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जबलपुर: रेप के मामले में हाईकोर्ट ने ADG पुलिस, एसपी और सिविल सर्जन को हटाने के आदेश

जबलपुर, मध्य प्रदेश। रेप के आरोपी कॉन्स्टेबल को बचाने के मामले में अफसरों पर कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। इसके साथ ही डॉक्टर्स और पुलिस अधिकारियों पर नाराजगी जताई है।

जबलपुर, मध्य प्रदेश। दुष्कर्म से जुड़े एक मामले में डॉक्टर्स और पुलिस अधिकारियों की बड़ी लापरवाही सामने आई है। जिसपर मध्य प्रदेश हाई कोर्ट (MP High Court) ने नाराजगी जताई है। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने इस मामले में नाराजगी जताते हुए इन अधिकारियों कार्यवाही के निर्देश दिए हैं।

बता दें कि, रेप के आरोपी कॉन्स्टेबल को बचाने के मामले में अफसरों पर कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। हाईकोर्ट ने विजिलेंस एंड मॉनिटरिंग कमेटी से कहा है कि, ADGP उमेश जोगा समेत केस से जुड़े अन्य का ट्रांसफर कहीं दूर करने के निर्देश दिए हैं, ताकि मामले की जांच प्रभावित न हो।

जस्टिस विवेक अग्रवाल की एकलपीठ ने हाई कोर्ट की रजिस्ट्री को आदेश दिया कि, डीएनए से जुड़ी दो जाँच रिपोर्ट के साथ इस आदेश की कापी एमपी के चीफ सेक्रेटरी के माध्यम से कमेटी को भेजें। इतना बड़ी लापरवाही सामने आने के बाद कोर्ट ने दुष्कर्म के आरोपी पुलिसकर्मी अजय साहू की जमानत याचिका भी खारिज कर दी है।

कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि, आरोपी चूंकि एक पुलिसकर्मी है, इसलिए इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि, बड़े अफसर उसे बचाने की कोशिश कर रहे हैं। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि, दुष्कर्म के मामले में आरोपी पुलिसकर्मी अजय साहू के डीएनए सैंपल से छेड़छाड़ की गई है। पीड़िता का डीएनए सेम्पल भी सुरक्षित न किये जाने पर हाइकोर्ट ने आदेश दिए हैं।

बताते चलें कि, जबलपुर निवासी वर्तमान में छिंदवाड़ा में पदस्थ पुलिस आरक्षक अजय साहू के खिलाफ छिंदवाड़ा के अजाक थाने में दुष्कर्म व एससीएसटी की विभिन्न धाराओं के तहत प्रकरण पंजीबद्ध हुआ था। आरोपित को 13 नवंबर, 2021 को गिरफ्तार किया गया था। दुष्कर्म के बाद पीड़िता गर्भवती हो गई थी और उसका गर्भपात कराया गया। डीएनए सेंपल ठीक से सुरक्षित नहीं रखा गया।

वहीं, जबलपुर जोन के एडिशनल डीजीपी उमेश जोगा ने 20 अप्रैल को हाई कोर्ट में मामले में रिपोर्ट सौंपी। हाई कोर्ट ने इस मामले में पाया कि, सिविल सर्जन शिखर सुराना ने हाई कोर्ट को गलत जानकारी दी है। हाई कोर्ट ने इसपर कहा कि, ADGP ने बिना विचार किए ही रिपोर्ट पर हस्ताक्षर कर दिए, जबकि उसमें स्टाफ नर्स के बयान दर्ज नहीं थे।

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