बीएमएचआरसी कैसे बनेगा मेडीकल कॉलेज?
बीएमएचआरसी कैसे बनेगा मेडीकल कॉलेज?Social Media

Bhopal : बीएमएचआरसी कैसे बनेगा मेडीकल कॉलेज ?

भोपाल, मध्यप्रदेश : केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री की घोषणा पर गैस पीड़ित संगठनों ने उठाए सवाल। जहां पर्याप्त संख्या में विशेषज्ञ और डॉक्टर ही नहीं है, वह मेडीकल कॉलेज बनेगा कैसे?

भोपाल, मध्यप्रदेश। हाल ही में राजधानी दौरे पर आए केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. मनसुख मांडविया ने गैस राहत अस्पताल बीएमएचआरसी को मेडीकल कॉलेज बनाने की घोषणा की थी। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि जहां पर्याप्त संख्या में विशेषज्ञ और डॉक्टर ही नहीं है, वहां मेडीकल कॉलेज बनेगा कैसे, इसके अलावा भी कई सवाल गैस पीड़ित संगठन उठा रहे हैं। उनका सवाल है कि अगर डॉक्टर और विशेषज्ञ लाने का सरकार के पास यही रास्ता है तो फिर पिछले 12 साल से ये क्यों नहीं हुआ। संगठन कहते हैं ऐसा इसलिए नहीं हुआ क्योंकि इस अस्पताल का मुख्य उद्देश्य गैस पीड़ितों और उनके बच्चों को सही इलाज देना है, जो अब तक नहीं हो पाया है। गैस पीड़ितों को बेहतर इलाज दिलाने की मांग को लेकर ही गैस पीड़ित संगठनों ने हाईकोर्ट में याचिका लगा रखी है, जिसमें बीएमएचआरसी को एम्स में मर्ज करने की मांग उठाई गई है, ताकि पीड़ितों को अच्छा इलाज मिल सके। लेकिन इस बीच स्वास्थ्य मंत्री की घोषणा ने नए और सवाल खड़े कर दिए हैं।

आसान नहीं है मेडीकल कॉलेज की राह :

अस्पताल का उद्देश्य मेडिकल कॉलेज खोल कर गैस पीड़ितों को इलाज देना नहीं है। अभी यहां बीएमएचआरसी में बेसिक सांइसेस जैसे- एनाटॉमी, फिजियोलॉजी और वायोकैमिस्ट्री आदि के कोई विभाग ही नहीं हैं। इन विभागों की अस्पताल में कोई खास जरूरत भी नहीं है पर मेडिकल कॉलेज खोलने के लिए इन सब की जरूरत होगी। एनएमसी की गाइडलाइन के अनुसार मेडीकल कॉलेज संचालित करने के लिए स्टूडेंट के लिए अलग बिल्डिंग होनी चाहिए, बहुत सारे नए कोर्स शुरू करने पड़ेंगे और इस सब में पांच साल भी कम पड़ेगें। जबकि गैस पीड़ितों को इलाज की जरूरत आज है।

आईसीएमआर के पास अनुभव ही नहीं :

बीएमएचआरसी, आईसीएमआर द्वारा संचालित अस्पताल है। गैस पीड़ित संगठनों का कहना है कि आईसीएमआर ने कभी कोई अस्पताल नहीं चलाया है वो सिर्फ शोध संस्था चलाती है और सुपरस्पेशिलिटी अस्पताल चलाने के लिए ना ही उनके पास कोई अनुभव है और ना ही कोई कार्य क्षमता और यही इस अस्पताल की बिगड़ती व्यवस्था की एकमात्र वजह है।

पहले ही दुर्दशा का शिकार :

बीएमचआरसी में रोज की ओपीडी करीब 3 से 5 हजार तक होती है। लेकिन यहां कई विभागों में डॉक्टर और विशेषज्ञ नहीं हैं। नए डॉक्टर आने को तैयार नहीं हैं। पुराने दो दर्जन से ज्यादा डॉक्टर नौकरी छोड़कर जा चुके हैं, ज्यादातर समय दवाओं और चिकित्सा उपकरणों का टोटा रहता है।

एम्स में मर्ज करें या पीजीआई चढ़ीगढ़ की तर्ज पर चलाएं :

या तो बीएमएचआरसी को एम्स में मर्ज किया जाए और अगर यह संभव नहीं है तो फिर पीजीआई चंडीगढ़ की तर्ज पर इसे शुरू किया जाए। इससे विशेषज्ञ भी आएंगे और डाक्टर भी और गैस पीड़ितों का इलाज सुचारु रूप से हो सकेगा। मेडीकल कॉलेज बनाने से गैस पीड़ितों का कोई भला होगा ऐसा हमें नहीं लगता।

रचना ढींगरा, भोपाल ग्रुप फॉर इंफार्मेशन एंड एक्शन

इलाज पहली जरूरत :

पिछले 3 दशक से ज्यादा समय से गैस पीड़ितों के लिए इलाज और पुर्नवास सबसे बड़ी चुनौती रही है। पीड़ितों को अच्छे इलाज की जरूरत है। लेकिन जो घोषणाएं पहले सरकारों ने की हैं, अब तक उन्हीं पर अमल नहीं हुआ। मेडीकल कॉलेज से ज्यादा जरूरी है, गैस पीड़ितों को अच्छा इलाज मिले इसकी चिंता हो।

बालकृष्ण नामदेव, निराश्रित पेंशन ाोगी संघर्ष मोर्चा

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