समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के विरोध में सरकार, SC में दाखिल किया हलफनामा
दिल्ली, भारत। समलैंगिक विवाह दो व्यक्तियों के बीच समान लिंग के होने के कारण होता है। इसे लोग समलैंगिक या एलजीबीटी के तौर पर जानते हैं। कुछ देशों में समलैंगिक विवाह कानूनी होता है, जबकि कुछ देशों में यह गैर-कानूनी होता है। ऐसे में अब भारत में समलैंगिक विवाह का मुद्दा चर्चा में है और इस मामले में कानूनी टकराव की स्थिति बनी है। इसी बीच आज रविवार को केंद्र सरकार की ओर से शीर्ष अदालत यानी सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर किया गया है।
समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने का विरोध जताया :
दरअसल, हाल के महीनों में चार समलैंगिक जोड़ों द्वारा कोर्ट से समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग की गई है, जिसकी याचिका कोर्ट में दाखिल हुई, केंद्र सरकार इन याचिकाओं के विरोध में है। इस दौरान केंद्र सरकार की तरफ से अपने हलफनामे में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने का विरोध जताते हुए कोर्ट को बताया कि समलैंगिक संबंध और विषमलैंगिक संबंध स्पष्ट रूप से अलग-अलग वर्ग हैं, जिन्हें समान नहीं माना जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में केंद्र ने कहा है- समान-लिंग वाले व्यक्तियों द्वारा भागीदारों के रूप में एक साथ रहना, जिसे अब डिक्रिमिनलाइज़ किया गया है, भारतीय परिवार इकाई के साथ तुलनीय नहीं है और वे स्पष्ट रूप से अलग-अलग वर्ग हैं जिन्हें समान रूप से नहीं माना जा सकता है।
याचिकाओं को खारिज किया जाना चाहिए :
इतना ही नहीं अपने इस हलफनामे में केंद्र की ओर से याचिका का विरोध कर यह बात भी कहीं गई है कि, समलैंगिकों को कानूनी मान्यता देने वाली याचिकाओं को खारिज किया जाना चाहिए, क्योंकि इन याचिकाओं में कोई योग्यता नहीं है।
इसके अलावा सरकार ने LGBTQ विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग वाली याचिका के खिलाफ भी यह प्रतिक्रिया दी है कि, ''समान-लिंग संबंध और विषमलैंगिक संबंध स्पष्ट रूप से अलग-अलग वर्ग हैं, जिन्हें समान रूप से नहीं माना जा सकता है।''
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