मंदिर की शेष बची जमीन पर भी ट्रस्टी किए हैं अवैध कब्जा

छतरपुर, मध्य प्रदेश : शहर के तमरयाई मोहल्ला में स्थित दिवाला धनुषधारी नंदी सराफ मंदिर ट्रस्ट की बेशकीमती जमीन को मनमाने तरीके से बेच दिया गया है।
अवैध कब्जा
अवैध कब्जा Pankaj Yadav

राज एक्सप्रेस। मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में तमरयाई मोहल्ला में स्थित दिवाला धनुषधारी नंदी सराफ मंदिर ट्रस्ट की बेशकीमती जमीन को मनमाने तरीके से बेच दिया गया है। मंदिर ट्रस्ट में एक ही परिवार के लोगों ने शामिल होकर सभी नियम-कायदों को ताक पर रखकर बड़ा खेल कर लिया था। लेकिन यह मामला प्रशासन के ध्यान में आने के बाद भी कोई ध्यान नहीं दिया गया। लिहाजा पूरे मंदिर की जमीन खुर्द-बुर्द की जा रही है।

इस मामले को लेकर शहर के कुछ लोगों ने एसडीएम कोर्ट में केस भी दायर किया है, लेकिन प्रशासन ने मामले में रुचि नहीं दिखाई। सोमवार को युवक कांग्रेस नेता लोकेन्द्र वर्मा ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं के साथ माफिया पर कार्यवाही करने के लिए एसडीएम अनिल सपकाले को ज्ञापन सौंपते हुए कार्यवाही की मांग की और कार्यवाही न होने पर आंदोलन की चेतावनी दी। लोकेन्द्र वर्मा ने ज्ञापन देते हुए कहा कि लोगों की आपत्तियों पर प्रशासन का ध्यान नहीं जाने का फायदा उठाकर धीरे-धीरे मंदिर की संपत्ति हड़पी जा रही है। शहर के अनिल अग्रवाल का परिवार अब भी मंदिर की जमीन पर कब्जा किए हैं।

मंदिर के बगल में उनके बहन-बहनोई सालों से बिना किराया दिए एक बड़े भवन पर कब्जा किए हैं। यह कब्जा लगातार बढ़ता जा रहा है। इस परिसर के जिस भवन में आजाद हाईस्कूल चलता था, उस भवन पर भी इस परिवार ने कब्जा कर लिया है। माफिया मुक्त अभियान जारी फिर भी माफिया को संरक्षण क्यों युवक कांग्रेस ने कहा कि जब प्रदेश के मुख्यमंत्री ने जमीन माफियाओं के खिलाफ कार्रवाई करने के कड़े निर्देश प्रशासन को दे रखे हैं। नंदी वाला सराफ मंदिर के रखरखाव और पूजन के लिए करोड़ों रुपए की बेशकीमती संपत्ति थी और अभी भी है, लेकिन प्रशासन की नजर से बचकर बेशकीमती जमीनों को ठिकाने लगाते आ रहे मंदिर के पूर्व प्रबंधक और उसके ही परिवार के ट्रस्टी भगवान के साथ ही छल कर लिया।

ये है मामला

शहर के तमराई मोहल्ला में डॉ. दीक्षित के पुराने निवास के आगे भगवान शिव का प्राचीन नंदी सराफ मंदिर स्थित है। यह मंदिर प्राचीन और सार्वजनिक होने के कारण हमेशा से लोगों की आस्था का केंद्र रहा है। इस मंदिर के अधीन करोड़ों रुपए मूल्य की संपत्ति थी। लिहाजा 1983 में इस मंदिर के रखरखाव और संरक्षण के लिए पब्लिक ट्रस्ट का गठन किया गया था। जिसमें प्रबंधक समेत 15 लोगों को ट्रस्टी के रूप में शामिल किया गया था।

