राज एक्सप्रेस। विभाग को लगातार पत्र व्यवहार के बाद भी नहीं दिया जा रहा ध्यान, प्रदेश में आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को निर्धारित समय पर वेतन नहीं मिल पा रहा है। चार माह से यह कर्ता वेतन के लिए भटक रहे हैं, जबकि इनसे काम क्षमता से अधिक लिया जा रहा है। रविवार को राजधानी आई इन कर्ताओं ने आरोप लगाया कि, कलेक्टर काम तो अनेक योजनाओं का करवा रहे हैं, लेकिन वेतन के लिए रोना बजट का रोया जा रहा है।
आंगनबाड़ी कर्ताओं को चार माह से नहीं मिला वेतन -
आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं ने रविवार को वेतन में विलंब तथा अनेक समस्याओं को लेकर राजधानी स्थित भारतीय मजदूर संघ के कार्यालय में बैठक ली। इनका कहना है कि शहर से लेकर गांव और दूरस्थ मजरा टोलों में शासन की 50 से अधिक योजनाओं के क्रियान्वयन में उनकी महती भूमिका रहती है। उसके बावजूद पिछले चार माह से कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं को मानदेय का भुगतान नहीं किया गया है।
यह दोनों ही वर्ग के कर्मचारी हर दिन जिला कार्यक्रम अधिकारियों और कलेक्टर के कार्यालयों में चक्कर काट रही हैं। वहां जवाब एक ही मिल रहा है कि शासन से वेतन फंड आवंटित नहीं हुआ है। इस कारण वेतन का भुगतान संभव नहीं है।
3 माह से भुगतान नहीं होने के कारण परिवारों की आर्थिक स्थिति बिगड़ गई है। बच्चों की स्कूल फीस अटक गई है। परिवार और सामाजिक कार्यक्रमों में वह हिस्सा लेने से वंचित हो रही हैं।
कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं का कहना-
अधिकारी कर रहे लगातार अन्याय -
भारतीय मजदूर संघ के प्रदेश महामंत्री केपी सिंह का कहना है कि, पिछले चार माह से वेतन न मिलने के कारण आंगनबाड़ी केन्द्रों की कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं के परिवारों में लगातार हालात बिगड़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि इनके साथ अधिकारी एक और अन्याय कर रहे हैं। शासन से कोई आदेश नहीं हैं, फिर भी जिलों में कार्यक्रम अधिकारी इनके खातों में एकमुश्त की बजाय किश्तों में मानदेय भुगतान की राशि डाल रहे हैं। विभाग के आला अफसरों से भी इस संबंध की शिकायतें की गई, लेकिन कोई ध्यान नहीं दिया गया है।
केपी सिंह का आरोप है कि -
वेतन के लिए जहां इन्हें सताया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर इन्हें एक नया काम दे दिया गया है। इनसे घर-घर बीपीएल का सर्वे करवाया जा रहा है। इससे आंगनबाड़ी कार्यकर्ता स्वयं को असुरक्षित महसूस करने लगी हैं। उन्होंने बताया कि अब इनकी समस्याओं को लेकर इसी माह बड़ा आंदोलन किया जाएगा।
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