50 हजार वन सुरक्षा श्रमिकों की जिंदगी बर्बाद
50 हजार वन सुरक्षा श्रमिकों की जिंदगी बर्बादSyed Dabeer Hussain - RE

भोपाल: जिम्मेदारों ने 50 हजार वन सुरक्षा श्रमिकों की जिंदगी बर्बाद कर डाली

भोपाल, मध्यप्रदेश : प्रदेश में सरकारी विभाग भी भारत सरकार के श्रम नियमों का पालन करने में पीछे हैं। वन विभाग में दिल को चोट पहुंचाने वाला इसी प्रकार का मामला सामने आया है।

भोपाल, मध्यप्रदेश। प्रदेश में सरकारी विभाग भी भारत सरकार के श्रम नियमों का पालन करने में पीछे हैं। वन विभाग में दिल को चोट पहुंचाने वाला इसी प्रकार का मामला सामने आया है। विभाग के अंतर्गत नाका और जंगल बीट में ड्यूटी दे रहे वन सुरक्षा श्रमिकों की अल्प वेतन इस बात की गवाही दे रही है। इन्हें मानदेय  इतना मिलता है कि महीने में दाल रोटी खाना भी मुश्किल है।

बताना होगा कि प्रति जिले में 10 से लेकर 15 नाका  हैं। नियम के अनुसार एक नाके पर चार सुरक्षा श्रमिक चौकीदारी के लिए तैनात करना जरूरी है। इसी नियम के आधार पर नाकेदार और रेंजर की अनुशंसा पर ही इनकी नियुक्ति होती है, पर इन श्रमिकों का जीवन पूरी तरह से भगवान भरोसे टिका हुआ है। कारण है कि इन्हें मात्र 4000 रूपये मासिक मानदेय दिया जा रहा है। जबकि श्रम कानून के हिसाब से इन्हें कुशल अर्ध कुशल और अकुशल श्रेणी का वेतन मिलना चाहिए। लेकिन रेंजर और नाकेदार की मनमानी के कारण गरीब इन कर्मचारियों को काम का उचित दाम नहीं मिल पा रहा है। अब उनके शोषण का क्रम भी देखना होगा। इनकी ड्यूटी नाका और जंगल में सुरक्षा करने की होती है। लेकिन रेंजर और नाका के मुखिया के कहने पर इन्हें अधिकारियों के घरों पर भोजन पकाने बगीचों की सिंचाई करने कुत्तों की रखवाली जैसे काम दिए जाते हैं। अगर यह काम के लिए मना करते हैं तो आरोप है कि इन्हें नौकरी से निकाल दिया जाता है। क्योंकि इनकी हाजिरी और वाउचर तैयार करने का काम नाकेदार करता है।

श्रम नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं अधिकारी

मध्य प्रदेश स्थाई कर्मी कल्याण संघ के प्रदेश अध्यक्ष शारदा सिंह परिहार ने इस संबंध में मुख्यमंत्री को पत्र लिखा है। उन्होंने सरकार को लिखे पत्र में बताया की वन विभाग में सुरक्षा श्रमिकों के साथ अन्याय हो रहा है। सभी वन मंडलों में हजारों की संख्या में कर्मचारी वनों एवं वन्य प्राणियों की सुरक्षा में कार्यरत हैं। श्री परिहार ने आरोप लगाया है कि इन सुरक्षा श्रमिकों से 12 से 14 घंटा काम तो लिया जाता है,  लेकिन भुगतान मात्र 3500 से 4000 प्रति माह किया जाता है। यह प्रक्रिया श्रम नियमों के अनुरूप नहीं है। सुरक्षा श्रमिकों की नौकरी मात्र आला अधिकारियों की दया पर निर्भर है। नौकरी जाने के भय से बंधुआ प्रथा समाप्त होने के बावजूद भी यह मजदूरों से बदतर जिंदगी जीने को मजबूर हैं। उन्होंने पत्र में यह भी कहा है कि जिस काम के लिए इन कर्मचारियों की नियुक्ति हुई है। उसकी बजाए इन निर्धन श्रमिकों को ज्यादातर घरों में काम पर बुलाया जाता है।

सरकार को इनकी वरीयता सूची तैयार करनी होगी - बैरागी

मध्य प्रदेश स्थाई कर्मचारी कल्याण संघ के उपरांत अध्यक्ष घनश्याम बैरागी का कहना है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को ज्ञापन पत्र सौंपकर मांग की है कि सुरक्षा श्रमिकों को श्रम आयुक्त द्वारा निर्धारित न्यूनतम वेतन भुगतान किया जाए। सुरक्षा श्रमिकों की वरीयता सूची का संधारण वन मंडल स्तर पर किया जाए। राष्ट्रीय पेंशन योजना का लाभ दिया जाए। दुर्घटना बीमा कराया जाए। अनुकंपा नियुक्ति की पात्रता दी जाए साथ ही कार्य के घंटे सुनिश्चित किए जाए। उन्होंने कहा है कि इन मूलभूत सुविधाओं से वंचित सुरक्षा श्रमिकों में भारी असंतोष व्याप्त है। बैरागी के अनुसार राज्य भर में करीब 50,000 सुरक्षा श्रमिक हैं। जिन्हें उचित वेतन नहीं मिलने के कारण इनके परिवार संकट में हैं। सरकार को श्रम कानूनों का ध्यान रखते हुए तत्कालीन की वेतन वृद्धि का निर्णय लेना होगा।

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