महाराष्ट्र संकट के बीच चर्चा में आया दल-बदल कानून, जानिए कब होता है लागू?
राज एक्सप्रेस। महाराष्ट्र में जारी सियासी संकट के बीच देश में एक बार फिर से दल-बदल क़ानून को लेकर चर्चाएं चल पड़ी हैं। जहां एक तरफ उद्धव ठाकरे गुट इस कानून के तहत शिंदे गुट के विधायकों की सदस्यता रद्द करने की मांग कर रहा है, जबकि दूसरी तरफ शिंदे गुट के विधायकों का कहना है कि उनके पास दो तिहाई से अधिक विधायक हैं और वही असली शिवसेना है। हालांकि दल-बदल क़ानून के तहत कार्रवाई होती है या नहीं, यह तो आने वाले समय में ही पता चलेगा। लेकिन उससे पहले हम यह जान लेते हैं कि दल-बदल क़ानून क्या होता है? और यह किन परिस्थितियों में लागू होता है? और किन परिस्थितियों में नहीं?
दल-बदल क़ानून क्या है?
साल 1985 में संविधान के 52वां संशोधन कर 10वीं अनुसूची जोड़ी गई, जिसे दल-बदल क़ानून कहा जाता है। दरअसल उस समय कई निर्वाचित सदस्य अपने फायदे के लिए एक पार्टी से दूसरी पार्टी में जाने लगे थे। हरियाणा के एक विधायक ने तो एक दिन में ही तीन बार पार्टी बदली थी। ऐसी स्थिति को रोकने के लिए यह कानून लाया गया था। इस कानून का उल्लंघन करने पर निर्वाचित सदस्य की सदस्यता रद्द हो सकती है।
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कब होता है लागू?
अगर कोई विधायक या सांसद खुद अपनी पार्टी छोड़ दे।
संसद या विधानसभा में सदस्य अपनी पार्टी के व्हिप का उल्लंघन करे।
जब विधायक या सांसद पार्टी विरोधी गतिविधि में शामिल होता है।
जब कोई सदस्य सदन में पार्टी के आदेशों की अवेहलना करता हो।
कब लागू नहीं होता है?
जब पूरी पार्टी ही अन्य किसी पार्टी में अपना विलय कर दे।
जब किसी पार्टी के सदस्य पार्टियों के विलय को अस्वीकार करके अलग रहना स्वीकार करते हैं।
जब किसी पार्टी के दो तिहाई सदस्य अलग होकर नई पार्टी बना लें या किसी और पार्टी में शामिल हो जाएं।
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