नेता प्रतिपक्ष ने आईएएस, आईपीएस अधिकारियों की जांच की अनुमति सीएम से लेने पर उठाए सवाल
ग्वालियर, मध्यप्रदेश। नेता प्रतिपक्ष बनने के बाद डॉ. गोविंद सिंह एक्टिव मोड पर आ गए हैं और लगातार सरकार को घेरने की रणनीति बनाने के साथ ही हमला भी कर रहे हैं। हाल ही में आईएएस व आईपीएस अधिकारियों पर भ्रष्टाचार के मामले की जांच के लिए मुख्यमंत्री से अनुमति लेने के आदेश पर डॉ. सिंह ने सवाल उठाते हुए कहा कि इस आदेश से प्रतीत होता है कि सरकार भ्रष्ट अधिकारियों के सामने नतमस्तक हो रही है और उनको बचाने का प्रयास किया जा रहा है।
डॉ. सिंह ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि इस निर्णय को अमल में लाने से पहले सरकार और भ्रष्ट नौकरशाहों के बीच कोई आर्थिक समझौता हुआ है, क्योंकि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने भ्रष्ट नौकरशाहों पर लगाम लगाने के लिए पहले उन्हें नौकरी करने लायक नहीं रहने देने, जेल की हवा खिलाने व जमीन पर गाड़ देने की जो धमकी दी थी अब उन्हीं के सामने आत्मसमर्पण क्यों कर रहे हैं? नेता प्रतिपक्ष डॉ. सिंह ने कहा कि भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए ही लोकायुक्त संगठन, ईओडब्ल्यू जैसी भ्रष्टाचार निरोधक संस्थाएं अस्तित्व में लाई गई थीं, यदि यह संस्थाएं ही भ्रष्टाचार से संबद्ध किसी भी मामले में आरोपितों के खिलाफ बिना मुख्यमंत्री की मंजूरी के जांच एवं पूछताछ नहीं कर सकेगी तो फिर इन संस्थाओं का क्या अस्तित्व है। डॉ. सिंह ने यह भी कहा कि उक्त निर्णय और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा 17-ए इस विषयक प्रावधान लाने की जरूरत क्यों पड़ी। इसको लेकर मुख्यमंत्री को स्थिति स्पष्ट करना चाहिए। डॉ. सिंह ने सीधा मुख्यमंत्री पर हमला बोलते हुए कहा कि इस तरह के निर्णय से यह साबित होता है कि प्रदेश में सरकार भ्रष्ट अधिकारियों को बचाने का काम कर रही है। जब ऐसे में मामलों की जांच व एफआईआर दर्ज करने के लिए जो संस्थाएं हैं उनके पास कोई अधिकारी ही नहीं है तो लोकायुक्त व ईओडब्ल्यू की क्या जरूरत है और ऐसे में उक्त दफ्तरों पर ताला लगा देना चाहिए।
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