अस्पताल में नहीं मिले डॉक्टर, चली गई मासूम बच्चे की जान

छतरपुर जिला अस्पताल में डॉक्टरों की लेटलतीफी लोगों की जान पर भारी पड़ रही है। जिला अस्पताल में एक ऐसा ही मामला सामने आया है।
तीन घंटे तक डॉक्टरों को खोजता रहा परिवार
तीन घंटे तक डॉक्टरों को खोजता रहा परिवारPankaj Yadav

राज एक्सप्रेस। छतरपुर जिला अस्पताल में डॉक्टरों की लेटलतीफी लोगों की जान पर भारी पड़ रही है। शुक्रवार को जिला अस्पताल में एक ऐसा ही मामला सामने आया जब सटई रोड पर रहने वाला एक परिवार अपने सात माह के मासूम बच्चे के लिए अस्पताल में तीन घंटे तक शिशु रोग विशेषज्ञ को तलाशता रहा, लेकिन कोई डॉक्टर नहीं मिल पाने एवं समय पर इलाज न हो पाने के कारण इस मासूम बच्चे की जान चली गई।

ये है मामला

सटई रोड वार्ड नं.22 में रहने वाले रामस्वरूप शर्मा ने बताया कि उनकी बेटी का 7 माह का बच्चा पिछले लगभग एक सप्ताह से बीमार था उसे निमोनिया हो गया था जिसको लेकर वे जिला अस्पताल में चार दिन पहले आए थे। अस्पताल में सही इलाज न मिल पाने के कारण उन्होंने डॉ. पीयूष बजाज के निजी क्लीनिक में अपने नाती का इलाज कराया। जिससे उसकी हालत ठीक होने लगी थी।

गुरूवार की रात उसे फिर तेज सर्दी हुई तो वे सुबह डॉ. पीयूष बजाज के निजी क्लीनिक पहुंचे लेकिन डॉ. पीयूष बजाज शहर के बाहर गए हुए थे। डॉक्टर न होने के कारण वे अपनी बेटी और नाती को लेकर जिला अस्पताल पहुंचे और यहां तीन घंटे तक शिशु रोग विशेषज्ञ को खोजते रहे। कोई भी डॉक्टर 11 बजे तक अस्पताल में नहीं आया जिसके कारण उनके नाती का इलाज नहीं हो पाया और उसने अस्पताल में ही दम तोड़ दिया। आक्रोशित रामस्वरूप शर्मा ने कहा कि जिला अस्पताल में डॉक्टर मोटी वेतन लेते हैं। घर पर भी पैसा कमाते हैं फिर भी इतनी लापरवाही क्यों करते हैं? पूरे परिवार की आंखों में आंसू थे। यह परिवार एक घंटे तक अस्पताल में बिलखता रहा।

12 बजे तक खाली पड़े रहते हैं डॉक्टरों के चेम्बर

जिला अस्पताल के नए भवन का निर्माण एवं ज्यादातर विभागों का स्थानांतरण इस भवन में जरूर हो गया है लेकिन अस्पताल में इलाज की मूल सुविधा में सुधार नहीं हो पा रहा है। इसका सबसे बड़ा कारण है जिला अस्पताल के चिकित्सक जो सुबह 9 बजे की जगह दोपहर 12 बजे तक अपने चेम्बर में नहीं पहुंचते। जिला अस्पताल में प्रतिदिन सैकड़ों ग्रामीण इलाज के लिए पहुंच रहे हैं लेकिन उन्हें डॉक्टर न मिलने के कारण मायूस होना पड़ता है। आए दिन इलाज न मिल पाने के कारण लोगों के मरने के समाचार भी सामने आते हैं।

डॉक्टरों का नया टाईमटेबिल यह है

मप्र के सभी जिला अस्पतालों एवं सामुदायिक, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों में डॉक्टरों की ड्यूटी का नया टाइमटेबिल सरकार ने पिछले दिनों जारी किया था। इस टाइमटेबिल के मुताबिक डॉक्टरों को सुबह 9 बजे से 4 बजे तक जिला अस्पताल में सेवाएं देने के लिए पाबंद किया गया है। इस सात घंटे के समय में डॉक्टर 9 से 11 बजे तक अपने पुराने मरीजों को वार्डों में जाकर देखेंगे जिसे राउण्ड ड्यूटी कहा जाता है। 11 बजे से 4 बजे तक डॉक्टरों को ओपीडी में बैठकर प्रतिदिन आने वाले मरीजों को देखने के निर्देश हैं। बावजूद इसके जिला अस्पताल में डॉक्टर राउण्ड ड्यूटी के दो घंटे को चुरा रहे हैं। वे सीधे 10 अथवा 11 बजे अस्पताल पहुंचते हैं फिर 12 बजे तक राउण्ड ड्यूटी करते हैं। ज्यादा से ज्यादा एक या दो बजे तक ओपीडी में बैठकर घर चले जाते हैं। इसी कारण से जिला अस्पताल में मरीजों को डॉक्टरों के खाली चेम्बर ही नजर आते हैं।

सिर्फ डॉक्टर दोषी नहीं और भी कारण हैं...

जिला अस्पताल में खाली पड़े डॉक्टरों के चेम्बरों के लिए सिर्फ डॉक्टर ही जिम्मेदार नहीं है इसके लिए दूसरे भी कई कारण हैं। सबसे बड़ा कारण अस्पताल में आवश्यकता के मुताबिक पर्याप्त स्टाफ न होना है। इसके साथ ही डॉक्टरों की वीआईपी ड्यूटी, अदालत की पेशियां, नाईट ड्यूटी, विभिन्न स्वास्थ्य संबंधी योजनाओं में लगने वाली ड्यूटियां उनके प्रतिदिन के कामकाज को प्रभावित करती हैं। इसी तरह अस्पताल के लेबर डिपार्टमेंट में लंबे समय से तीन महिला चिकित्सकों की पोस्ट खाली पड़ी हैं जिसके कारण वरिष्ठ महिला चिकित्सकों को यहां तैनात करना पड़ता है और फिर इन्हीं वरिष्ठ महिला चिकित्सकों से ओपीडी नहीं कराई जा सकती।

डॉक्टरों की लापरवाही एवं समय पर अस्पताल न आने को लेकर समय-समय पर कार्यवाहियां की जा रही हैं। पिछले महीने तीन डॉक्टरों की वेतन काटी गई। इस महीने भी तीन से ज्यादा डॉक्टरों की वेतन कटना तय है फिर भी मरीजों से आग्रह है कि वे अस्पताल में पसंद के डॉक्टर को खोजने के चक्कर में समय खराब न करें। 24 घंटे इमरजेंसी रूम में डॉक्टर मौजूद रहते हैं। यदि आकस्मिक समस्या है तो सबसे पहले इमरजेंसी वार्ड में जाकर मरीज को दिखाना चाहिए। यहां लाईफ सेविंग संसाधनों के साथ-साथ डॉक्टर व स्टाफ हमेशा मौजूद रहते हैं। आज की घटना में भी यही गलती हुई। डॉक्टर राउण्ड पर थे और मरीज उन्हें चेम्बर में ढूंढ़ रहे थे। मरीज के परिजन इमरजेंसी वार्ड में पहुंचते तो शायद बच्चे की जान बच सकती थी।

डॉ. आरएस त्रिपाठी, सिविल सर्जन, जिला अस्पताल, छतरपुर

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