CM शिवराज ने 'हिंद की चादर' सिख गुरु तेग बहादुर के प्रकाश पर्व पर किया नमन

भोपाल, मध्यप्रदेश। आज सिख धर्म के गुरु तेग बहादुर का 400वां प्रकाश पर्व है, मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने गुरु तेग बहादुर के 400वें प्रकाश पर्व पर उन्हें नमन किया।
सीएम ने गुरु तेग बहादुर के प्रकाश पर्व पर किया नमन
सीएम ने गुरु तेग बहादुर के प्रकाश पर्व पर किया नमनSocial edia

भोपाल, मध्यप्रदेश। आज सिख धर्म के गुरु तेग बहादुर का 400वां प्रकाश पर्व है, बता दें कि देशभर में आज सिखों के नौवें गुरु तेग बहादुर का 400वां प्रकाश पर्व मनाया जा रहा है, कोरोना के चलते गुरुद्वारों में कोविड प्रोटोकॉल का पालन किया जा रहा है, इस बीच मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने गुरु तेग बहादुर के 400वें प्रकाश पर्व पर उन्हें नमन किया।

सीएम शिवराज ने किया ट्वीट

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ट्वीट कर कहा- धर्म के प्रहरी, मानवता के सच्चे सेवक, सिखों के 9वें गुरु, श्रद्धेय गुरु तेग बहादुर सिंह जी के 400वें प्रकाश पर्व पर कोटिश: नमन! आपकी शिक्षाएं सर्वदा मनुष्य को धर्म, सेवा, मानवता और सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती रहेंगी। गुरु के चरणों में प्रणाम!

नरोत्तम मिश्रा ने भी किया ट्वीट

मध्यप्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने सभी देशवासियों को सिखों के नवें गुरु तेग बहादुर सिंह के प्रकाश पर्व की शुभकामनाएं। विश्व इतिहास में धर्म, मानवीय मूल्यों, आदर्शों एवं सिद्धांत की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति देने वालों में गुरु तेग बहादुर साहब का स्थान अद्वितीय है।

बताते चलें कि गुरु तेग बहादुर का जन्म 18 अप्रैल को अमृतसर नगर में हुआ था इनके पिता छठे गुरु हरगोविंद साहिब एवं माता नानकी के घर जन्म लेने वाले गुरु तेग बहादुर बचपन से ही आध्यात्मिक रुचि वाले थे, उन्होंने 13 वर्ष की आयु में करतारपुर के युद्ध में ऐसी वीरता दिखाई कि पिता ने उनका नाम 'त्याग मल' से 'तेग बहादुर' रख दिया था 21 वर्ष की सतत् साधना के उपरांत 1665 ई. में गुरु गद्दी पर विराजमान हुए थे।

आपको बताते चलें कि सिखों के नवें गुरु तेग बहादुर ने कश्मीरी पंडितों के धार्मिक अधिकारों की रक्षा के लिए आत्मबलिदान दे दिया था, बता दें कि गुरु तेग बहादुर ने अपने प्राणों का त्याग किया पर कर सत्य के मार्ग को नहीं छोड़ा, सिखों के नौवें गुरु ने कश्मीरी पंडितों के आग्रह पर उनके 'तिलक' और 'जनेऊ' की रक्षा के लिए बलिदान दिया था। जो उनके अपने मत में निषिद्ध थे। किसी दूसरे के धार्मिक अधिकारों की रक्षा के लिए दिए जाने वाले बलिदान देने की यह एकमात्र मिसाल है।

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