सुशांत सिंह के परिवार ने लिखा भावुक खत
सुशांत सिंह के परिवार ने लिखा भावुक खतSocial Media

सुशांत सिंह के परिवार ने लिखा भावुक खत, कहा- मिल रही हैं धमकियां

सुशांत की मौत के करीब 2 महीने बाद उनके परिवार ने पहली बार 9 पेज का बयान जारी किया है। इसमें कहा गया कि, सुशांत के परिवार को सबक सिखाने की धमकियां दी जा रही हैं।

सुशांत सिंह राजपूत के सुसाइड मामले में रोज नए-नए खुलासे हो रहें हैं। सुशांत की मौत के करीब 2 महीने बाद उनके परिवार ने पहली बार 9 पेज का बयान जारी किया है। इसमें कहा गया कि, सुशांत के परिवार को सबक सिखाने की धमकियां दी जा रही हैं। एक-एक करके सबके चरित्र पर कीचड़ उछाली जा रही है। इसके अलावा सुशांत के परिवार ने रिया चक्रवर्ती और मुंबई पुलिस पर भी आरोप लगाए हैं। यह पत्र उनके पिता की तरफ से लिखा गया है।

क्या लिखा है चिट्ठी में:

चिट्ठी की शुरुआत फिराक जलालपुरी के शेर से की गई है। चिट्ठी में लिखा है, "तू इधर-उधर की ना बात कर ये बता कि काफिला क्यूं लुटा, मुझे रहजनों से गिला नहीं तेरी रहबरी का सवाल है।" इसके आगे लिखा है कि, 'अखबार पर अपना नाम चमकाने की गरज से कई फर्जी दोस्त, भाई, मामा बन अपनी-अपनी हांक रहे हैं। ऐसे में बताना जरूरी हो गया है कि, आखिर ‘सुशांत का परिवार’ होने का मतलब क्या है?

सुशांत के माता-पिता कमाकर खाने वाले लोग थे। उनके हंसते खेलते पांच बच्चे थे। उनकी परवरिश ठीक हो इसलिए 90 के दशक में गांव से शहर आ गए। रोटी कमाने और बच्चों को पढ़ाने में जुट गए। एक आम भारतीय माता-पिता की तरह उन्होंने मुश्किलें खुद झेली। बच्चों को किसी बात की कमी नहीं होने दी।" हौसलेवाले थे, सो कभी उनके सपनों पर पहरा नहीं लगाया। कहते थे कि, जो कुछ दो हाथ-पैर का आदमी कर सकता है, तुम भी कर सकते हो।

पहली बेटी में जादू था। कोई आया और चुपके से उसे परियों के देश ले गया, दूसरी राष्ट्रीय टीम के लिए क्रिकेट खेली। तीसरे ने कानून की पढ़ाई की, तो चौथे ने फैशन डिजाइन में डिप्लोमा किया, पांचवा सुशांत था। ऐसा, जिसके लिए सारी माएं मन्नत मांगती हैं। पूरी उमर, सुशांत के परिवार ने ना कभी किसी से कुछ लिया, ना कभी किसी का अहित किया।

सुशांत के परिवार को पहला झटका तब लगा, जब मां असमय चल बसी। फैमिली मीटिंग में फैसला हुआ कि, कोई ये ना कहे कि मां चली गईं और परिवार बिखर गया, सो कुछ बड़ा किया जाये। सुशांत के सिनेमा में हीरो बनने की बात उसी दिन चली। अगले आठ-दस साल में वो हुआ, जो लोग सपनों में देखते हैं।

लेकिन, अब जो हुआ है, वो दुश्मन के साथ भी ना हो। एक नामी आदमी को ठगों-बदमाशों लालचियों का झुंड घेर लेता है। इलाके के रखवाले को कहा जाता है कि, बचाने में मदद करें। अग्रजों के वारिस हैं। एक अदना हिंदुस्तानी मरे, इन्हें क्यों परवाह हो?

चार महीने बाद सुशांत के परिवार का भय सही साबित होता है। अंग्रेजों के दूसरे वारिस मिलते हैं। दिव्यचक्षु से देखकर बता देते हैं कि, ये तो जी ऐसे हुआ है। व्यावहारिक आदमी हैं, पीड़ित से कुछ मिलना नहीं, सो मुलजिम की तरफ हो लेते हैं।

मेरे बच्चे को पागल कहते हैं- सुशांत के पिता:

सुशांत के पिता अपनी बात को खत्म करते हुए आगे लिखते हैं, 'अंग्रेजों के एक और बड़े वारिश तो जालियावाला-फेम जनरल डायर को भी मात दे देते हैं। सुशांत के परिवार को कहते हैं कि, तुम्हारा बच्चा पागल था, सुसाइड कर सकता था।"

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