जेएनयू के समर्थन में उतरा भोपाल, गृहमंत्री से मांगा इस्तीफा

रविवार शाम जेएनयू में हुए हमले और हिंसा के बाद देश के कई शहरों में लोग सड़कों पर उतरे। राजधानी भोपाल में गृहमंत्री के इस्तीफे की मांग को लेकर लोगों ने किया विरोध-प्रदर्शन।
लोगों ने पोस्टर्स के माध्यम से अपना संदेश सरकार तक पहुंचाने की कोशिश की।
लोगों ने पोस्टर्स के माध्यम से अपना संदेश सरकार तक पहुंचाने की कोशिश की। रवीना शशि मिंज

राज एक्सप्रेस। रविवार 5 जनवरी की शाम करीब 50 नकाबपोश लोगों ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में घुसकर यहां के छात्रों व शिक्षकों पर हमला किया। आरोपियों ने बच्चों के साथ बुरी तरह मार-पीट की, हॉस्टल में तोड़फोड़ की, वहां खड़ी कारों को क्षतिग्रस्त कर दिया। घायल छात्रों ने एबीवीपी कार्यकर्ताओं पर मारपीट का आरोप लगाया। वहीं, एबीवीपी नेताओं ने वामपंथी छात्रों पर हमले का आरोप लगाया है।

जेएनयू में हुई इस हिंसा के विरोध में भारत के कई हिस्सों में विरोध-प्रदर्शन हुए। जिस तरह जामिया में हुए हमले के बाद भारत के अनेक विश्वविद्यालयों और शिक्षण संस्थानों में विरोध का स्वर मुखर हुआ था, एक बार फिर पूरा देश जेएनयू के लिए एकजुट होता दिख रहा है। मुम्बई में गेटवे ऑफ इंडिया पर कई प्रख्यात लोगों की उपस्थिति में विरोध-प्रदर्शन हुआ तो वहीं पटना, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और एफटीआईआई, पुणे में भी जेएनयू के समर्थन में प्रदर्शन हुए।

मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल भी जेएनयू के समर्थन में सड़कों पर उतरा। सोमवार, 6 जनवरी को शहर के व्यस्ततम बोर्ड ऑफिस चौराहे पर लोगों ने जेएनयू में हुई हिंसा और नागरिकता संशोधन अधिनियम(सीएए), नेशनल रिजिस्टर ऑफ सिटिज़नशिप(एनआरसी), नेशनल पॉप्युलेशन रजिस्टर (एनपीआर) के विरोध में प्रदर्शन किया। दोपहर करीब 3:30 बजे छात्रों, कई संस्थाओं से जुड़े लोगों और शहर के आमजनों ने बोर्ड ऑफिस चौराहे पर इकट्ठा होकर सरकार के खिलाफ नारेबाज़ी की। उन्होंने नारे लगाकर, गीत गाकर और पोस्टर्स के माध्यम से अपना विरोध दर्ज़ कराया।

भोपाल में हुए इस विरोध-प्रदर्शन में पूर्व-प्रशासनिक अधिकारी कनन गोपीनाथन भी शामिल रहे। उन्होंने जम्मू और कश्मीर से धारा-370 हटने के विरोध में अपने पथ से इस्तीफा दे दिया था। यह प्रदर्शन पूरी तरह शांतिपूर्ण रहा। चौराहे पर स्थित बाबा साहेब अम्बेडकर की मूर्ति के आस-पास इकट्ठा होकर लोगों ने नारे लगाए। लोगों ने राष्ट्रगान गाकर इस प्रदर्शन को यहां समाप्त किया और इक़बाल मैदान में चल रहे सत्याग्रह की ओर बढ़े।

बोर्ड ऑफिस चौराहा
बोर्ड ऑफिस चौराहारवीना शशि मिंज

राजधानी स्थित इक़बाल मैदान में बुधवार, 1 जनवरी से सीएए के खिलाफ धरना प्रदर्शन चल रहा है। अलग-अलग संगठनों से जुड़े लोग लगातार यहां पहुंच रहे हैं। सोमवार को वरिष्ठ पत्रकार एल एस हरदीनिया, दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर और शिक्षाविद अनिल सद्गोपाल एवं पूर्व-प्रशासनिक अधिकारी कनन गोपीनाथन भी यहां पहुंचे। लोगों को सम्बोधित करते हुए गोपीनाथन ने कहा, 'सरकार को असल परेशानी सवाल पूछने से है। जैसे ही कोई सवाल करता है वो उसे एक नाम दे देते हैं।'

