AMRUT Yojana : करोड़ों की लाइनें डलीं पर पानी कहां से आएगा यह तो बताओ

ग्वालियर, मध्यप्रदेश : करोड़ों रुपए खर्च कर लाइने तो डाली जा रही हैं, लेकिन यह कोई नहीं बता रहा कि लाइने डालने से क्या पानी की समस्या समाप्त हो जाएगी?
करोड़ों की लाइनें डलीं पर पानी कहां से आएगा यह तो बताओ
करोड़ों की लाइनें डलीं पर पानी कहां से आएगा यह तो बताओराज एक्सप्रेस, संवाददाता

हाइलाइट्स :

  • एबीडीपी के बाद अमृत योजना की लाइन बिछाई जा रहीं

  • पानी का एक मात्र साधन तिघरा, फिर लाइने डालने से कैसे आएगा पानी

ग्वालियर, मध्यप्रदेश। जब गर्मी का मौसम होता है तो पानी की समस्या शहर में आ जाती है। ऐसे में पानी एक दिन छोड़कर दिया जाने लगता है। जब पानी का संकट होता है तो उसको देखते हुए पानी के लिए कई तरह की योजनाएं बनाने की बातें होने लगती हैं, लेकिन सालों बीतने के बाद भी सिर्फ और सिर्फ तिघरा पर ही निर्भर बने हुए हैं। हां करोड़ो रुपए खर्च कर लाइनें तो डाली जा रही हैं, लेकिन यह कोई नहीं बता रहा कि लाइनें डालने से क्या पानी की समस्या समाप्त हो जाएगी?

शहर की आबादी के हिसाब से लोगों की प्यास बुझाने एवं आसपास के गांवों में सिंचाई के लिए ग्वालियर रियासत ने वर्ष 1917 में तिघरा डेम का निर्माण कराया गया था। लेकिन तिघरा डेम उस समय बीच में ही ढ़ह गया जिस कारण उसका पुन: 1929 में निर्माण कराया गया। जब तिघरा डेम का निर्माण कराया गया था उस समय शहर की आबादी हजारों में थी जो अब बढ़कर 18 से 20 लाख के ऊपर पहुंच चुकी है, लेकिन पानी का साधन अभी भी तिघरा बना हुआ है। 92 साल में शहर के लोगों को पानी उपलब्ध कराने के लिए कोई दूसरा साधन तक तैयार नहीं कराया जा सका है। दूसरा साधन तो छोड़ो तिघरा डेम की सिल्ट तक साफ नहीं कराई जा सकी है जिसके कारण तिघरा में पानी एकत्रित करने की क्षमता भी कम हो गई है। हां हर बार पानी संकट होने के बाद तमाम योजनाओं की बात तो होती है जिसमें एक चंबल से पानी की योजना भी है, लेकिन जैसे ही बारिश का मौसम शुरू हो जाता है उक्त योजनाओं को भुला दिया जाता है। यही कारण है कि शहर के लोग पानी के लिए जूझने के लिए मजबूर हो रहे है। शहर के कई इलाके तो ऐसे है जहां अभी भी सिर्फ टेंकर ही पानी उपलब्ध कराने का एकमात्र साधन है।

गर्मी में बढ़ जाती है पानी की चार गुना खपत :

भीषण गर्मी के मौसम में लोगों को प्यास बुझाने के लिए पानी का संकट सबसे अधिक रहता है। वैसे भी मौसम के हिसाब से गर्मी में पानी की खपत अधिक रहती है। सर्द मौसम के मुकाबले पानी की खपत चार गुना अधिक होने से संकट बना रहता है। सर्दी के मौसम में जहां लोगों को प्यास भी कम लगती है साथ ही ठंडक पाने के लिए कूलरो का सहारा नहीं लेना पड़ता। शहर के लोगों की पानी की जरूरत को पूरा करने के लिए तिघरा डेम के साथ ही शहर में हाईडेंट सहारा बने हुए है। तिघरा डेम की क्षमता पूरे शहर की प्यास बुझाने के लिए नाकाफी है, इसका मुख्य कारण यह है कि डेम से निकलने वाला पानी लीकेज होने के कारण करीब 30 फीसदी बेस्टेज होता है।

पानी के लिए रात को जागने मजबूर :

पानी की जरूरत का अहसास इस बात से लगाया जा सकता है कि लोगों को रात की नींद भी उसके लिए उड़ानी पड़ती है। पानी संकट में बिजली भी अपना रोल अदा करने में लगी हुई है, क्योंकि जिस समय पानी सप्लाई का समय निर्धारित रहता है उसी समय बत्ती गुल हो जाती है। इस बत्ती गुल के कारण लोग रात के समय नींद खराब कर नलों की टोटी से पानी टपकने का इंतजार करने मजबूर रहते हैं।

नलकूपों की मोटरे छोड़ रही साथ :

शहर में पानी सप्लाई करने के लिए खोदे गए नलकूपों की मोटरें भी हर दूसरे दिन साथ छोड़ रही है। इस संबंध में निगम के अधिकारियों का कहना है कि तापमान का असर नलकूपों की मोटरों पर भी पड़ रहा है। हालत यह है कि मोटर बदलने के बाद एक दिन पानी की सप्लाई हो पाती है कि दूसरे दिन पुन: मोटर जवाब दे जाती है, ऐसी स्थिति में लोगों को पानी के लिए पैसे खर्च कर टेंकरो का सहारा लेने मजबूर होना पड़ रहा है।

अब लाइन डालकर क्या समस्या का समाधान हो जाएगा :

अब सवाल यह उठने लगा है कि एबीडीपी के बाद अमृत योजना के नाम से नई लाइने डाली जा रही है जिस पर करोड़ो की राशि खर्च की जा रही है, तो क्या लाइन डलने के बाद पानी का संकट समाप्त हो जाएगा? इसको लेकर जब सवाल पूछा जाता है तो एक ही जवाब मिलता है कि पानी की बर्बादी रुकेगी ओर नई योजना से लाइन जोड़ी जाएगी। लेकिन सवाल यह है कि जब तिघरा के अलावा दूसरा पानी का कोई साधन नहीं है तो फिर लाइने डाल कर करोड़ों की राशि क्यों बर्बाद की जा रही है। पहले जो लाइन डली हुई है उसमें ही नई योजना जो बताई जा रही है पानी के लिए उससे क्यों नहीं जोड़ा जा रहा? सवाल तो कई है, लेकिन जवाब हमेशा की तरह घुमा फिरा कर ही मिलता है। यही कारण है कि शहर के लोग भी अमृत योजना की लाइन से पानी का इंतजार कर रहे हैं।

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