शहडोल, मध्य प्रदेश। कुशाभाऊ ठाकरे जिला चिकित्सालय में 6 बच्चों के बाद 24 घंटे के अंदर दो और बच्चों की मौत से हड़कंप मच गया है। जहां एक ओर भोपाल में मुख्यमंत्री कार्यालय अलर्ट पर है, वहीं क्षेत्रीय विधायक ने जिम्मेदारों को चेताया है कि जब नहीं सम्हल रहा तो, बीमार बच्चों को ऊपर रेफर करो।
जिला चिकित्सालय में 48 घंटो में 6 बच्चों की मौत के बाद 24 घंटे में 2 और बच्चों की मौत से शहडोल से लेकर भोपाल तक हड़कंप मच गया है। मुख्यमंत्री के निर्देश पर जहां मेडिकल कॉलेज जबलपुर की टीम सोमवार को जांच करने शहडोल पहुंची, वहीं कलेक्टर ने देर रात जिला अस्पताल का स्वयं जायजा लिया। इतना ही नहीं कमिश्नर लगातार बैठके कर रहे हैं। फिर भी एसएनसीयू में भर्ती 33 बच्चों में से कुछ बच्चे अभी भी गंभीर हालत में है, इससे ऐसा प्रतीत होता है कि बच्चों की मौत का आंकड़ा और भी बढ़ सकता है। क्षेत्रीय विधायक जयसिंह मरावी ने सीएमएचओ को फोन करके चेताया है कि जब तुमसे नहीं सम्हल रहा है तो, बीमार बच्चों को ऊपर रेफर करो, क्योंकि बच्चों की मौत से हमारी और सरकार की बदनामी हो रही है।
24 घंटे में दो बच्चों की मौत :
जिला चिकित्सालय के एसएनसीयू में भर्ती जिन दो बच्चों की मौत 24 घंटे के अंदर हो गई, उनमें महिमा बघेल उम्र 3 माह 10 दिन निवासी जैतहरी एवं पवन उम्र 4 माह शामिल हैं। अस्पताल सूत्रों के मुताबिक महिमा की मौत रात साढ़े 12 बजे हुई, जबकि पवन की मौत सोमवार की सुबह हुई है। इसके पहले 48 घंटे में 6 मौत नवजात शिशुओं की हो चुकी थी। कुल मिलाकर 50 घंटे के अंदर 8 नवजात शिशुओं की मौत हो चुकी है।
और भी बच्चे हैं गंभीर :
जिला चिकित्सालय के एसएनसीयू में वैसे तो 33 नवजात शिशु भर्ती हैं, जिनका चिकित्सक इलाज कर रहे हैं, परन्तु दो से तीन बच्चों की हालत नाजुक बताई जा रही है। यदि चिकित्सकों ने इन बच्चों की बचाने में कामयाबी हासिल नहीं की, तो मामला और भी ज्यादा गरमा जायेगा।
क्यों बचाया जा रहा दोषियों को :
जनवरी 2020 में इसी जिला चिकित्सालय में भर्ती 6 बच्चों की मौत की घटना को तात्कालीन कमलनाथ सरकार ने गंभीरता से लिया था और 48 घंटे के अंदर भोपाल से स्वास्थ्य मंत्री को शहडोल भेजकर तत्काल दोषियों के विरूद्ध कार्यवाही की गई थी, परन्तु आश्चर्य है कि इस बार 6 से ज्यादा 8 बच्चों की मौत हो चुकी है, फिर भी अब तक न तो कोई मंत्री भोपाल से आया है और न ही जिला प्रशासन को किसी की लापरवाही दिखाई दे रही है। ऐसा प्रतीत होता है कि जिला प्रशासन दोषियों को बचा रहा है। आश्चर्य है कि इतनी बड़ी संख्या में नवजात शिशुओं की मौत हो जाती है, फिर भी प्रशासन कहता है कि किसी डॉक्टर की कोई लापरवाही सामने नहीं आई है, बल्कि इसमें मृतक बच्चों के परिजनों की लापरवाही है, जिन्होंने विलंब से हालत गंभीर होने के बाद बच्चों को जिला अस्पताल में भर्ती कराया, इसके साथ ही जिला प्रशासन जमीनी स्तर के स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं एवं आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के ऊपर गाज गिराने का प्रयास कर रहा है।
क्या नेताओं-मंत्रियों की संवेदना मर गई?
आश्चर्य इस बात का है कि सरकारी अस्पताल में इतनी बड़ी संख्या में लगातार बच्चों की मौत हो रही है, फिर भी अब तक एक भी नेता-मंत्री अपनी संवेदना प्रकट करने मृतकों के परिजनों तक नहीं पहुंचा और न ही 50 घंटे बीत जाने के बावजूद कोई भी जनप्रतिनिधि सांसद, विधायक, मंत्री जिला चिकित्सालय पहुंचे। ऐसा प्रतीत होता है कि सत्ताधारी पार्टी के नेताओं, मंत्रियों एवं जनप्रतिनिधियों की संवेदनाएं मर चुकी हैं।
तब तो काले झण्डे दिखा रहे थे :
जनवरी में जब कमलनाथ की कांग्रेस सरकार थी और जिला चिकित्सालय में 6 बच्चों की मौत हो गई थी, तब स्वास्थ्य मंत्री के जिला चिकित्सालय निरीक्षण के दौरान भाजपा युवा मोर्चा के नेताओं ने काले झण्डे दिखाकर जिला अस्पताल के डॉक्टरों की लापरवाही के विरोध में नारेबाजी करते हुए काले झण्डे दिखाये थे, किन्तु इस बार कोई भी नेता अब तक अस्पताल नहीं पहुंचा है।
इनका कहना है :
जिला अस्पताल में डॉक्टर अपना प्रोटोकाल पूरा कर रहे हैं, जहां तक नवजात शिशुओं की मौतों का सवाल है, इसमें अभी तक जिला अस्पताल के अंदर किसी तरह की लापरवाही सामने नहीं आई है, बल्कि परिजनों द्वारा विलंब से गंभीर हालत में बच्चों को अस्पताल लाने की वजह से मौते हो रही हैं। हमने निचले स्तर के स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं एवं आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को अलर्ट कर दिया है, ताकि परिजन इस तरह की चूक अब न करें।
नरेश पाल, कमिश्नर, शहडोल संभाग
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