'जेएनयू के बच्चे आज़ादी की बात कर सवाल पूछते हैं तो उन्हें टुकड़े-टुकड़े गैंग बोलते हैं। कोई मध्यवर्गी पढ़ा-लिखा व्यक्ति सवाल करता है तो उसे अर्बन नक्सली कह देते हैं। कोई मुसलमान सवाल करता है तो उसे जिहादी, आतंकवादी कह देते हैं। कोई सिख सवाल पूछता है तो उसे खालिस्तानी करार देते हैं। कोई गरीब-आदिवासी सवाल करता है तो उसे नक्सली और माओवादी कहने लगे। अगर कोई हिन्दू सवाल करता है तो उसे देशद्रोही कह देते हैं। सरकार से कोई भी सवाल पूछे उसने उन्हें एक नाम दे दिया और देश का दुश्मन बता दिया है। उसने अपने समर्थकों को खुलेआम आज़ादी दे दी है कि वो इन लोगों पर हमला करें।'

कनन गोपीनाथन, पूर्व-प्रशासनिक अधिकारी

कनन गोपीनाथन ने लोगों को भी इस परिस्थिति के लिए ज़िम्मेदार ठहराया। साथ ही विश्वविद्यालयों के माहौल को चिंताजनक बताया

पूर्व-प्रशासनिक अधिकारी कनन गोपीनाथन
पूर्व-प्रशासनिक अधिकारी कनन गोपीनाथनप्रज्ञा

'इस परिस्थिति को हमने बढ़ने दिया, कई मीडिया संस्थानों ने भी इसे बढ़ने दिया है। सरकार ने यह बताया कि सरकार से सवाल करना गलत है। अगर आप सरकार से सवाल करते हैं तो आप देशद्रोह कर रहे हैं। इमरजेंसी के दौरान भी किसी विश्वविद्यालय में ऐसा नहीं हुआ था जैसा कि अब हो रहा है। इससे हमें डरने की ज़रूरत है लेकिन जितना हमें डरने की ज़रूरत है उससे कहीं ज़्यादा उन्हें डरने की आवश्यकता है क्योंकि उनके एक काम से आज पूरे देश में विद्यार्थी सड़कों पर उतरे हैं। मुद्दों को समझना, सवाल करना, ज़रूरत पड़ने पर सड़कों पर उतरना हमारा लोकतंत्र है और जो आज़ादी की और लोकतंत्र की सांस है उसे लेना। एक बार हमने ये ले ली है तो अब हम ये छोड़ेंगे नहीं। अब मुझे इस देश के लोकतंत्र पर इतना भी शक नहीं है।'

कनन गोपीनाथन, पूर्व-प्रशासनिक अधिकारी

अनिल सदगोपाल ने नकाबपोश हमलवारों के नकाब पहने पर सवाल उठाया है। उनका कहना है कि, उन हमलावरों को नकाब पहनने की जरूरत इसलिए हुई क्योंकि वो जानते थे कि वो जेएनयू के विद्यार्थियों के साथ गलत कर रहे हैं। हिंदू राष्ट्र की बात करने वाले शर्मसार हैं, ये नकाब धारण कर अपनी शर्म छुपा रहे हैं। अब इनमें हिम्मत नहीं है कि, युवाओं का सामना कर सकें। आँख से आँख मिलाकर देख सकें।

अनिल सदगोपाल ने कहा कि, जेएनयू, जामिया मिल्लिया इस्लामिया और एएमयू विश्वविद्यालय के बच्चे सरकार से वही सवाल पूछ रहे हैं जो कभी शहीद भगत सिंह ने अंग्रेज शासन से पूछा था।

भगत सिंह ने शिक्षा का मुद्दा उठाते हुए अंग्रेजों से कहा था- ये पढ़ाई किस काम की जो हमें यह नहीं सीखाती देश की समस्याएं क्या हैं? इन समस्याओं से जूझने के लिए हमें क्या कदम उठाना चाहिए। युवाओं को अपनी ड्यूटी नहीं सिखाती, ऐसी शिक्षा को हम खारिज करते हैं, ऐसी शिक्षा फ़िजूल है। ये निर्थक है, हमारे किसी काम की नहीं है।

अनिल सद्गोपाल, शिक्षाविद

जेएनयू में हुई हिंसा में अभी तक कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है। हालांकि, जेएनयू छात्रसंघ की अध्यक्ष आईशी घोष जो कि इस हिंसा में बुरी तरह घायल भी हुई थीं, दिल्ली पुलिस ने उनके और अन्य 19 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज़ की है। यह एफआईआर शनिवार को विश्वविद्यालय के सर्वर रूम में तोड़फोड़ करने और सिक्योरिटी गार्ड्स पर हमला करने के आरोप में हुई है।

