प्रदेश के शिक्षाविदों ने उठाए सवाल
प्रदेश के शिक्षाविदों ने उठाए सवालSyed Dabeer-RE

पुरस्कारों के वितरण की प्रक्रिया पर प्रदेश के शिक्षाविदों ने उठाए सवाल

भोपाल, मध्यप्रदेश : स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा शिक्षकों को दिए जाने वाले पुरस्कारों की प्रक्रिया सवालों के घेरे में आ गई है। इस प्रक्रिया पर प्रदेश के शिक्षाविदों ने ही प्रश्नचिन्ह खड़े कर दिए हैं।

भोपाल। स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा शिक्षकों को दिए जाने वाले पुरस्कारों की प्रक्रिया सवालों के घेरे में आ गई है। इस प्रक्रिया पर प्रदेश के शिक्षाविदों ने ही प्रश्नचिन्ह खड़े कर दिए हैं। आरोप लगाया है कि जब शिक्षक का पुरस्कार के लिए चयन हो जाता है तो आखिर बाद में समीक्षा क्यों। एनसीईआरटी के पूर्व सदस्य शिक्षाविद एवं शिक्षक संदर्भ समूह के समन्वयक दामोदर जैन का कहना है कि शिक्षक पुरस्कार में लगातार बनती विसंगतियों को लेकर पूरा शिक्षा जगत चिंतित है।

जैन के अनुसार- पिछले कुछ सालों से चली आ रही परंपरा के अनुसार शिक्षकों को प्रोत्साहित करने के लिए प्रतिवर्ष राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार और राज्य स्तरीय शिक्षक पुरस्कार से सम्मानित किया जाता है। इन सभी पुरस्कार प्राप्त शिक्षक की असली पहचान क्या है ये किसी को भी समझ नहीं आता। क्या कभी ऐसा समय आएगा जब पुरस्कार प्राप्त शिक्षक को विभाग का गौरव हासिल होगा? उन्हें विभागीय अधिकारियों के कोप का भाजन नहीं होना पड़ेगा। वे जो चाहेंगे उस तरह की सामग्री उन्हें उपलब्ध कराने के निर्देश दिए जाएंगे। वे विभाग की शान बन जाएंगे।

शिक्षक के कार्य का विवरण समझाएं विभाग

डॉक्टर दामोदर जैन के अनुसार ये सब कुछ नहीं होने वाला क्योंकि पिछले कई सालों से मैं पुरस्कृत शिक्षकों से लगातार सवाल कर रहा हूं कि वे यह बताएं कि सरकार ने उनके किस शैक्षिक कार्य को पुरस्कृत किया है। एक भी पुरस्कृत शिक्षक इस सवाल का जवाब नहीं दे पाया है। इसका निहितार्थ क्या है? न सरकार ही कभी यह बताती कि अमुक शिक्षक को इस कार्य के लिए पुरस्कृत किया गया है। आखिर माजरा क्या है। श्री जैन के अनुसार इस बात का खुलासा तब होता है, जब पुरस्कृत शिक्षक प्रोत्साहन की बजाय ईर्ष्या के शिकार हो जाते हैं। राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार प्राप्त शिक्षक के गुण और कार्यों से आस-पास के गांव के लोगों को, विशेषकर शिक्षकों को प्रोत्साहित होना ही चाहिए। तभी उनकी असली पहचान बन सकती है। लेकिन इसके विरुद्ध यदि शिक्षक उनसे ईर्ष्या करने लगें इसका मतलब है कि कुछ दाल में काला है।

विभाग पुरस्कार प्राप्त करने के लिए शिक्षकों से आवेदन पत्र तैयार कर जमा करवाता है, ताकि उनको शिक्षक के कार्यों की पूरी फाइल बनी बनाई मिल जाए। ये तरीका ही गलत है। होना तो यह चाहिए कि पुरस्कार देने वाली संस्था को अपने स्तर पर कुछ सार्थक पहल करते हुए शिक्षकों के कार्य व्यवहार के बारे में जानकारी प्राप्त करने की कोशिश करना चाहिए। ऐसे शिक्षकों के कार्यों के आधार पर जब श्रेष्ठ शिक्षक को पुरस्कार देकर सम्मानित किया जाएगा तो विभाग कह सकेगा कि अमुक शिक्षक को पुरस्कार इन कार्यों के लिए दिया गया है। अभी किसी को किसी पर भरोसा नहीं है। दामोदर जैन के मुताबिक उन्हें पता चला है कि राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता होने के बाद शिक्षकों के कार्यों की समीक्षा की गई, आखिर ये बाद में क्यों? ये सब तो पहले किया जाना चाहिए।

शिक्षक कार्य की दिशा में करें सक्रिय पहल

शिक्षाविद दामोदर जैन का कहना है कि पुरस्कार प्राप्त करने के बाद शिक्षक पहचान विहीन रह जाते हैं। यह स्थिति इस बात को इंगित करती है कि व्यवस्थागत दोष निवारण करने की जरूरत है। जिन्हें सरकार ने पुरस्कृत किया उनकी प्रतिष्ठा यदि सरकार ही न करे इससे खराब बात और क्या हो सकती है पिछले सालों में पुरस्कार प्राप्त करने वाले शिक्षकों को सरकार ने अतिरिक्त वेतन वृद्धियां और पदोन्नति की पात्रता प्रदान की, लेकिन अनेक शिक्षक अपने अधिकारियों के पास आवेदन करके थक गए। उन्हें कुछ नहीं मिला, यदि पुरस्कार दिया है तो उनके लिए दी गई पात्रता अनुसार सुविधाएं उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी भी लेनी चाहिए। उचित होगा कि जहां एक ओर शिक्षक अपने काम को प्रस्तुत करने की दिशा में सक्रिय पहल करें। वहीं सरकार को भी पुरस्कार देने की नीति पर पुनर्विचार करके श्रेष्ठतम शिक्षकों को बगैर मांगे उनकी सार्थक और विश्वसनीय सेवाओं के आंकलन के अनुसार शिक्षकों को प्रोत्साहित करने के लिए पुरस्कार देने की नीति तय करना चाहिए। यदि ऐसा होता है तो पुरस्कार की गरिमा तो प्रतिस्थापित होगी ही शिक्षक की असली पहचान भी तैयार हो सकेगी जिसकी आज सर्वाधिक जरूरत है।

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