FRHS इंडिया अध्ययन का खुलासा-5 राज्यों में मेडिकल गर्भपात दवाइयों की कमी

ब्लर्ब: FRHS इंडिया ने 6 राज्यों में अध्ययन कर पाया कि 6 में से 5 राज्यों में एमए दवाइयों की स्टॉकिंग अपर्याप्त है।
FRHS इंडिया अध्ययन का खुलासा
FRHS इंडिया अध्ययन का खुलासाSyed Dabeer-RE

भोपाल, मध्यप्रदेश। फाउंडेशन फॉर रिप्रोडक्टिव हेल्थ सर्विसेज़ इंडिया (ऍफआरएचएसआई) ने छह राज्यों में कुल 1500 दवाई विक्रेताओं को शामिल कर एक अध्ययन किया जिससे यह खुलासा हुआ कि छह में से पांच राज्यों में यानी कि मध्य प्रदेश (6.5%), पंजाब (1.0%), तमिल नाडू (2.0%), हरियाणा (2.0%), और दिल्ली (34.0%) में एमए (MA) दवाइयों की अत्यधिक कमी है। केवल असम (69.6%) में स्थिति बेहतर है।

क्रमांक
राज्य % दवाई दुकानें जो एमए (MA) दवाइयां रखते हैं।
1.पंजाब 1.0%
2.हरियाणा 2.0%
3.तमिल नाडू 2.0%
4.मध्य प्रदेश 6.5%
5.दिल्ली 34.0%
6.असम 69.6%

ऐसा प्रतीत होता है कि दवा नियंत्रण प्राधिकरणों द्वारा अतिनियंत्रण के परिमाणस्वरुप दवाई की दुकानों में एमए (MA) दवाइयां नहीं रखी जातीं। कानूनी झंझट और ज़रूरत से ज़्यादा दस्तावेज़ जमा करने की परेशानी से बचने के लिए लगभग 79% दवाई विक्रेताओं ने एमए (MA) दवाइयां रखनी बंद कर दी हैं। 54.8% दवाई विक्रेताओं के अनुसार अनुसूची एच (H) दवाइयों के मुकाबले एमए (MA) दवाइयां ज़्यादा नियंत्रित हैं। यहां तक कि असम में भी जहां इन दवाइयों की स्टॉक सबसे ज़्यादा है, वहां भी 58% दवाई विक्रेता एमए (MA) दवाइयों पर अतिनियंत्रण की सूचना देते हैं। राज्यों की बात करे तो, हरियाणा में 63%, मध्य प्रदेश में 40%, पंजाब में 74% और तमिल नाडू में 79% दवाई विक्रेताओं के अनुसार एमए (MA) दवाइयां न रखने के पीछे नियामक/कानूनी प्रतिबंध ही मुख्य कारण है।

इस रिपोर्ट के सामने आने पर प्रतिज्ञा अभियान एडवाइज़री ग्रूप के सदस्य और फाउंडेशन फॉर रिप्रोडक्टिव हेल्थ सर्विसेज़ इंडिया के चीफ़ एग्ज़ीक्यूटिव ऑफिसर श्री वी.एस. चन्द्रशेकर ने टिप्पणी करते हुए कहा कि, “पूरे भारतवर्ष में ज़्यादातर महिलाएं मेडिकल गर्भपात का विकल्प चुन रही हैं और वर्तमान स्थिति में इसकी अनुपलब्धि के कारण महिलाओं द्वारा सुरक्षित गर्भपात चुनने के अधिकार में बाधा आ रही है। यह साबित हो चुका है कि एमए (MA) दवाइयों द्वारा सुरक्षित और असरदार तरीके से गर्भपात संभव है, इसलिए इनके उपलब्ध न होने की स्थिति में देश को असुरक्षित गर्भपात, मृत्यु दर और मातृ मृत्यु दर में आई कमी से जो फ़ायदा हुआ है वह संभवत: नुकसान में बदल सकता है।”

हालांकि, इस अध्ययन का लक्ष्य एमए (MA) दवाइयों की उपलब्धता का पता लगाना था, इससे प्राप्त तथ्यों से यह भी स्पष्ट होता है कि तमिल नाडु राज्य के दवाई दुकानों में आपातकालीन (इमरजेंसी) गर्भनिरोधक गोलियां (इसीपी) (ECPs) नहीं मिलती। राज्य सर्वेक्षण में शामिल दवाई विक्रेताओं में से केवल 3% विक्रेताओं के पास इसीपी (ECPs) के स्टॉक थे और बाकी 90% विक्रेता जिनके पास इन दवाइयों का स्टॉक नहीं था उनके अनुसार सरकार द्वारा इन दवाइयों की बिक्री पर प्रतिबंध लगा हुआ है। आपातकालीन (इमरजेंसी) गर्भनिरोधक गोलियां ऐसी दवाइयां हैं जो बिना नुस्खा पर्ची (प्रिस्क्रिप्शन) की ख़रीदी जा सकती हैं और राष्ट्रीय परिवार नियोजन कार्यक्रम के अंतर्गत ये दवाइयां आशा (ASHAs) द्वारा रखी और वितरित की जाती हैं। इसीपी (ECPs) पर प्रतिबंध लगाकर दवाई विक्रेताओं को उनके स्टॉक न रखने देना तमिल नाडू की महिलाओं द्वारा सुरक्षित और आसान तरीके से गर्भपात कराने के अधिकार को छीन रहा है।

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