15 में से 13 ट्रस्टियों का निधन हो जाने पर उनके स्थान पर एक ही परिवार के लोगों को ट्रस्ट में भर लिया गया। इस ट्रस्ट के प्रबंधक स्व. स्वामी नेता ने अपनी पत्नी, दो बेटों और बहुओं सहित अन्य रिश्ता रखने वाले व्यक्तियों को ही ट्रस्टी बना लिया था। पब्लिक ट्रस्ट की जगह यह एक परिवार का ट्रस्ट ही बन गया। मंदिर के प्रति लोगों की अगाध श्रद्धा होने के कारण मंदिर की व्यवस्था के लिए श्रद्धालुओं और भक्तों ने कई साल पहले से चल और अचल संपत्ति का दान किया था। जब संपत्ति अधिक हो गई तो उसकी सुरक्षा के लिए ही 3 मार्च 1983 में ट्रस्ट का गठन किया गया था।

मंदिर के प्रबंधक कथित समाजसेवी अनिल अग्रवाल उर्फ अनिल नेता के पिता स्व. स्वामीप्रसाद अग्रवाल थे, जिनका निधन 2011 में हो गया था। करोड़ों रुपए की संपत्ति को न्यूनतम मूल्य पर उन्होंने खुद ही हड़प ली है। जो बची हुई संपत्ति है उसे भी हड़पने का प्रयास किया जा रहा है। इस संपत्ति पर प्रशासन की कोई निगरानी नहीं होने के कारण ही शहर और इस मोहल्ले के कुछ लोगों ने प्रशासन को शिकायत कर ट्रस्ट भंग करके कलेक्टर के अधीन बतौर प्रशासक मंदिर की संपत्ति करने की मांग की थी। लेकिन अब तक कुछ नहीं हुआ।

सूचना के अधिकार के तहत भी प्रशासन नहीं दे पाया जानकारी :

मंदिर नंदी सराफ ट्रस्ट के संबंध में शहर के पूर्व नगरपालिका अध्यक्ष रामबाबू ताम्रकार, समाजसेवी एवं जिला कांग्रेस उपाध्यक्ष देवेश कुमार अग्रवाल ने जिला प्रशासन से सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगी थी। लेकिन प्रशासन ने यह कहकर जानकारी देने से मना कर दिया कि मांगी गई जानकारी को देने का प्रावधान सूचना के अधिकारी अधिनियम 2005 में नहीं है। जबकि केवल यह जानकारी मांगी गई थी कि मंदिर ट्रस्ट का वर्तमान अध्यक्ष कौन है। मंदिर ट्रस्ट की चौक बाजार स्थित दुकान नंबर 16 के विक्रय का पैसा किसके खाता में जमा है और मंदिर की कृषि भूमि की बिक्री का रुपया किसके खाते में जमा है।

करोड़ों में बिकी जमीन, खाते में आए 62 हजार रुपए मंदिर के एक ट्रस्टी बताते हैं कि मंदिर के नाम जमीन के साथ दुकान भी थी। इस तरह से मंदिर ट्रस्ट करोड़ों रुपए का आसामी था, लेकिन ट्रस्टी और कुछ नेताओं ने मिलीभगत कर, अधिकारियों से सांठगांठ की इस जमीन की रजिस्ट्री कर दी, लेकिन ट्रस्ट के खाते में केवल 62 हजार रुपए ही आए। उल्लेखनीय है कि राजस्व रिकार्ड में वर्ष 1960-61 में यह पूरी जमीन माफी की जमीन दर्ज है।इस जमीन पर पब्लिक ट्रस्ट का गठन ही गलत किया गया और ट्रस्ट का गठन करके उसकी जमीन का बंदरबांट करना उससे भी बड़ी गड़बड़ी साबित हुआ है।

ट्रस्ट के संबंध में शिकायती ज्ञापन प्राप्त हुआ है। इस विषय में शीघ्र ही उचित कार्यवाही की जाएगी।

अनिल सपकाले, एसडीएम, छतरपुर

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