भोपाल, मध्य प्रदेश। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. बृजकिशोर कुठियाला समेत 20 प्रोफेसरों को बड़ी राहत मिली है। दरअसल, इन लोगों को आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) ने क्लीनचिट दी है। इन सभी पर लगे आरोप सिद्ध नहीं हो पाए।
ईओडब्ल्यू द्वारा इन प्रोफेसरों पर दर्ज हुई एफआईआर की क्लोजर रिपोर्ट लगाई गई है। इसे कोर्ट के समक्ष पेश कर दिया गया है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि आरोपियों के ऊपर लगाए गए आरोप सिद्ध नहीं हो पाए हैं।
बता दें कि कमल नाथ सरकार के कार्यकाल में रजिस्ट्रार दीपेंद्रसिंह बघेल की जांच रिपोर्ट पर ईओडब्ल्यू ने इनके खिलाफ मामला दर्ज किया था। क्लोजर रिपोर्ट में कहा गया कि इस मामले में जितने भी लोगों को आरोपी बनाया गया, उनमें से किसी पर भी आरोप सिद्ध नहीं हो पाया है। गौरतलब है कि इस मामले में एमसीयू के पूर्व कुलपति कुठियाला को कई बार ईओडब्ल्यू ने पूछताछ के लिए बुलाया था। उनसे कई घंटों तक पूछताछ भी की गई थी, लेकिन उनकी गिरफ्तारी नहीं हुई थी।
प्रो. कुठियाला पर थे ये आरोप :
प्रो. कुठियाला को 19 जनवरी, 2010 को नियुक्त किया गया था। उन पर आरोप थे कि आठ साल तीन महीने के कार्यकाल में कई लोगों को फायदा पहुंचाया। अपनी लंदन की यात्रा के दौरान पत्नी को भी विवि के खर्च पर यात्रा कराई। इसके अलावा उन्होंने विवि के खर्च पर ऐसे ही 13 विदेश दौरे किए। यह राशि बाद में समायोजित की गई। विवि के खर्च पर कई जगह जाकर नियमों का उल्लंघन किया। सर्जरी के लिए 58,150 रुपए, आंख के ऑपरेशन के लिए 1,69,467 रुपए का भुगतान विवि से किया गया। लैपटॉप, आइ-फोन की खरीदी विवि के खर्च पर की गई। कुठियाला हरियाणा में उच्च शिक्षा से संबंधित पद पर भी रहे हैं।
इनपर लगे यह आरोप :
डॉ. अनुराग सीठा-फर्जी तरीके से नियुक्ति पाने का आरोप।
डॉ. पी. शशिकला- तीन बार पदोन्नति दी गई।
डॉ. पवित्र श्रीवास्तव- कुठियाला के कार्यकाल में बनाया प्रोफेसर।
डॉ. अविनाश वाजपेयी- पर्यावरण में पीएचडी और प्रबंधन विभाग में प्रोफेसर और विभाग अध्यक्ष बने।
डॉ. अरुण कुमार भगत- भोपाल कैंपस लाया गया, लेकिन दो साल के लियन पर दिल्ली लौटे।
प्रो. संजय द्विवेदी- बिना पीएचडी बने प्रोफेसर।
डॉ. मोनिका वर्मा- नोएडा कैंपस भेजा। अनुभव कम होने के बाद भी पहले रीडर फिर प्रोफेसर बनाया।
डॉ. कंचन भाटिया- फर्जी नियुक्ति की गई।
डॉ. मनोज कुमार पचारिया- फर्जी नियुक्ति का आरोप।
डॉ. आरती सारंग- योग्यता नहीं होने के बाद भी दी प्रोफेसर की रैंक।
डॉ. रंजन सिंह- आरक्षण के तहत गलत तरीके से नियुक्ति दी।
सुरेंद्र पाल- तबादला नोएडा कैंपस में किया गया। गलत तरीके से आरक्षण का लाभ दिया।
डॉ. सौरभ मालवीय- विवादित तरीके से नियुक्ति दी।
सूर्य प्रकाश- नियमों के खिलाफ नियुक्ति में आरक्षण का लाभ दिया।
प्रदीप कुमार डहेरिया- विवि में काम करते हुए पत्रकारिता की नियमित डिग्री ली।
सतेंद्र कुमार डहेरिया- बिना स्टडी लीव लिए पत्रकारिता की डिग्री ली।
गजेंद्र सिंह अवश्या- नौकरी के दौरान डिग्री ली।
डॉ. कपिल राज चंदोरिया- डिग्री संदिग्ध है।
रजनी नागपाल- पत्रकारिता की डिग्री न होते हुए भी नियुक्ति दी गई।
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