भोपाल गैस त्रासदी: भोपालवासियों के लिए मौत का पैगाम लाया था वो काला दिन

आज से 36 साल पहले यही तारीख (3 दिसंबर) भोपाल के लिए ऐसा काला दिन लेकर आई थी, जिसे आज तक भुला पाना मुश्किल है। आज ही के दिन 1984 में ऐसी घटना घटी थीं कि, जिसमें न जाने कितने लोगों की जिंदगी ख़त्म कर दी।
36th anniversary of Bhopal gas tragedy
36th anniversary of Bhopal gas tragedySyed Dabeer Hussain - RE

Bhopal Gas Treasury : आज का दिन इतिहास के पन्नों में कुछ इस तरह शुमार है, जिसे याद करके किसी की भी आंखे नम और कलेजा फट जाए। आज से 36 साल पहले यही तारीख यानि 3 दिसंबर भोपाल के लिए एक ऐसा काला दिन ले कर आया था। जिसे आजतक भुला पाना मुश्किल है। आज के ही दिन एक ऐसी घटना घटी थीं कि, जिसमें न जाने कितने लोगों की जिंदगी ख़त्म कर दी। यह दिन एक भूचाल की तरह आया और सब कुछ तबाह करके चला गया था। न जाने कितने अपने-अपनों से बिछड़ गए और कितने लोग हमेशा के लिए सो गए थे।

भोपाल गैस त्रासदी :

भोपाल स्थित छोला नाका इलाके में एक यूनियन कार्बाइड नाम की एक कंपनी हुआ करती थी। उसमें 3 दिसंबर 1984 को अचानक ही मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) नाम की ज़हरीली गैस का रिसाव होना शुरू हो गया था। जिसका प्रकोप कुछ ही देर में इतना अधिक बढ़ गया कि, चारों तरफ हाहाकार मच गया, न जाने कितने लोगों को इस गैस ने मौत के कुएं में धकेल दिया। भोपाल का आलम कुछ ऐसा था कि, जिधर देखो उधर लाशों के ढेर नजर आ रहे थे। क्या जानवर क्या इंसान सब सड़कों पर इस ज़हरीली गैस से बचने की कोशिश में इधर-उधर भाग रहे थे, लेकिन वो समय भोपालवासियों के लिए एक काल बन कर आया था, जो न जाने कितने लोगों को मौत के घाट उतार कर चला गया।

कपंनी का इतिहास :

दरअसल, साल 1969 में यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन ने एक यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (UCIL) नाम की कंपनी भारत में स्थापित की, जहां कीटनाशक बनाया जाता था। इस कंपनी के खुलने के 10 सालों बाद साल 1979 में कंपनी ने भोपाल में एक प्रोडक्शन प्लांट की शुरुआत की, इस प्लांट में भी कीटनाशक ही बनाया जाता था। कंपनी ने इस प्लांट को सेविन नाम से शुरू किया था। इस कंपनी में जो कीटनाशक बनाया जाता था, उसका नाम मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) था। जबकि उस समय अन्य सभी कंपनियां कारबेरिल नाम के उत्पाद का इस्तेमाल करती थीं। UCIL ने मिथाइल आइसोसाइनेट का चुनाव सिर्फ इसलिए किया, क्योंकि इसको बनाने में कम लागत आती थी और यहीं से गलतियों की शुरुआत हुई। जिसका अंजाम सभी जानते हैं।

इस घटना से पहले भी कई बार हुआ रिसाव :

भोपाल में घटित गैस त्रासदी की घटना से पहले भी कई बार इस कंपनी में गैस का रिसाव हो चुका था।

  • पहली बार 1981 में गैस का रिसाव हुआ। जिसमें एक व्यक्ति की जान गई थी।

  • दूसरी बार जनवरी 1982 गैस रिसाव होने पर 24 वर्कर्स की हालत काफी गंभीर हो गई थी।

  • तीसरी बार फरवरी 1982 रिसाव होने पर 18 वर्कर्स प्रभावित हुए

  • चौथी बार अगस्त 1982 गैस के रिसाव होने पर कंपनी का लगभग 30 फ़ीसदी हिस्सा जल गया था

