भाजपा को आज लगेगा झटका, सतीश होगें कांग्रेस में शामिल
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ग्वालियर : भाजपा को आज लगेगा झटका, सतीश होगें कांग्रेस में शामिल

ग्वालियर, मध्य प्रदेश : अचलेश्वर मंदिर पर पूजा अर्चना कर हजारो समर्थकों के साथ सोमवार को भोपाल हुए रवाना। अब एक बार फिर दल बदला पर मुन्ना व सतीश होगें आमने-सामने।

ग्वालियर, मध्य प्रदेश। भाजपा ने जिस तरह से विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस को सत्ता से अपदस्थ करने का काम किया उसके बाद से कांग्रेस ने भी अपनी रणनीति बदलते हुए भाजपा को उसी की रणनीति के तहत घेरने का काम शुरू कर दिया है। ग्वालियर में इसी रणनीति के तहत भाजपा को मंगलवार को तगड़ा झटका लगने वाला है, क्योंकि भाजपा के वरिष्ठ नेता डॉ. सतीश सिकरवार मंगलवार को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ के सामने कांग्रेस का दामन थाम लेंगे। सिकरवार ने सोमवार को अचलेश्वर मंदिर पर पूजा अर्चना की उसके बाद अपने हजारो समर्थकों के साथ भोपाल के लिए निकल गए हैं।

ग्वालियर पूर्व विधानसभा चुनाव में वर्ष 2018 में कांग्रेस से मुन्नालाल गोयल व भाजपा से डॉ. सतीश सिकरवार प्रत्याशी थे और उस समय मुन्ना ने सतीश का हराया था। अब उप चुनाव होने के बाद भी प्रत्याशी तो वहीं आमने-सामने हो सकते हैं, लेकिन दोनों के चुनाव चिन्ह जरूर बदले हुए नजर आएंगे। कांग्रेस विधायकों को भाजपा में शामिल होने के बाद से ही भाजपा के कई नेताओं को यह लगने लगा कि अब उनका राजनीतिक भविष्य भाजपा में नहीं बचा है, यही कारण है कि अपने राजनीतिक भविष्य के लिए भाजपा के कुछ नेता कांग्रेस में शामिल हो रहे हैं। डॉ. सतीश सिकरवार वर्ष 2018 मेें कांग्रेस के मुन्नालाल गोयल से चुनाव हार गए थे उसके बाद मुन्ना के लिए उप चुनाव में काम करना संभव नहीं था। यही कारण है कि डॉ. सतीश सिकरवार ने अपने राजनीतिक भविष्य के लिए कांग्रेस में शामिल होने का निर्णय लिया। सतीश को कांग्रेस में लाने के लिए पूर्व मंत्री रामनिवास रावत ने तो पैरवी की, साथ ही डॉ. गोविन्द सिंह का भी आशीर्वाद मिला हुआ है। वहीं सिकरवार को कांग्रेस में लाने के लिए काफी समय से उनके सहपाठी रहे कांग्रेस के युवा नेता एवं प्रदेश सचिव अलबैल घुरैया एवं पूर्व नेता प्रतिपक्ष नगर निगम कृष्णराव दीक्षित लगे हुए थे। दोनों कांग्रेस नेताओं ने अपने साथी सिकरवार को यह समझाने में सफल रहे कि कांग्रेस में उनका भविष्य ठीक रहेगा। सिकरवार के कांग्रेस में शामिल होने से भाजपा को यह करारा झटका होगा, क्योंकि अभी तक वह भाजपा के अंदर काफी ताकतवर नेताओं में शुमार थे, उनके पास काफी बड़ी टीम है।

लम्बे समय से लग रही थीं अटकलें :

