उमरिया : जोधइया बाई का नाम पद्मश्री अवार्ड के लिए किया नामांकित

जोधइया बाई की ख्याति बैगा जन जाति की ट्रेडीशनल पेंटर के रूप में है। उनके द्वारा बनाई गई पेंटिंग राज्य स्तर, राष्ट्रीय स्तर तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित होने वाले आयोजनों में प्रदर्शित की जाती है।
जोधइया बाई का नाम पद्मश्री आवार्ड के लिए किया नामांकित
जोधइया बाई का नाम पद्मश्री आवार्ड के लिए किया नामांकितAfsar Khan

उमरिया, मध्य प्रदेश। जिले की 70 वर्षीय बैगा आदिवासी पेटिंग कलाकार जोधइया बाई का नाम जिला प्रशासन द्वारा पद्म श्री अवार्ड के लिए नामांकित किया गया है। जोधइया बाई की ख्याति बैगा जन जाति की ट्रेडीशनल पेंटर के रूप में है। उनके द्वारा बनाई गई पेंटिंग राज्य स्तर, राष्ट्रीय स्तर तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित होने वाले आयोजनों में प्रदर्शित की जाती हैं। वर्ष 2014 में आदिवासी संग्राहलय भोपाल में आयोजित कार्यक्रम में सहभागिता, वर्ष 2015 में भारत भवन भोपाल मे आयोजित कार्यक्रम में सहभागिता, वर्ष 2020 में एलियांस फ्रांस में पेटिंग्स का प्रदर्शन, वर्ष 2017 में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्राहलय भोपाल द्वारा केरल में आयोजित कार्यक्रम में सहभागिता, वर्ष 2018 में शांति निकेतन पश्चिम बंगाल मेे पेटिंग्स का प्रदर्शन, वर्ष 2020 में आईएमए फाउण्डेशन लंदन द्वारा बिहार संग्राहलय पटना में सहभागिता एवं सम्मान तथा प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा वर्ष 2016 में उमरिया मे आयोजित विंन्ध्य मैकल उत्सव उमरिया में सम्मानित किया गया। इसी तरह इनका राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय परंपरागत आर्ट गैलरी के आयोजन में मिलान इटली में फ्रांस में पेरिस शहर मे आयोजित आर्ट गैलरी में तथा इंग्लैण्ड, अमेरिका एवं जापान आदि देशों में इनके द्वारा बनाई गई बैगा जन जाति की परंपरागत पेटिंग्स की प्रदर्शनी लग चुकी है।

विदेशियों द्वारा खूब सराहा :

जोधइया बाई द्वारा विगत 10 दस वर्षो में तैयार की गई पेंटिंग्स के विषय पुरानी भारतीय पंरपरा में देवलोक की परिकल्पना, भगवान शिव तथा बाघ पर आधारित पेंटिंग्स जिसमें पर्यावरण एवं वन्य जीव के महत्व को प्रदर्शित किया जाता है। इसके साथ ही बैगा जन जाति की संस्कृति पर अधारित पेंटिंग्स विदेशियों द्वारा खूब सराही जाती है। जोधइया बाई नई पीढ़ी के लिए रोल माडल बन चुकी हैं। इस आयु में भी वे पूरी सक्रियता के साथ सहभागिता निभाती है। उनकी चित्रकारी को उनके गुरू आशीष स्वामी ने तराशनें का काम किया।

लकड़ियां बीनकर जीविकोपार्जन :

जोधइया बाई का जन्म 1 जनवरी 1950 को लोरहा ग्राम में हुआ था, जो बैगा आदिवासी बाहुल्य ग्राम है। जोधइया बाई का जीवन संकटों से गुजरा है । जब वह मात्र एक वर्ष की थी तो उनके माता पिता का देहांत हो गया। जिसके कारण न तो वह स्कूल जा सकी और न ही अपने बचपन का आनंद उठा सकी। बहुत कम उम्र में ही आजीविका के लिए उन्हें मजदूरी बकरी चरानें किसानों के खेतों में मजदूरी करनें तथा जंगलो से लकड़ियां बीनकर तथा उन्हें बेचकर जीविकोपार्जन का साधन बनाया। पति की कम उम्र में ही मृत्यु हो जाने पर अपने तीन बच्चों के पालन पोषण की जवाबदारी उन पर आ गई। जोधइया बाई ने गीता के उपदेश का अनुशरण करते हुए कर्म करों फल की चिंता मत करों को अपने जीवन में अपनाया।

सीखने सिखाने की प्रवृत्ति :

50 वर्ष की आयु में उन्होंने शांति निकेतन प्रशिक्षित कलाकार आशीष स्वामी के मार्गदर्शन पेंटिंग्स में पहला कदम रखा। उन्होंने अपनी कला की शुरूआत बैगा जन जाति की पेटिंग्स बनानें से की। धीरे धीरे उनकी पेटिंग्स में निखार आता गया, अब उनके द्वारा तैयार पेंटिंग्स प्रदेश , देश एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित होने वाले कार्यक्रमों में भेजी जाती है। सहज और सरल स्वभाव होने तथा सीखने सिखाने की प्रवृत्ति एवं सबके सहयोग करने की भावना के कारण उनका अपने समाज में ही नहीं बरन पूरे जिले तथा प्रदेश स्तर पर किया जाता है।

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