विदिशा: कालादेव में अनूठे ढंग से दशहरा मनाए जाने की परंपरा

लटेरी, विदिशा: कालादेव गांव में हर दशहरे पर एक ऐसी घटना होती है, जिसे चमत्कार कहा जा सकता हैं। इस गांव में रावण की एक विशाल प्रतिमा भी स्थित है, यहां परम्परागत रूप में राम-रावण युद्ध होता है।
Kaladev Dussehra
Kaladev DussehraPriyanka Sahu -RE

राज एक्‍सप्रेस। मध्य प्रदेश के कालादेव में अनोखा दशहरा (Kaladev Dussehra) मनाया जाता है। यहां दशानन रावण को जलाया नहीं जाता, बल्कि पूजा जाता है। विदिशा जिले की लटेरी तहसील में स्थित ग्राम कालादेव गांव में हर दशहरे पर एक ऐसी घटना होती है, जिसे चमत्कार ही कहा जा सकता हैं। इस गांव में रावण की एक विशाल काय प्रतिमा स्थित है। इसके सामने एक ध्वज गाड़ दिया जाता है, यह ध्वजा राम तथा रावण के युद्ध का प्रतीक होती है।

इस युद्ध के दौरान एक तरफ कालादेव के लोग रामदल के रूप में आगे बढ़ते हुए इस ध्वजा को छूने का प्रयास करते हैं, तो वहीं दूसरी ओर रावण दल के लोग उन पर गोफन से पत्थरों की बरसात करते है, लेकिन चमत्कार की बात यह कि, गोफन से निकले यह पत्थर रामादल के लोगों को नहीं लगते। इससे भी बड़ी बात यह है कि, यदि कोई व्यक्ति कालादेव का निवासी न हो और रामादल में शामिल हो जाऐ, तो उसे गोफन से फैंंके हुऐ पत्थर लग जाते हैं, लेकिन कालादेव गांव के किसी भी व्यक्ति को यह पत्थर नहीं लगते, बल्कि मैदान से अपनी दिशा बदलकर निकल जाते हैं। मध्य प्रदेश के कालादेव मेंं इस तरह के दशहरे की यह परम्परा कब से चली आ रही है, इसके विषय में कोई नहीं जानता।

भोपाल से 150 किमी की दूरी :

भोपाल से करीब 150 किमी दूर बैरसिया, महानीम चौराहा, लटेरी और आनंदपुर होते हुए कालादेव पहुंचा जा सकता है। आनंदपुर से इस गांव की दूरी करीब 15 किलो मीटर है। यहां दशहरे पर अनूठा आयोजन होता है। मैदान में रावण की विशालकाय प्रतिमा स्थित है, जिसे गांव के लोगों द्वारा सजाया जाता है। इस आयोजन को देखने के लिये गुना, विदिशा, भोपाल,राजगढ़, ग्वालियर, इन्दोर सहित यूपी तथा राजस्थान के लोग पहुंचते हैं।

रावण की विशालकाय प्रतिमा
रावण की विशालकाय प्रतिमा Amit raikwar

कालादेव अपने अनूठे दशहरे के लिए जाना जाता है :

जिला मुख्यालय से करीब 120 किमी दूर लटेरी ब्लॉक का ग्राम कालादेव अपने अनूठे दशहरे के लिए जाना जाता है। यहां दशहरे पर राम का ध्वज उठाऐ जाने वाली राम की सेना पर रावण की सेना द्वारा गोफन से पत्थरों की बौछार की जाती है। मान्यता यह है कि, पत्थरों की इस बौछार में रामादल का कोई भी व्यक्ति घायल नहीं होता। सदियों पुरानी इस परंपरा में रावण की सेना का प्रतिनिधित्व आसपास के आदिवासी और बंजारा समाज के लोग करते हैं।

कहते हैं, यहां अच्छे-अच्छे निशानेबाजों की एक नही चलती, उड़ती हुई चिड़िया को गोफन से मार गिराने वाले निशानेबाज भी कालादेव में असहाय नजर आते हैं। यहां बंदूक से भी तेज निशाना लगाने वाले भील तथा बंजारा समाज के लोग रावण की सेना बनते हैं तथा ग्राम कालादेव के निवासी राम की सेना बनते हैं, इस युद्ध के दौरान रावण की सेना रामा दल की सेना पर गोफन से पत्थर मारती है, जो रामा दल के समाने जाकर वो पत्थर स्तह: अपनी दिशा बदल देता है।

होता है रामलीला का मंचन :

उक्त आयोजन के प्रारम्भ होने के पहले ही रावण की प्रतिमा के पास आदिवासियों द्वारा पत्थरों का ढेर लगाकर अपनी गोफन तैयार कर ली जाती हैं। पत्थरों के इस हमले में रामादल का कोई भी व्यक्ति घायल नही होता और वे राम की जय जयकार कर अपने स्थान पर पहुंच जाते हैं। रामलीला के कलाकारों द्वारा राम-रावण की लीला का मंचन किया जाता है। इस पूरे आयोजन में हजारों की संख्या में लोग शामिल होते हैं।

विजय के बाद एक-दूसरे को दशहरा की देते हैं बधाई :

भारत में दशहरा मनाने की लगभग एक जैसी परम्परा है, इसमें बुराईयों के प्रतीक रावण का दहन किया जाता है, लेकिन कालादेव में अनूठे ढंग से यह त्यौहार मनाने की परंपरा है। इस गांव में रावण की एक विशाल स्थाई प्रतिमा दशहरा मैदान में स्थित है, जिसके समक्ष राम और रावण के दलो में युद्ध होता है। राम दल के विजयी होने पर हजारों की संख्या में उपस्थित लोग जीत का जश्र मनाते है और एक दूसरे को दशहरा की बधाई देते है।

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