  • पांचवी बार अक्टूबर 1982 रिसाव होने पर एक व्यक्ति बुरी तरह जल गया।

  • इसके बाद 1983-1984 के दौरान कई बार इन जहरीली गैसों का रिसाव हुआ। इसके बावजूद भी इसके लिए किसी ने कोई उचित कदम नहीं उठाया।

मांग कम होने पर भी बनता रहा :

बताते चलें, साल 1980 तक इस कीटनाशक की मांग बहुत कम हो गई थी और कंपनी की हालत काफी जर्जर, परन्तु फिर भी कंपनी ने जहरीली गैस को बनाना बंद नहीं किया। वहीं, दूसरी तरफ कंपनी के रखरखाव पर ध्यान देना भी पूरी तरह बंद कर दिया गया था। साल 1984 के नवंबर माह तक इस प्लांट की स्थिति बेहद खराब हो चुकी थी। इस प्लांट के ऊपर एक E610 नामक टैंक बना हुआ था, जिसमें 42 टन MIC भरी हुई थी जबकि, इसमें 40 टन से अधिक MIC नहीं होना चाहिए थी। यदि टैंक ही उस बड़ी दुर्घटना का कारण बना।

भोपाल गैस त्रासदी :

साल 1984 की 2-3 दिसंबर की उस खौफनाक रात में अचानक E610 टैंक में पानी घुस गया, पानी घुसने के कारण टैंक के अंदर रिएक्शन होने लगा और गैस का रिसाव शुरू हो गया। इसके पाइपलाइन पूरी तरह जंक खाये हुए थे, जिसके कारण इस रिसाव को कंट्रोल करना बहुत ही मुश्किल हो रहा था। इस जंक के कारण टैंक में लोहा मिल गया जिससे टैंक का तापमान बढ़ने लगा और बढ़कर 200 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया, जबकि नॉर्मली तापमान 4 से 5 डिग्री के बीच रहना चाहिए था। टैंक के अंदर लगातार दबाव बढ़ता ही चला गया और इमर्जेंसी प्रेशर पड़ने लगा और लगभग 50 से 60 मिनट के अंदर ही 40 मीट्रिक टन MIC का रिसाव हो गया, जो एक जहरीली गैस थी। यह गैस कुछ ही देर में इतनी तेजी से आसपास के एरिया में फैल गई सुबह तक तो भोपाल का अधिकांश हिस्सा इस गैस की चपेट में आ चुका था।

क्या हुआ फिर ?

इस जहरीली गैस ने भोपाल के दक्षिण पूर्वी हिस्से को बहुत ही बुरी तरह प्रभाभित किया। यह जहरीली गैसे (नाइट्रोजन के ऑक्साइड, कार्बन डाइऑक्साइड, मोनोमेथलमीन, हाइड्रोजन क्लोराइड, कार्बन मोनोक्साइड, हाइड्रोजन सायनाइड और फॉसजीन गैस) लगातार फैल रही थीं, जिससे लोगों को आँखों में जलन, घुटन उल्टी, पेट फूलने और सांस लेने में दिक्कत जैसी समस्या होने लगी थी। इस गैस की चपेट में आये इंसानों की तो फिर भी गिनती की गई थी, लेकिन न जाने कितने बेजुबान जानवर भी मारे गए, जिनका किसी के पास कोई हिसाब नहीं है।

कुल नुकसान और भरपाई :

