अनूपपुर: जैतहरी जनपद की ग्राम पंचायत विवाद के चलते सुर्खियों में
राज एक्सप्रेस। अनूपपुर जिले में विवादों के लिए जनि जाने वाली पंचायतों में सुमार जैतहरी जनपद एक बार फिर विवादों के लिए चर्चा में है। यहां की ग्राम पंचायत बरगवां जिला पंचायत के CEO सरोधन सिंह के नये आदेश जारी होने के बाद से ही ये विवादों के लिए चर्चा में है।
पिपरिया और बरगवां ग्राम पंचायत का प्रभार :
CEO सरोधन सिंह ने अपने विभागीय पत्र क्रमांक-3063 दिनांक-04 सितम्बर 2019 के माध्यम से छक्केलाल राठौर को ग्राम पंचायत पिपरिया और ग्राम पंचायत बरगवां का अतिरिक्त प्रभार सोप दिया है। जो, जैतहरी जनपद के ग्राम औढ़ेरा के सचिव भी रह चुके है। मजे की बात यह है कि, छक्केलाल राठौर को यह प्रभार जिस महिला की सिफरिश पर दिया गया है वह स्वयं बहुत बड़ी भ्रष्टाचारी सरपंच है और एक भाजपा नेत्री है। जिन भ्रष्टाचारी महिला सरपंच की शिफारिश पर यह प्रभार दिया गया है। उनके खिलाफ 20 अगस्त को ही जनपद जैतहरी के सीईओ इमरान सिद्दीकी ने क्रमांक-1574 के माध्यम से जिला पंचायत सीईओ को एक विभागीय पत्र लिखा था।
क्या लिखा था पत्र में :
उस पत्र में महिला के खिलाफ धारा 40 की कार्यवाही को सुनिश्चित करने की बात लिखी गई थी। साथ ही महिला के विरूद्ध कार्यवाही की मांग की गई थी। उन्होंने इस पत्र में यह बात भी शामिल कि, जिला पंचायत सीईओ के निर्देश पर मनोज पटेल सचिव ग्राम पंचायत हर्री को ग्राम पंचायत बरगवां का अतिरिक्त प्रभार दिया गया था, जिसके पालन में मनोज पटेल 10 अगस्त को बरगवां में उपस्थित हुए, लेकिन सरपंच ने उसकी नियुक्ति के पत्र पर ही उसे प्रभार नहीं दिया और उन्हें बापस जाने को कह दिया। 17 अगस्त जिला पंचायत सीईओ के आदेश पर सचिव को दोबारा पंचायत बुलाया गया जब वह पहुंचे, तब भी उन्हें प्रभार नहीं दिया गया गया।
पत्र में लिखी मनमानी करने की बात :
जैतहरी के सीईओ इमरान सिद्दीकी ने बताया कि, महिला सरपंच श्रीमती रूनिया बाई के द्वारा किये गए कार्य वरिष्ठ कार्यालय व अधिकारियों के खिलाफ रहते है साथ ही यह ग्राम पंचायत की नियमों को न मानते हुए अपने मनमाने तरीके से कार्य करना चाहती है। सरपंच पर पूर्व में भी 14 लाख रुपये की शासकीय राशि के गबन की वसूली का आदेश जिला पंचायत कार्यालय के प्रचलन में है, इतना ही नहीं सरपंच पर पूर्व में भी गंभीर वित्तीय आरोप लगने के कारण उन्हें धारा 40 के अंतर्गत अपने पद से हटा दिया गया है।
धारा 40 की कार्यवाही पुन: प्रस्तावित :
सरपंच द्वारा माननीय उच्च न्यायालय के आदेश से मोहलत ली, लेकिन आदेश की प्रतिलिपि जनपद कार्यालय में नहीं दी गई। वरिष्ठ अधिकारियों के आदेश की अवहेलना के आदेश में धारा 40 की कार्यवाही पुन: प्रस्तावित है। लिखित में मांगा छक्केलाल को एक तरफ कलेक्टर और जिला पंचायत सीईओ के आदेश पर जनपद सीईओ ने जांच कर कार्यवाही के लिये पत्र लिखा, तो दूसरी तरफ खबर यह भी है कि कथित भाजपा नेत्री व महिला सरपंच ने जिला पंचायत कार्यालय में पत्र देकर छक्केलाल राठौर की नियुक्ति बरगवां में करने की मांग की।
यह आरोप भी है :
जिला पंचायत में भाजपा नेत्री पर अपने आकाओं के माध्यम से मोटा मैंनेजमेंट करने का भी आरोप लगा है, शायद इसी का परिणाम है कि, जिला पंचायत सीईओ अपने अधीनस्तों और लम्बित भ्रष्टाचार के आरोपों से आंखे मूंदकर, भाजपा नेत्री के पत्र पर एक सचिव को दूसरी नहीं बल्कि तीन-तीन पंचायतों का प्रभार देने का आदेश जारी कर दिया। दिखावे के लिए सरकार का जीरो टॉलरेन्स उल्लेखनीय है कि, कांग्रेस सरकार आते ही सरकार के मुखिया ने नेताओं, अफसरों व आवाम को साफ संदेश दिया था कि, भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस अपनाया जायेगा। सरकार के इस दावे से आवाम के चेहरे खिले थे और उन्हें लगा था कि, अब राज्य के अन्दर उन भ्रष्ट अफसरों व कर्मचारियों पर सरकार नकेल लगायेगी जो लम्बे समय से विभागों में भ्रष्टाचार का खुला ताडंव करते हुए आ रहे हैं।
राज्य में बहेगी विकास की गंगा :
सरकार ने अपने कदम आगे बढाये और जिस अंदाज में उसने भ्रष्टाचार को लेकर हुंकार भरी थी उससे संदेश गया था कि, अब भ्रष्टाचारी सलाखों के पीछे होंगे और राज्य में विकास की गंगा बहेगी। भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस का दम भरने वाली सरकार के कई माह के कार्यकाल में प्रदेश के अन्दर ऐसा कुछ देखने को नहीं मिला, बल्कि अफसर अब अपने मातहतो को फायदा पहुंचाने में ज्यादा व्यस्त नजर आने लगे है।
चौथे स्तंभ की जिम्मेदारी :
चौथे स्तंभ से प्रशासनिक अधिकारियों की दूरिया जिलेभर में संचालित योजनाएं और उन पर लगती गृहण को प्रतिदिन प्रकाशित कर शासन-प्रशासन तक पहुंचाने की जिम्मेदारी जिस चौथे स्तंभ के पास है, उन्ही से जिम्मेदार अधिकारी बात करने से कतराते है। कलेक्ट्रट कार्यालय से लेकर ग्राम पंचायत के व्यवस्थाओं की जिम्मा जिन वरिष्ठ अधिकारी व कनिष्ठों के पास है वह सिर्फ कागजी कोरम पूरा कर अपने सिस्टम के अनुरूप कार्य करते है, न तो उन्हे प्रकाशित समस्याओं से कोई लेना देना है और न ही पत्रकारो की बातों का जवाब देने से। किसी भी मामले में संबंधित अधिकारी से बात करने की कई बार कोशिश की जाती है, लेकिन जब जिले का मुखिया ही बातों को अनसुना कर दे तो, कनिष्ठो की बात ही दिगर हो जाती है।
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