1, 2, 5 के सिक्कों के साथ-साथ पांच के नोट लेना भी बंद कर दिया दुकानदारों ने

इंदौर : आरबीआई एक्ट के मुताबिक भारतीय मुद्रा के साथ किसी भी तरह से किए गए अपमान पर दंडित करने का प्रावधान है। शहर में चिल्लर बंद होने की कगार पर है और जिम्मेदारों को कोई कार्यवाही नहीं की जा रही हैं।
दुकानदार नहीं ले रहे सिक्के
दुकानदार नहीं ले रहे सिक्केSyed Dabeer Hussain - RE

इंदौर, मध्यप्रदेश। आरबीआई एक्ट के मुताबिक भारतीय मुद्रा के साथ किसी भी तरह से किए गए अपमान पर दंडित करने का प्रावधान है। शहर में चिल्लर बंद होने की कगार पर है और जिम्मेदारों द्वारा किसी प्रकार से कोई कार्यवाही नहीं की जा रही हैं। भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा एक, दो, पांच और दस के सिक्के वर्तमान में प्रचलन में हैं, लेकिन यह सिक्के आमजन के लिए परेशानियों का कारण बने हुए हैं। शहर में सिक्कों को लेकर अलग ही तरह के विवाद चल रहे हैं। बाजार में व्यापारियों ने तो दो साल पहले से ही 5 व 10 के सिक्के लेने से मना कर दिया था। अब सिटी बस कंडक्टर भी इसमें जमकर आनाकानी कर रहे हैं। दूसरी ओर शहर में कई मॉल, रेस्टोरेंट में भी सिक्के नहीं लिए जा रहे हैं। हर जगह लोगों को नोट लाने की सलाह दी जा रही है। वहीं बड़े दुकानदार अपनी चिल्लर कमीशन एजेंट को देने को मजबूर है। अमूमन एक दुकानदार के पास महीने की पचास हजार से एक लाख रुपए की चिल्लर आती है जिसे खपाने के लिए उसे हजार रुपए तक का कमीशन देना पड़ रहा है। व्यापारियों को कहना हैं कि लोगोंं के पास सिक्कों की भरमार है और वे अपने सिक्के दुकानों पर निकालने का प्रयास कर रहे हैं। वहीं कई बैंके व्यापारियों से 10 के सिक्के नहीं ले रहीं। कई बैंक एक बार में सिर्फ 100 सिक्के लेने के नियम का हवाला देती है जिसकी वजह से इन व्यापारियों को यह सिक्के कमीशन पर और गांवों में निकालना पड़ रहे हैं। दुकान संचालक योगेश का कहना हैं 1-2 रुपए के सिक्के देने पर 75-80 रुपए दिए जाते हैं। 5 रुपए के सिक्के देने पर 85 और 10 रुपए के सिक्के देने पर 90 रुपए मिल रहे हैं।

कर्मचारियों की भी समस्या :

निजी संस्थान में काम करने वाले राजेश का कहना हैं ऑफिस में प्रतिदिन हजारों रुपए की चिल्लर वेंडरों से आती है। जब इन्हें बैंक में जमा करने जाते हैं तो बैंक तय राशि ही जमा करती है वह भी कई मिन्नतों के बाद। बैंक के अधिकारी कहते हैं कि हमारे पास गिनने के लिए स्टॉफ नहीं है या फिर हमारे खुद के पास लाखों रुपए की चिल्लर जमा है हम इसे कहां खपाएं। बाजार में बैंकों मेंं इन दिनों एक और दो रुपए के सिक्कों को लेकर एक बड़ा तबका बेहद परेशानी से जूझ रहा है। एक निजी संस्थान में काम करने वाले आशीष का कहना हैं महीने के आखिरी में जब सैलरी मिलती है तो मालिक की ओर से तनख्वाह में से एक हिस्सा चिल्लर का दिया जाता है। शुरु के एक-दो महीने तो चिल्लरों को जैसे-तैसे खपा दिया लेकिन अब तो सब्जी वाले, दूध वाले से लेकर किराना दुकानदार तक इन चिल्लरों को लेने से मना करने लगे हैं। बैंक भी चिल्लर लेने से बचती है और तरह-तरह की बातें कहती हैं। दुकानदार और बैंक ग्राहकों से खासकर एक और दो रुपए के सिक्के लेने में आनाकानी कर रहे हैं।

