बिरसा मुंडा जयंती
बिरसा मुंडा जयंतीSyed Dabeer Hussain - RE

बिरसा मुंडा जयंती : 25 साल के बिरसा मुंडा से कांपते थे अंग्रेज, जेल में धीमा जहर देकर मारा

महज 25 साल के बिरसा मुंडा से अंग्रेज इतना डरते थे कि उन्होंने युवा बिरसा मुंडा को धीमा जहर दिया, जिससे साल 1900 में उनका निधन हो गया।

राज एक्सप्रेस। आज भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी और आदिवासी नेता बिरसा मुंडा की 147वीं जयंती है। 15 नवंबर 1875 को उलिहातू गांव में जन्में बिरसा मुंडा को आदिवासी लोग भगवान की तरह पूजते हैं। बिरसा मुंडा को आज भी आदिवासी समाज के हक़ की लड़ाई लड़ने और अंग्रेजी हुकूमत के अत्याचारों के खिलाफ सशक्त विद्रोह के लिए याद किया जाता है। महज 25 साल के बिरसा मुंडा से अंग्रेज इतना डरते थे कि उन्होंने युवा बिरसा मुंडा को धीमा जहर दिया, जिससे साल 1900 में उनका निधन हो गया। तो चलिए आज बिरसा मुंडा की जयंती पर जानते हैं, उनके जीवन से जुड़ी रोचक बातें।

बन गए थे ईसाई :

बिरसा मुंडा का जन्म मुंडा जनजाति से संबंध रखने वाले आदिवासी परिवार में हुआ था। उन्होंने अपनी शुरूआती शिक्षा सलगा में अपने शिक्षक जयपाल नाग से प्राप्त की थी। अपने शिक्षक की सलाह पर उन्होंने जर्मन मिशन स्कूल में दाखिला ले लिया। इस दौरान उन्हें बताया गया कि ईसाई उपदेशों का पालन करने से महाजनों द्वारा छीनी गई जमीन वापस मिल जाएगी। इससे प्रभावित होकर उन्होंने ईसाई धर्म अपना लिया और अपना नाम बिरसा डेविड रख लिया।

अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह :

महज 15 साल की उम्र में ही बिरसा मुंडा को इस बात का अंदाजा हो गया था कि अंग्रेजों की कथनी और करनी में बड़ा अंतर हैं और ईसाई मिशनरी की आड़ में लोगों का धर्म परिवर्तन किया जा रहा है। यही कारण है कि उन्होंने ईसाई धर्म का त्याग करके फिर से अपना नाम बिरसा मुंडा रख लिया। इसके बाद उन्होंने धर्म परिवर्तन और आदिवासियों की जमीन छिनने को लेकर अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह छेड़ दिया। वह अंग्रेजों द्वारा शुरू की गई जमींदारी और राजस्व-व्यवस्था के सख्त खिलाफ थे।

धरती बाबा :

आदिवासियों के लिए जंगल सब कुछ होता है, लेकिन अंग्रेज उसी जंगल पर कब्जा करना चाहते थे। ऐसे में बिरसा मुंडा ने आदिवासियों को इकठ्ठा करके अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई छेड़ दी। इससे वह आदिवासियों के बीच इतने लोकप्रिय हो गए कि लोग उन्हें ‘धरती बाबा’ कहने लगे थे। साल 1895 से लेकर साल 1898 के बीच अंग्रेजों और आदिवासियों के बीच कई बार लड़ाई हुई।

अंग्रेजों ने दिया धीमा जहर :

महज 22 साल के बिरसा मुंडा अंग्रेजों के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती बन चुके थे। अंग्रेजों ने बिरसा मुंडा की जानकारी देने पर 500 रुपए इनाम देने की घोषणा की थी। उस समय यह बहुत बड़ी रकम हुआ करती थी। ऐसे में कुछ लोगों ने पैसे के लालच में अंग्रेजों को बिरसा मुंडा के छिपने की जगह के बारे में बता दिया। जिसके बाद अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार करके रांची की जेल में बंद कर दिया। जेल में बिरसा मुंडा को धीमा जहर दिया गया, जिससे कुछ ही दिनों में उनका निधन हो गया। 25 साल की उम्र में ही बिरसा मुंडा ने आदिवासियों के लिए ऐसा काम किया कि आदिवासी आज भी उन्हें भगवान मानकर पूजते हैं।

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