तीसरी लहर में 80 प्रतिशत पॉजिटिव ओमिक्रॉन के ही थे
तीसरी लहर में 80 प्रतिशत पॉजिटिव ओमिक्रॉन के ही थेसांकेतिक चित्र

Indore : तीसरी लहर में 80 प्रतिशत पॉजिटिव ओमिक्रॉन के ही थे

इंदौर, मध्यप्रदेश : डेल्टा वैरिएंट होता, तो अस्पताल फुल हो जाते। तीसरी लहर की शुरुआत दक्षिण अफ्रीका से कोरोना के नए वैरिएंट ओमिक्रॉन के कारण हुई थी। मार्च-अप्रैल में चौथी लहर की आशंका नहीं के बराबर।

इंदौर, मध्यप्रदेश। शहर में कोरोना की तीसरी लहर की दस्तक दिसंबर अंत में आ गई थी। नया वर्ष लगते ही कोरोना के केसों ने जोर पकड़ लिया था। करीब डेढ़ माह कोरोना की तीसरी लहर का असर रहा। इस दौरान करीब 53 हजार लोग कोरोना की चपेट में आए। तीसरी लहर की शुरुआत दक्षिण अफ्रीका से कोरोना के नए वैरिएंट ओमिक्रॉन के कारण हुई थी। देखते ही देखते कोरोना का यह वैरिएंट भारत के साथ ही इंदौर भी पहुंच गया था।

शहर के विशेषज्ञों का कहना है कि तीसरी लहर में जो लोग कोरोना संक्रमित हुए हैं, इनमें से 80 प्रतिशत से ज्यादा पॉजिटिव ओमिक्रॉन वैरिएंट के होंगे। कारण इन संक्रमितों में वो सभी लक्षण दिखे, जो ओमिक्रान पीड़ितों में होते हैं। वैसे 99 प्रतिशत लोगों की जीनोम स्क्विेंसिंग नहीं हुई थी, इस कारण यह दवा कितना सटीक है, कह पाना मुश्किल है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि यदि डेल्टा या डेल्टा प्लस वैरिएंट ज्यादा सक्रिय होता, तो अस्पतालों और आईसीयू के बेड इतनी बड़ी संख्या में खाली नहीं होते।

शत प्रतिशत ओमिक्रॉन वैरिएंट ही सक्रिय था :

एमजीएम मेडिकल कॉलेज के चेस्ट एंड टीबी विभाग प्रमुख पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. सलिल भार्गव ने चर्चा में बताया कि इस बार जो कोरोना पॉजटिव केस आए थे। उनके लक्षण पहली और दूसरी लहर के संक्रमितों के मुकाबले अलग थे। पहली लहर में बुखार, सर्दी-खांसी और सांस लेने में दिक्कत थी। दूसरी लहर में लोगों में तेजी से फेफड़ों में संक्रमण फैल रहा था और आक्सीजन की कमी अधिक हो रही थी। वहीं तीसरी लहर में दोनों लक्षण नहीं थे। हल्की सर्दी-खांसी के साथ शरीर में दर्द और जकड़न की शिकायत लोगों में थी। न आक्सीजन की कमी हुई और न ही फेफड़ों में संक्रमण पहुंचा। हमारा अनुमान है कि ज्यादातर लोग ओमिक्रॉन वैरिएंट की चपेट में आए थे, यदि डेल्टा और डेल्टा प्लस होता, तो बड़ी संख्या में अस्पताल में लोगों को भर्ती करना पड़ सकता था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। ज्यादातर लोग समान्य इलाज से स्वस्थ हो गए।

1600 सेंपल भेजे थे जीनोम स्क्विेंसिंग के लिए :

एमजीएम मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ. संजय दीक्षित ने जानकारी में बताया कि इंदौर से करीब 1600 सेंपल जीनोम स्क्विेंसिंग के लिए भेजे गए थे। इनमें से मात्र 15-16 में ही ओमिक्रॉन पाया गया है। अब तक 1400 सेंपल की रिपोर्ट आ चुकी है। उल्लेखनीय है कि ओमिक्रान की जांच के लिए तीसरी लहर की शुरुआत में ही सेंपल लिए गए थे, उसके बाद विभाग इसे भूल ही गया था, क्योंकि शहर के विशेषज्ञों के साथ ही प्रशासन के जिम्मेदारों ने भी मान लिया था कि जो संक्रमण फैला है और जो इसकी चपेट में आ रहे हैं वो ओमिक्रॉन के ही हैं। कारण जो लक्षण मरीजों में मिल रहे थे। वो सभी लक्षण ओमिक्रॉन पॉजटिव में पूरी दुनिया में मिल रहे थे। साथ ही ओमिक्रॉन बहुत अधिक घातक नहीं था। इस कारण जीनोम स्क्विेंसिंग पर ध्यान नहीं दिया गया।

अस्थमा, सीओपीडी वाले रहें ज्यादा सतर्क :

क्या कोरना की चौथी लहर मार्च-अप्रैल में एक बार फिर आएगी। गत दो वर्ष से इस मौसम में कोरोना तेजी से फैला है? इसको लेकर जब डॉ. सलिल भार्गव से सवाल पूछा गया, तो उनका कहना था कि इस बार ऐसा नहीं होगा। ज्यादातर लोगों को वैक्सीन लग चुके हैं और लोग कोरोना से संक्रमित भी बढ़ी संख्या में हो चुकी है। लोगों में हार्ड इम्यूनिटी आ चुकी है। इसलिए मार्च-अप्रैल में कोरोना की चौथी लहर या केस बढ़ने की कोई आशंका नजर नहीं आ रही है। जिन लोगों ने वैक्सीन नहीं लगवाई है, उन्हें थोड़ा बहुत खतरा हो सकता है। साथ ही मौसम बदलने के दौरान जो सीजनल फ्लू होता है, उसके मामले बढ़ सकते हैं। इस मौसम में सीओपीडी, अस्थमा सहित अन्य चेस्ट की गंभीर बीमारियों वाले लोगों को थोड़ा सावधान रहने की जरूरत है। ऐसा पूरा अनुमान है कि होली, धुलेंडी, रमजान, ईद के साथ अन्य त्योहार में इस बार कोरोना बाधक नहीं होगा।

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