इंदौर : एमवायएच में आधा दर्जन से अधिक बाबू कर रहे अन्य विभागों में कार्य

इंदौर, मध्य प्रदेश : कार्यालय में स्टाफ कम होने का बहाना बनाकर काम को टाला जा रहा। जमकर चल रहा लेनदेन, शिकायतों के बाद भी कार्रवाई नहीं।
एमवायएच में आधा दर्जन से अधिक बाबू कर रहे अन्य विभागों में कार्य
एमवायएच में आधा दर्जन से अधिक बाबू कर रहे अन्य विभागों में कार्यSocial Media

इंदौर, मध्य प्रदेश। प्रदेश के सबसे बड़े अस्पताल एमवायएच में आज भी करीब आधा दर्जन से अधिक बाबू ऐसे हैं, जो अपना मूल काम न करते हुए अन्य विभागों में तैनात हैं और वहां कुछ तो पैरामेडिकल का कार्य कर रहे हैं, तो कुछ केवल कागजी खानापूर्ति। वहीं दूसरी ओर कार्यालय में स्टाफ की कमी का रोना रोया जाता है और डॉक्टर्स, पैरामेडिकल स्टाफ सहित अन्य के काम अटका दिए जाते हैं।

वहीं दूसरी तरफ ऐसे कई पैरामेडिकल स्टाफ हैं, जो अपना मूल काम न करते हुए बाबूगीरी का काम कर रहे हैं। ऐसा लंबे समय से चल रहा है, इस तरफ जिम्मेदारों का ध्यान नहीं है, वहीं वार्ड में आज भी कई स्थानों पर एक नर्सिंग स्टाफ को कई-कई मरीज और कई बार तो दो-दो वार्ड संभालना पड़ रहे हैं। ऐसा नहीं है कि इसकी जानकारी जिम्मेदारों को नहीं है, लेकिन किसी खास कारणों के चलते बदलाव नहीं हो पा रहा है। वहीं रेडियोग्राफर्स से भी मूल काम न लेते हुए बाबूगीरी कराई जा रही है।

एक लिपिक का 8 बार ट्रांसफर :

मुकेश डाबर उच्च श्रेणी लिपिक, लेकिन काम कर रहे कार्डियोलाजी में। इसी प्रकार ओम प्रकाश जंगल सिंह भी उच्च श्रेणी लिपिक के पद पर पदस्थ हैं, लेकिन काम कार्डियोलाजी विभाग में कर रहे हैं। आनंद निम्म श्रेणी लिपिक, काम एक्स रे में कर रहे हैं। कल्पनाथ तिवारी भी निम्न श्रेणी लिपिक लेकिन काम कर रहे हैं ईएनटी विभाग में। इसी प्रकार हेमंत आचार्य उच्च श्रेणी लिपिक हैं और अपनी सेवाएं स्कूल ऑफ नर्सिंग में दे रहे हैं। सुरेंद्रसिंह भदौरिया उच्च श्रेणी लिपिक हैं, लेकिन कोई विभाग ही आवंटित नहीं किया गया है। इसी प्रकार सुरेंद्र सिंह भदौरिया हैं, जो उच्च श्रेणी लिपिक हैं, लेकिन क्या काम करते हैं, इसकी जानकारी किसी को नहीं।

पिछले दिनों मनोज ओझा, उच्च श्रेणी लिपिक का स्थानांतरण डीन के आदेश पर एनेस्थिसिया विभाग में किया गया, लेकिन स्टाफ न होने के कारण उन्हें रिलिव नहीं किया जा रहा है। श्री ओझा विकलांग कोटे में से। उनका एक वर्ष में 5 बार ट्रांसफर किया जा चुका है, जबकि उनकी कोई शिकायत नहीं है। इसी प्रकार अमित जारवाल जो निम्न श्रेणी लिपिक हैं, उनका भी 8 बार ट्रांसफर किया जा चुका है, वर्तमान में मानसिक चिकित्सालय में पदस्थ हैं।

बिना लेन-देन नहीं होता कोई भी काम :

अस्पताल के स्टाफ का आरोप है कि कार्यालय में वर्तमान में इतना ज्यादा हालत खराब है कि बिना लेन-देन के कोई काम ही नहीं होता है। सबसे ज्यादा इसका शिकार नवनियुक्त नर्सिंग स्टाफ हो रहा है। उनका कहना है कि अवकाश तक स्वीकृत कराने के लिए उन्हें परेशान होना पड़ता है। इसकी शिकायतें भी की गई हैं, लेकिन हालत नहीं सुधर रहे हैं। हालत तो यह भी है कि जिंदगीभर अस्पताल में सेवा करने के बाद जव सेवानिवृत होते हैं, तो बिना लेन-देने के न आसानी से पेंशन बन पाती है और न ही पीएफ, ग्रेजुएटी आदि की पैसा खाते में आता है, जो न-नुकर करता है, तो पेंशन और अपनी जिंदगीभर की कमाई के लिए परेशान होता रहता है। पूर्व में ऐसे ही मामलों में लोकायुक्त कार्रवाई हो चुकी है, कुछ दिन ईमानदारी से काम हो रहा था, लेकिन फिर यह सिलसिला शुरू हो चुका है।

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