तौर पर इंडियन एक्सपोर्ट 4 फीसदी की एवरेज से गतिमान रहा। लेकिन भारत के मौजूदा आर्थिक हालात के कारण इस वर्ष अप्रैल महीने में निर्यात में 2 फीसदी गिरावट भी दर्ज हुई। ऐसे में भारतीय निर्यातकों से जुड़े WTO के निर्णय से भारत की मुश्किलें बढ़ना लगभग पूरी तरह तय नजर आ रहीं हैं।
भारतीय निर्यात संगठन ने WTO के निर्यात सब्सिडी रोकने के फैसले को निराशाजनक बताया है। हालांकि फ़ेडरेशन ऑफ़ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गेनाइजेशन (FIEO) को इस बात का भरोसा भी है कि भारत की नरेंद्र मोदी सरकार जल्द ही इस बारे में कोई रास्ता खोज निकालेगी।
"WTO का फैसला भारतीय निर्यात के लिए बहुत बुरा है, विशेष आर्थिक क्षेत्र से निर्यात पर मिलने वाली छूट को हटाने से एक्सपोर्ट सेक्टर बहुत ज्यादा प्रभावित होगा। इससे इंडियन इकोनॉमी भी बड़े पैमाने पर प्रभावित होगी।"
डॉ. अजय सहाय, महानिदेशक, FIEO
हालांकि अर्थव्यवस्था की नब्ज को पहचानने वाले एक्पर्ट्स की यह भी राय है कि WTO के फैसले से इंडियन एकोनॉमी पर असर जरूर पड़ेगा। लेकिन निर्यात प्रदर्शन एवं उस पर मिलने वाली सब्सिडी का आपस में कोई कनेक्शन नहीं होता। सब्सिडी के आंकड़े पूरी तरह एक्सपोर्ट डाटा को शो नहीं करते।
ये समस्या होगी :
सब्सिडी रुकने से भारतीय निर्यातकों को फॉरेन मार्केट में गुड्स सप्लाई में भारी समस्या हो सकती है। इस कारण भारत में व्यापारिक घाटे में वृद्धि होने की आशंका पैदा होगी। इस कारण अप्रत्यक्ष रूप से प्रॉडक्शन भी प्रभावित होने की आशंका प्रबल हो रही है।
भारत की समस्या :
WTO का फैसला भारत के खिलाफ जाने से भारत को विश्व व्यापार संगठन के तय मानकों के अनुसार अपने रेट्स तैयार करना होंगे। ऐसे में भारत को निर्यातकों के लिए दोबारा सब्सिडी की दरें भी निर्धारित करना होंगी। हालांकि भारत के पास WTO के फैसले के खिलाफ अपील करने का भी एक रास्ता है।
गौरतलब है कि अपील सुनने वाली समिति में सात सदस्यों की उपस्थिति अनिवार्य है। लेकिन इसमें से दो सदस्य रिटायर होने वाले हैं, ऐसे में यह बात भारत के लिए फायदेमंद भी हो सकती है। ऐसा इसलिए क्योंकि यदि अपील समिति ही पूरी नहीं होगी तो उसका फ़ैसला मानना भी बाध्यकारी नहीं होगा।
कहना गलत नहीं होगा कि WTO के फैसले से भारत और अमेरिका के द्विपक्षीय रिश्ते भी प्रभावित होंगे। जगजाहिर है कि दोनों मुल्कों के संबंध व्यापारिक मामलों के कारण पहले से ही कठिन दौर से गुजर रहे हैं।
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