जब गैस के रिसाव का असर कुछ कम हुआ, तब तक हजारों लोगों की जान जा चुकी थी। गणना के आधार पर इस आपदा से भोपाल का लगभग 20 वर्ग किलोमीटर हिस्सा प्रभावित हुआ था, लगभग 8000 लोगों की मृत्यु हुई थी, जिनकों सामूहिक रूप से दफनाया गया और अंतिम संस्कार किया गया। लगभग 2,000 जानवरों के शव को विसर्जित कर दिया गया। इस गैस से लगभग 5 लाख लोग पीड़ित हुए थे। हालांकि सरकार ने गैस त्रासदी में पीड़ित हुए लगभग 450 परिवारों को पुनर्वास की सुविधा दी, साथ ही जिन लोगों की मृत्यु हुई, उनके लिए 1 लाख और पीड़ित हुए लोगों को 25 हजार रूपये के मुआवजे की घोषणा की गयी, जिसे बाद में आवंटित किया गया। इस साल भोपाल में विद्यार्थियों को बिना परीक्षा लिए पास कर दिया गया था।

क्या हुई गलतियाँ :

हालांकि, सरकार के पास उस समय भी इस त्रासदी के लिए सिर्फ भरपाई करने का ही एक रास्ता था, जो सरकार ने किया, लेकिन यदि आपने पूरा घटना क्रम ध्यानपूर्वक पढ़ा होगा तो, आपको कई जगह कुछ ऐसी गलतियां नजर आई होंगी। जिन्हें जानबूझ कर नजरअंदाज किया गया था। जैसे -

पहली गलती :

गलतियों की शुरुआत कुछ इस तरह हुई कि, जब अन्य कंपनियां कारबेरिल गैस का इस्तेमाल करती थी, तब UCIL ने सिर्फ कम लागत के कारण MIC का चुनाव किया जो कि, एक बड़ी गलती है यदि UCIL कंपनी भी दूसरी गैस का इस्तेमाल करती तो शायद इतनी जहरीली गैस से लोग बच जाते।

दूसरी गलती :

इसके बाद 1981 से 1984 के बीच जब कई बार गैस का रिसाव हुआ, जिसमें कम नुकसान हुआ; यदि तब ही प्रशासन थोड़ा सचेत और जागरूक हो जाता तो शायद इतनी बड़ी घटना नहीं होती। इस गलती को भी नजरअंदाज किया गया।

तीसरी गलती :

साल 1980 तक इस कीटनाशक की मांग कम हो जाने के बाद भी कंपनी लगातार इस जहरीली गैस को बनाती रही।

चौथी गलती :

E610 टैंक जब 40 टन MIC के लिए ही बना था, तो उसमें 42 टन MIC रखना भी एक बड़ी गलती ही थी।

पांचवी गलती :

लगातार कंपनी की हालत जर्जर होती जा रही थी, लेकिन कंपनी के रखरखाव और मरम्मत का ख्याल किसी को नहीं था, पाइपलाइन में जंग लगी हुई थी, जिससे वर्कर बाल्व बंद करने में असमर्थ रहा और उसकी वहीं मृत्यु हो गई। यदि कंपनी इन सभी गलतियों पर समय रहते ध्यान देती तो, शायद इस दुर्घटना में मारे गए लोग आज हमारे बीच जिन्दा होते।

गैस त्रासदी का प्रभाव :

भोपाल गैस त्रासदी का प्रभाव कहीं न कहीं आज भी नजर आता है। न जाने कितने पेड़-पौधे बंजर हो गए। गैस रिसाव के चलते लगभग 5 लाख लोग जख्मी हुए, कई आंशिक तौर पर अस्थायी विकलांग हो गए। जो लोग इस गैस की चपेट में आये और आज भी जिन्दा है, उसका असर उनके द्वारा जन्म दिए बच्चों पर भी हुआ है। इस गैस का असर मात्र दुर्घटना के समय तक ही सीमित नहीं था। खबरों के अनुसार, इस घटना का जिम्मेदार वॉरन एंडरसन को बताया गया जो, फैक्ट्री का संचालक था। एंडरसन इस घटना के तुरंत बाद ही अमेरिका चले गए और यहाँ उनके नाम से केस चलता रहा। भारत सरकार उसे अमेरिका से भारत लाने में असफल रही और फिर 29 सितंबर, 2014 को उसकी मौत हो गई। इस मामले में किसी को सजा नहीं मिली सिवाय उनके जो इस गैस की चपेट में आये थे।

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