सतीश सिकरवार की कांग्रेस में शामिल होने की लम्बे समय से अटकलें चल रही थीं, लेकिन इसके लिए स्वयं सतीश पहले राजनीति के पैमाने से नाप तौल करने का काम कर रहे थे। जब समीक्षा गुप्ता ने भाजपा में वापिसी की तो महापौर का रास्ता बंद दिखाई दिया, क्योंकि समीक्षा को महापौर का चुनाव लड़ाने का आश्वासन मिला हुआ है। जबकि ग्वालियर पूर्व से उप चुनाव में कांग्रेस से भाजपा में आए मुन्नालाल गोयल का चुनाव लड़ना तय था। यही कारण है कि काफी दिनो से सतीश सिकरवार अपने राजनीति भविष्य को नापने का काम कर रहे थे और जब देखा कि भाजपा में अब उनके लिए रास्ते बंद होते जा रहे हैं तो उन्होंने कांग्रेस में शामिल होने का निर्णय लिया। यही कारण है कि सोमवार को हजारों समर्थकों के साथ वह भोपाल रवाना हो गए जहां वह मंगलवार को कमलनाथ के सामने कांग्रेस की सदस्यता लेगें।

विरोध करने वालों को रावत ने डपटा :

सतीश सिकरवार के कांग्रेस मेें शामिल होने की खबर मिलने के बाद रविवार को कांग्रेस कार्यालय में ग्वालियर पूर्व विधानसभा के मंडलम व सेक्टर अध्यक्षों की बैठक शहर कांग्रेस अध्यक्ष ने बुलाई। इसके पीछे कारण यह था कि शहर कांग्रेस अध्यक्ष भी ग्वालियर पूर्व से अपनी दावेदारी जता रहे हैं। सतीश के आने से उनकी दावेदारी को खतरा हो सकता है, यही कारण है कि अचानक बैठक बुलाकर सतीश के कांग्रेस में शामिल होने का विरोध करने का काम किया। इसकी जानकारी जब प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष रामनिवास रावत को लगी तो उन्होंने सोमवार को शहर कांग्रेस अध्यक्ष को फोन कर क्लास लेते हुए कहा कि कांग्रेस में कौन शामिल हो रहा है इससे आपको क्या लेना-देना यह प्रदेश कांग्रेस का मामला है।

पहले मनाने का किया प्रयास :

भाजपा के सदस्यता अभियान के कार्यक्रम से दूरी बनाने के बाद मुख्यमंत्री के सामने यह जानकारी पहुंची थी कि सतीश नाराज है और कांग्रेस में जा सकते हैं। इसके भनक लगने के बाद मुख्यमंत्री ने भी उनको ग्वालियर प्रवास के दौरान बुलाया था और कुछ आश्वासन भी दिया था, लेकिन जो आश्वासन दिया वह सतीश को जमा नहीं। इसके बाद राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी महल में बुलाया था और सतीश से बात की, लेकिन इसके बाद भी सतीश ने अपना मन नहीं बदला और अब मंगलवार को कांग्रेसी रंग में रंग जाएंगे।

यह रह सकते हैं राजनीतिक समीकरण :

वर्ष 2018 में जब विधानसभा का चुनाव हुआ था उस समय भारी दवाब के चलते सतीश को टिकट तो मिल गया था, लेकिन स्थानीय स्तर पर भाजपा नेताओं ने उनका खुलकर विरोध किया था। यही कारण है कि कांग्रेस प्रत्याशी मुन्नालाल गोयल से वह लम्बे अंतर से चुनाव हार गए थे। अब मुन्ना कांग्रेस छोड़ भाजपा में आ गए थे तो संभावना जताई जा रही थी कि भाजपा नेता उनका साथ नहीं देगें। लेकिन अब जो स्थिति दिख रही है और कांग्रेस अगर सतीश सिकरवार को टिकट देती है तो भाजपा के नेताओं के सामने मुन्ना का साथ देना मजबूरी बन गया है, क्योंकि भाजपा के अधिकांश नेताओं से सतीश की पटरी नहीं बैठती है और इसका लाभ मुन्ना को घर बैठे मिल सकता है। वैसे सतीश को कांग्रेस वोट बैंक का लाभ मिल सकता है।

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