अधिकांश दुकानदार सिक्के लेने को तैयार नहीं :

बड़े व्यापारियों का कहना हैं सिक्कों की समस्या के कारण व्यापारी वर्ग परेशान है। एक रुपए का छोटा सिक्का खोटा बन गया है। इसे अधिकांश दुकानदार लेने को तैयार नहीं है, जबकि बैंक वालों का कहना है कि इस सिक्के के चलन पर कोई रोक नहीं है। दुकानदार शिवकुमार ने बताया बैंक वाले सिक्के लेने में बहुत आना-कानी करते हैं। वे तय राशि ही सिक्के की लेते हैं, उसके लिए भी बहुत मशक्कत करना पड़ती हैं। सूत्रों की माने तो फुटकर विक्रेता और उनके पास वर्तमान में करीब 50 हजार रुपए चिल्लर रखी है जो बड़े व्यापारियों को देने पर वह लेते नहीं। वहीं बड़े व्यापारियों ने बताया कि उनके प्रतिष्ठानों पर लाखों रुपए की चिल्लर पड़ी है लेकिन बैंक उनसे चिल्लर लेता नहीं इसलिए वह भी फुटकर व्यापारियों से चिल्लर नहीं लेते। बाजार में कभी चिल्लर की किल्लत हुआ करती थी और चिल्लर लेने पर बट्टा देने पड़ता था। नोटबंदी के दिनों में बाजार में तेजी से दौडऩे वाला सिक्का इन दिनों लोगों की परेशानी का कारण बन गया है।

पहले पूछते हैं ग्राहक से की नोट ही लाए हो ना :

इधर बैंक व्यापारियों को एक बार जमा करने पर 100 सिक्के लेने का नियम बताकर मनाकर देती है। कई खेरची दुकानदार इतने परेशान हो गए हैं कि ग्राहक से पूछते हैं नोट ही लाए हो ना...दरअसल नोटबंदी के बाद से सरकार चाहती हैं लोग डिजिटल मॉड्स से पेमेंट करें और बाजार में नकदी फ्लो कम हो। वहीं खेरची व्यापारियों और जनता के बीच नकदी कम नहीं हो रही है। शहर के दुकानदार चिल्लर लेने से मना कर भारतीय मुद्रा का अपमान कर रहे हैं। जब दुकान पर ग्राहक खुल्ले रुपए लेकर कुछ सामान खरीदने जाता है तो दुकानदार चिल्लर लेने से मना कर देते हैं। नगर में सब्जी वाले, दूध वाले से लेकर प्रोविजन स्टोर, मेडिकल स्टोर, किराना व्यापारी, पेट्रोल पंप व अन्य विक्रेता चिल्लर लेने में आना-कानी कर रहे हैं। इससे आमजन को भारी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, वहीं जिम्मेदारों को इसकी परवाह नहीं हैं। आरबीआई द्वारा जारी छोटे सिक्के, चिल्लर को कुछ दुकानदार लेने से मना कर रहे हैं। व्यापारियों का कहना हैं न तो चिल्लर बैंक लेता है ना ही एजेंट। यदि एजेंट को चिल्लर देते हैं तो वह उसे कमीशन पर लेता है।

व्यापारियों ने एकदम से निकाल ली चिल्लर :

नोटबंदी के बाद बड़ी मात्रा में बाजार में सिक्के चलन में आ गए। व्यापारियों ने एक दम से चिल्लर निकाल ली। बाजार में बड़ी मात्रा में फैली ये चिल्लर अब इस स्तर पर पहुंच गई है कि इसे लेने से बउ़े व्यापारी और बैंक कतरा रहे हैं। हालात यह है कि चिल्लरों के लेन-देन को लेकर बैंक से लेकर बड़े व्यापारी व दुकानदारों के बीच विवाद की स्थिति बन रही हैं। कई ऐसे विक्रेता है जिनके पास लाख रुपए से 'यादा की चिल्लर जमा हो गई हैं। इनकी संख्या एक दो नहीं बल्कि हजारों में है।

