अब डब्ल्यूएचओ की मदद से मिलेगी इंदौर को जीनोम सीक्वेंसिंग मशीन
अब डब्ल्यूएचओ की मदद से मिलेगी इंदौर को जीनोम सीक्वेंसिंग मशीनसांकेतिक चित्र

Indore : अब डब्ल्यूएचओ की मदद से मिलेगी इंदौर को जीनोम सीक्वेंसिंग मशीन

इंदौर, मध्यप्रदेश : एमजीएम मेडिकल कॉलेज के सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक डब्ल्यूएचओ ने कॉलेज के माइक्रोबायलाजी विभाग को जीनोम सीक्वेंसिंग मशीन देने की पुष्टि कर दी है।

इंदौर, मध्यप्रदेश। फिलहाल शहर में कोरोना की चौथी लहर का कोई खतरा नजर नहीं आ रहा है, लेकिन आने वाले वक्त में कभी भी कोरोना का कोई नया वैरिएंट अटैक कर सकता है। ऐसी स्थिति से निपटने के लिए फिलहाल इंदौर में कोई सुविधा नहीं है। कारण वर्ष 2021 में कोरोना की तीसरी लहर के दौरान ओमिक्रॉन को खतरे को देखते हुए शहर में जीनोम सीक्वेंसिंग मशीन स्थापित करने की घोषणा हुई थी, वो केवल घोषणा ही रही। इंदौर सहित प्रदेश के पांच शहरों में केंद्र सरकार की मदद से यह मशीन लगना थी। इसके बाद तय हुआ था कि इंदौर के एमजीएम मेडिकल कॉलेज को मशीन मिलेगी, लेकिन वो भी भोपाल के हमीदिया अस्पताल के हिस्से में चली गई थी। अब एक बार फिर उम्मीद जागी है, क्योंकि डब्ल्यूएचओ ने इंदौर को जीनोम सीक्वेंसिंग मशीन देने की बात कही है।

चुनाव आचार संहिता समाप्त होन के बाद मिलेगी :

एमजीएम मेडिकल कॉलेज के सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक डब्ल्यूएचओ ने कॉलेज के माइक्रोबायलाजी विभाग को जीनोम सीक्वेंसिंग मशीन देने की पुष्टि कर दी है और इसको लेकर सभी चर्चा और कागजी कार्रवाई भी हो चुकी हैं। वर्तमान में चल रही नगर निगम चुनाव आचार संहिता के कारण इसको लेकर घोषणा नहीं हो पाई है। इस मशीन को कॉलेज आने में एक से डेढ़ माह का समय लगेगा। इस संबंध में कॉलेज के डीन द्वारा भी पुष्टि की जा चुकी है। उल्लेखनीय है कि प्रदेश में सबसे ज्यादा कोरोना संक्रमित इंदौर में ही मिले थे। वर्तमान में भी प्रतिदिन डेढ़ दर्जन से ज्यादा कोरोना संक्रमित इंदौर में निकल रहे हैं। कॉलेज प्रशासन द्वारा लिए गए सेंपल को जांच के लिए भोपाल, एम्स सेंपलिंग के लिए भेजा जा रहा है।

इस तरह काम करती है मशीन :

जीनोम सीक्वेसिंग वह तकनीक है, जिसमें आरएनए की जेनेटिक जानकारी मिलती है। सरल शब्दों में कहे तों वायरस कैसा है, कैसे हमला करता है और कैसे बढ़ता है। यह जानने में जीनोम सीक्वनेंस ही काम आता है। मशीन से यह पता चलता है कि पुराने वायरस से नया वायरस कितना अलग है। सीक्वेंसिंग की मदद से डॉक्टर्स समझ पाते हैं कि वायरस में म्यूटेशन कहां पर हुआ। अगर म्यूटेशन कोरोना वायरस के स्पाइक प्रोटीन में हुआ हो, तो ये ज्यादा संक्रामक होता है। इस पूरी प्रोसेस में करीब 6-7 दिन लगते हैं। इंदौर से बाहर सेंपले भेजने में ही इतना समय लग जाता है और रिपोर्ट आने में 15-20 दिन तब तक वायरस फैल चुका होता है। इंदौर में मशीन स्थापित हो जान के बाद जल्द रिपोर्ट मिलेगी। भले ही वर्तमान में कोरोना का खतरा नहीं है, लेकिन भविष्य में इंदौर को इसका लाभ मिलेगा।

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