खाचरौद: भू-माफियाओं का कारनामा हुआ उजागर

खाचरौद, मध्य प्रदेश: भू-माफियाओं ने उच्च न्यायालय इंदौर को गुमराह कर शासकीय गोचर भूमि पर निर्माण के लिये ले लिया स्टे।
भू- माफियाओ का कारनामा हुआ उजागर
भू- माफियाओ का कारनामा हुआ उजागरसांकेतिक चित्र

खाचरौद, मध्य प्रदेश। मध्यप्रदेश उज्जैन जिले की खाचरौद तहसील में भू-माफियाओं के जंगलराज पर कोई लगाम नही हैं। भू-माफियाओं को आखिर इतना लंबा कानूनी ज्ञान कैसे है ये तो गर्भ में छुपा है, लेकिन सरकारी जमीन हड़पने वाले भू-माफियाओं को लेकर दिन प्रतिदिन नए खुलासे हो रहे हैं। खाचरौद अंचल में राजनीति संरक्षण के चलते मनमानी चरम पर है रसूखदार नेताओं के संरक्षण में दलाल सरकारी जमीनों को ओने पोने दाम में खरीदकर करोड़ों कमाने में जुटे हैं, वहीं धीरे-धीरे इनके रचित कारनामों की गठरी भी खुलती दिखाई दे रही हैं। राजनीति दबाव में जिम्मेदार जनता के सेवक भले ही उक्त कारनामों से अंजान हो लेकिन ऐसे लोगों के चंगुल से शासकीय भूमियों को मुक्त कराने वाले सामाजिक लोगों ने पूरी तरह से कमर कस ली हैं। जब भी माफियाराज की पूरी कहानी खुलेगी तो निश्चित ही चिंगारी जनता के सेवकों को भी अपनी जद में लेगी क्योंकि समय रहते शिकायत मिलने पर जनता के सेवकों का चुप रहना भी संदेहास्पद है। फिलहाल तो ये आग ऐसी लगी है जिसके धुएं से ही भू माफियाओं में हड़कंप मच गया है अभी तो आग और भड़केगी क्योंकि इस बार उच्च न्यायालय इंदौर को गुमराह करने का है।

नागदा रोड स्थित करोड़ों रूपये की शासकीय गोचर भूमि को पहले तो भू-माफियाओं ने जिम्मेदारों से साठगांठ करके नक्शे में हेराफेरी कर अपने नाम दर्ज करवा लिया। इस फर्जीवाड़े की शिकायत सामाजिक कार्यकर्ता ने वर्ष 2016 में सक्षम अधिकारी को की थी। शिकायत पर वर्ष 2018 में इस मामले का खुलासा हुआ था और सक्षम अधिकारी ने जमीन के सीमांकन के आदेश पारित किये थे लेकिन, तहसील के जिम्मेदारों ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों के आदेश का पालन नहीं किया। पुनः भू- माफियाओं ने तहसील में साठगांठ करके इस मामले को ठंडे बस्ते में डलवा दिया और वर्ष 2019 में शासकीय गोचर भूमि पर निर्माण शुरू कर दिया तब तत्कालीन तहसीलदार ने नागदा रोड निवासियों और शिकायत कर्ता की शिकायत को संज्ञान में लेकर संबंधित भूमि पर होने वाले निर्माण पर रोक लगाई थी। तहसील मुख्यालय पर मामला बिगड़ते देख भू- माफिया उच्च न्यायालय की शरण मे पहुँचा, जहाँ भू-माफियाओं की अर्जी को अस्वीकार कर दी गई थी।

इसी मामले मे कुछ महीनों बाद निर्माण स्टे लेने के लिये तथ्यों को छुपाकर उच्च न्यायालय में पुनः अर्जी दाख़िल की गई थी। जब प्रकरण की छानबीन की गई तो ये बात निकलकर सामने आई कि उच्च न्यायालय में जब एक बार अर्जी खारिज हुई, तो कुछ महीनों बाद पुनः बल देकर माननीय उच्च न्यायालय से तथ्य छुपाकर गुमराह कर शासकीय जमीन पर निर्माण हेतु स्टे हासिल कर लिया हैं। भू-माफियाओं ने अपने जुगाड़ी सिस्टम के चलते माननीय उच्चन्यायालय से स्वयं को अग्रणी साबित किया और अपनी स्वार्थ सिद्धि के खातिर उच्च न्यायालय को गुमराह कर अपने कार्य में सिद्धि प्राप्त की। अब इस पूरे मामले में उच्च स्तर पर शिकायत तो हो गई हैं, वहीं इस मामले कि जांच भी शुरू हो चुकी हैं संकेत मिले हैं कि उच्च न्यायालय को गुमराह करने वालो के खिलाफ कड़ी कार्रवाई हो सकती हैं।

फिलहाल तो उक्त खबर भू-माफियाओं के लिये सिरदर्द बन चुकी हैं। इससे बुरी खबर यह भी हैं कि उक्त शासकीय जमीन पर प्लाट बिकवाने वाले दलाल लोग भी धोखेबाज़ी की जद में है। जिन्होंने पहले शासकीय भूमि हड़पने वालों से मिलकर जमकर माझा सुता और अब जब सजा भुगतने की बारी आई तो चौराहों पर ये खबर फैलाई जा रही हैं कि हमारे साथ तो धोखाधड़ी हुई हैं हमे तो जानकारी ही नही की भूमि शासकीय हैं जबकि ये मामला विगत दो वर्षों से मीडिया में छाया हुआ हैं और लगातार शिकायत भी जारी हैं भू-माफियाओं के साथ मिलकर जमीन बिकवाने वाले दलालो को भी अच्छी तरह से जानकारी थी लेकिन सरकारी जमीन हड़पकर शाम दाम दंड की नीति तो उच्च न्यायालय में हो गई है फेल यहाँ भी बलि का बकरा वही बनेगा जो शासकीय जमीन बेच चुका है। दलाल अपनी साख को बचाने के लिये भू माफियाओ के इर्द गिर्द चक्कर काट रहे है जो हर संभव प्रयास में है कि अब कैसे बचा जाए। नगर के प्रतिष्ठित वह लोग भी अब सावधान हो गए है जो उच्च किस्म के सफेदपोश बहरूपिये नेताओं के चमकदार दल्लो की जद में फसकर खाचरौद के नागदा रोड पर लगी शासकीय भूमि पर घर दप्तर बनाने का सपना देख रहे थे निश्चित ही जनहित के मुद्दे पर जो आवाज उठी हैं उसके सार्थक परिणामो से भू-माफियाओं में हड़कंप मचा हुआ जहाँ एक और करोड़ो रूपये डूबने के आसार दिखाई दे रहे हैं, वहीं दूसरी और आम जनता के जनसेवकों को दिया गया स्वेच्छा अनुदान भी वापस मिलना मुश्किल ही हैं।

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