बैंक ही झाड़ रही पल्ला :

बाजार में मुद्रा का चलन बैंक के जरिए ही होता है, लेकिन सिक्कों के लेन-देन को लेकर चल रही इस स्थिति में सबसे 'यादा पल्ला बैंक ही झाड़ रही हैं। नियमानुसार बैंक अपने खाताधारक से सिक्के लेने से मना नहीं कर सकता। बैंक अधिकारी भी इसे स्वीकार करते हैं, लेकिन वे अपनी व्यवहारिक परेशानियां जैसे कर्मचारियों की कमी और सिक्कों को गिनने में लगने वाले समय की बात का तर्क देते हैं। कई बार बैंकों में विवाद की स्थिति भी बन रही हैं।

पहले मिलती थी 100 रुपए की चिल्लर 110 रुपए में :

सूत्रों के अनुसार 2018 से पहले तक यह हालत थी कि चिल्लर 100 रुपए की मांगने पर 110 रुपए लिए जाते थे। सिक्के बंद होने की अफवाह से बाजार में कारोबारियों के पास चिल्लर के ढेर लग गए। चिल्लर देने वालों ने चिल्लर धंधा शुरु कर दिया था। बैंक अधिकारियों का कहना हैं चिल्लर बाजार में सर्कुलेट करने के लिए दी गई थी। जमाखोरी कर मुनाफा कमाने वालों ने बाजार में यह स्थिति बना दी है। दूसरी ओर बैंकों में पुराने सौ-सौ के नोट की भी भरमार है। एटीएम में इसका अनुपात बढ़ा दिया गया है। 2000 और 500 के नोट एटीएम से कम ही मिल रहे हैं।

यह है एडवाइजरी :

आरबीआई ने अपनी एडवाइजरी में साफ कहा है कि कोई भी बैंक किसी भी ग्राहक से सिक्का लेने से इनकार नहीं कर सकता है। शिकायत आने पर प्रबंधन के खिलाफ कड़ी कार्यवाही की जाएगी। ऐसो करने वालों के खिलाफ भारतीय करंसी के अपमान के तहत मामला दर्ज होगा, मुकदमा दर्ज कर जेल भी भेजा जा सकता है। नियम के अनुसार सभी बैंक और उनकी शाखाएं अपने खाताधारक को आरबीआई द्वारा निर्देशित सेवाएं देने को बाध्य है। इनमें सभी नए और साफ-सुथरे नोट व सिक्के जारी करने, कटे-फटे व गंदे नोट बदलने और किसी भी ट्रांजेक्शन और बदलाव में सिक्कों को स्वीकार करने के लिए बाध्य है। प्रतिदिन प्रति खाताधारक एक हजार रुपए कीमत तक के एक रुपए और उससे अधिक मूल्य वर्ग के सिक्के जमा कर सकता है।

यह हो सकती है कार्यवाही और यह है सजा का प्रावधान :

यदि कोई व्यक्ति किसी भी सिक्के (जो सिक्का चलन में हैं) को लेने से मना करता है तो उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई जा सकती है। उसके खिलाफ भारतीय मुद्रा अधिनियम व आईपीसी की धाराओं के तहत कार्यवाही होगी। मामले की शिकायत रिजर्व बैंक में भी की जा सकती है। इसके बाद दुकानदार या जो भी सिक्के लेने से मना कर रहा है, उनके खिलाफ कार्यवाही की जा सकती है। भारतीय दंड संहिता की धारा 489 ए से 489 ई के तहत नोट या सिक्के का जाली मुद्रण, जाली नोट या सिक्के चलाना व सही सिक्कों को लेने से मना करना अपराध है। इन धाराओं के तहत किसी विधिक न्यायालय द्वारा आर्थिक जुर्माना, कारावास या दोनों का प्रावधान है। ऐसे में यदि आपसे कोई सिक्का लेने से मना करें तो उसकी शिकायत सबूत के साथ कार्यवाही कर सकते हैं।

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