एफआईआर का समय भी नोट करने योग्य है। रविवार की शाम जब जेएनयूएसयू अध्यक्ष और विद्यार्थियों को विश्वविद्यालय कैंपस में मारा जा रहा था तब 8 बजकर 43 मिनिट पर यह एफआईआर दर्ज़ की गई है। इस शिकायत में यह आरोप लगाया गया कि, घोष शारीरिक हिंसा में शामिल थीं, उन्होंने महिला गार्ड्स को धक्का दिया और कई गार्ड्स को धमकी भी दी।

जेएनयू छात्रसंघ ने कहा है कि, विश्वविद्यालय प्रशासन ने नकाबपोश सेक्योरिटी गार्ड्स से सर्वर रूम में तोड़फोड़ कराई और बच्चों पर हमला भी। साथ ही उन्होंने इन नकाबपोश लोगों पर अध्यक्ष आईशी घोष और बच्चों पर हमला करने का आरोप भी लगाया।

सोशल मीडिया में एक पोस्ट वायरल हो रहा है। इस पोस्ट में हिन्दू रक्षा दल ने जेएनयू पर हुए हमले की ज़िम्मेदारी ली है। उन्होंने दावा किया कि यह हमारे कार्यकर्ताओं ने किया है और आगे भी हम ऐसा कर सकते हैं।

पिछले कुछ सालों में विचारधारा की लड़ाई ने अपना रूख धारदार किया है। चाहे हैदराबाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय में रोहित वेमुला की आत्महत्या हो या कन्हैया कुमार को देशद्रोही साबित करने की कवायद। रोहित वेमुला की आत्महत्या के बाद एबीवीपी और भाजपा के एक केन्द्रीय मंत्री ने भी उन पर देश विरोधी गतिविधियों में लिप्त होने का इल्ज़ाम लगाया था। वहीं साल 2016 में जेएनयू में देशविरोधी नारे लगाने की बात ने तूल पकड़ा। इस तरह की घटनाएं देश के कई विश्वविद्यालयों में हुईं, चाहे दिल्ली विश्वविद्यालय हो या अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी।

पिछले चार सालों में विश्वविद्यालय कैम्पस विचारधारा की लड़ाई का केन्द्र बन गए हैं। एक तरफ कट्टरवादी हिन्दुत्व की लड़ाई है तो दूसरी तरफ वामपंथी उदारवाद।

शिक्षण संस्थानों पर हमला सिर्फ छात्रों पर हमला नहीं है, ये हमारे देश के भविष्य पर भी हमला है। हमारे लोकतंत्र और संविधान पर हमला है, इसलिए हम इन छात्रों के साथ खड़े हैं जो निस्वार्थ रूप से लोकतांत्रिक मूल्यों और संविधान की मूल्यों को बचाने के लिए आगे आ रहे हैं।

माधुरी ( सामाजिक कार्यकर्ता)

भोपाल में हुए प्रदर्शन की कुछ तस्वीरें

जेएनयू के  विद्यार्थियों के समर्थन में लोग पोस्टर लिए खड़े थे।
जेएनयू के विद्यार्थियों के समर्थन में लोग पोस्टर लिए खड़े थे।प्रज्ञा
प्रदर्शन का मकसद समझाती जनता।
प्रदर्शन का मकसद समझाती जनता।रवीना शशि मिंज
अलग- अलग पोस्टर थामे नज़र आए प्रदर्शनकारी
अलग- अलग पोस्टर थामे नज़र आए प्रदर्शनकारीप्रज्ञा
आगे भी प्रोटेस्ट जारी रखने की बात कही गई।
आगे भी प्रोटेस्ट जारी रखने की बात कही गई।रवीना शशि मिंज
सरकार की हिंदु राष्ट्र बनाने की मंशा पर भी सवाल उठाया गया।
सरकार की हिंदु राष्ट्र बनाने की मंशा पर भी सवाल उठाया गया।रवीना शशि मिंज
प्रधानमंत्री के ट्वीट का सहारा लेते हुए उन पर ही निशाना साधा गया।
प्रधानमंत्री के ट्वीट का सहारा लेते हुए उन पर ही निशाना साधा गया।रवीना शशि मिंज
क्योंकि सरकार और मीडिया को लगता है कि प्रदर्शकारियों को सीएए और एनआरसी का मतलब नहीं पता है।
क्योंकि सरकार और मीडिया को लगता है कि प्रदर्शकारियों को सीएए और एनआरसी का मतलब नहीं पता है।प्रज्ञा
इकबाल मैंदान में कई दिनों से चल रहा है प्रदर्शन।
इकबाल मैंदान में कई दिनों से चल रहा है प्रदर्शन।प्रज्ञा

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