तीसरी लहर की संभावित छटपटाहट से मंडल ने बदली परीक्षा की पद्धति
तीसरी लहर की संभावित छटपटाहट से मंडल ने बदली परीक्षा की पद्धतिSocial Media

Bhopal : तीसरी लहर की संभावित छटपटाहट से मंडल ने बदली परीक्षा की पद्धति

भोपाल, मध्यप्रदेश : परंपरागत नियमों से हटकर 30 प्रतिशत कोर्स कटौती के साथ फरवरी के दूसरे सप्ताह से परीक्षाएं। शिक्षकों ने कहा बदलाव करने के पहले बच्चों और अभिभावकों का मशविरा भी लेना जरूरी था।

भोपाल, मध्यप्रदेश। मध्यप्रदेश में विश्व स्वास्थ्य संगठन और भारत सरकार की गाइडलाइंस जरूर न आई हो, लेकिन माध्यमिक शिक्षा मंडल ने अपने विवेक पर परीक्षाएं करवाने का निर्णय ले लिया है। मंडल ने अपने स्तर पर सभी कसौटियों को परखते हुए समय पूर्व 12 फरवरी से परीक्षाएं करवाने का फैसला किया है। इधर शिक्षकों से लेकर बच्चों के अभिभावकों का कहना है कि ऐसे महत्वपूर्ण मामले में उनकी सहमति लेना भी अति आवश्यक थी।

मंडल के तर्कों के अनुसार पिछले दो सत्र का अनुभव है कि मार्च का आधा माह निकलने के बाद ही कोरोना की लहर दस्तक देती रही है। मंडल का कहना है कि वर्ष 2020 में 15 मार्च के बाद कोरोना ने प्रदेश में तांडव मचाया था। यही स्थिति 2021 में भी रही है। नतीजतन मौजूदा सत्र 2021 एवं 22 की परीक्षाएं 12 फरवरी से कराने का निर्णय लिया गया है। हालांकि अभी तक माशिमं फरवरी के अंत और मार्च के शुरुआती दिनों से 10वीं एवं 12वीं की परीक्षाएं प्रारंभ करवाता रहा है। यह पहला अवसर है कि एमपी बोर्ड ने फरवरी के दूसरे सप्ताह से ही परीक्षाएं करवाने का निर्णय लिया है। मंडल के इस फैसले से जहां शिक्षक बेचैन हैं वहीं अभिभावकों का कहना है कि इस मामले में उनसे सहमति लेना भी आवश्यक थी। अभिभावकों ने भी अपना पक्ष रखा है कि मंडल ने 30 प्रतिशत पाठ्यक्रम में कटौती जरूर कर दी हो लेकिन शैक्षणिक कैलेंडर के अनुसार सत्र की उस अनुपात में कक्षाएं नहीं लगाई गई हैं। कैलेंडर कहता है कि 240 दिन स्कूल खुलेंगे जबकि 180 दिन कक्षाएं लगना जरूरी है। इस नियम का पालन नहीं किया गया है। उसके बावजूद भी परीक्षाएं करवाने का टाइम टेबल जारी कर दिया है।

30 प्रतिशत कोर्स कटौती में 20 लाख विद्यार्थी देंगे परीक्षा :

पिछले वर्षों की तरह इस बार भी मध्यप्रदेश में 10वीं और 12वीं के 20 लाख विद्यार्थियों द्वारा परीक्षा आवेदन किए गए हैं। परीक्षाएं संपादित करवाने के लिए माशिमं तकरीबन 4000 परीक्षा केंद्रों का निर्धारण करने जा रहा है। फरवरी में परीक्षाएं करवाने जा रहे माशिमं ने 30 प्रतिशत कोर्स में कटौती की है। यह प्रक्रिया इसलिए अपनाई गई है। क्योंकि समय से पहले मंडल परीक्षाएं आयोजित कर रहा है। की गई कटौती के अनुसार इस बार प्रश्न-पत्र 100 अंकों का ही रहेगा। लेकिन इसका पैटर्न बदला हुआ होगा। मंडल के अनुसार 100 अंकों के प्रश्न पत्र में 40 नंबर के अकेले वस्तुनिष्ठ प्रश्न रखे जाएंगे। ताकि विद्यार्थियों को आसानी हो सके। इसके अलावा 40 नंबर के लघु उत्तरीय जबकि 20 नंबर के दीर्घ उत्तरीय प्रश्न होंगे। इस प्रकार 100 अंकों का प्रश्न पत्र निर्धारित किया जाएगा।

दो सत्र अनुभव लेकर किया गया प्रणाली में बदलाव : मालवीय

माध्यमिक शिक्षा मंडल के जनसंपर्क अधिकारी मुकेश कुमार मालवीय का कहना है कि पिछले दो सत्रों का अनुभव लेकर परीक्षा प्रणाली में बदलाव किया गया है। उनका कहना है कि वर्ष 2019-20 में 20 मार्च तक आधी परीक्षाएं संपादित हो चुकी थी। इसी वक्त कोरोना की पहली लहर ने दस्तक दी थी। इसी प्रकार के हालात वर्ष 2020 एवं 21 के सत्र की परीक्षा में निर्मित हुए थे। नतीजतन मौजूदा सत्र की परीक्षाएं 12 फरवरी से करवाई जा रही हैं। ताकि 20 मार्च के पहले यह परीक्षाएं संपादित हो सकें। उनका कहना है कि परीक्षाओं की पूरी तैयारी चल रही है।

समय से पहले परीक्षाओं में अभिभावकों की सहमति जरूरी :

इस संदर्भ में शिक्षकों का कहना है कि समय से पहले परीक्षाएं करवाने जा रहे माध्यमिक शिक्षा मंडल को अभिभावकों की सहमति लेना चाहिए थी। कारण है कि बच्चों ने कैलेंडर के अनुसार कक्षाओं के माध्यम से पढ़ाई नहीं की है। व्याख्याता प्राचार्य संघ के अध्यक्ष मुकेश कुमार शर्मा का कहना है कि ज्यादातर अध्यापन बच्चों द्वारा ऑनलाइन किया गया है। स्कूल भी खोले गए तो 50 प्रतिशत संख्या अनुपात में बच्चों को बुलाया गया। कई भौगोलिक और तकनीकी परेशानियां भी हैं जिन्हें मंडल सुझाव लेकर दूर कर सकता था।

कैलेंडर के अनुसार नहीं किया गया कक्षाओं का संचालन :

मप्र प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन के अध्यक्ष अजीत सिंह का कहना है कि कैलेंडर के अनुसार 240 दिन स्कूल खुलना जरूरी है, जबकि 180 दिन कक्षाओं का संचालन होना चाहिए। इनका कहना है कि अगस्त के अंत में हायर सेकेंडरी एवं हाईस्कूल खोले गए थे। अगर कोर्स में कटौती भी की गई है तो मंडल को भी इसका निर्धारण करना चाहिए। अब यदि जो पढ़ाया गया है वह कटौती हुई तो बच्चों को नुकसान होगा। जब फरवरी में परीक्षाएं होंगी तो फिर प्री बोर्ड का रिवीजन कब करवाया जाएगा। ऐसे तमाम पहलुओं को परखना आवश्यक था। इसके बाद ही परीक्षाएं करवाने का निर्णय लेना चाहिए था। क्योंकि जो बच्चे 15 जून से नियमित कक्षाओं में पहुंचते थे। उन्हें दो माह बाद आधी संख्या में बुलाया गया है।

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