टीकमगढ़ महाराज की देन है, 'हिंदी साहित्य' में सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार

हिंदी को बढ़ावा देने में बुंदेलखंड का इतिहास गौरवपूर्ण है, लेकिन इस गौरवगाथा को बहुत कम लोग ही जानते हैं। हिंदी साहित्य में राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कार की शुरुआत टीकमगढ़ के महाराज ने वर्ष 1935 में की।
महाराज की देन है हिंदी साहित्य में सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार
महाराज की देन है हिंदी साहित्य में सर्वश्रेष्ठ पुरस्कारAnil Tiwari

राज एक्सप्रेस। हिंदी को बढ़ावा देने में बुंदेलखंड का इतिहास गौरवपूर्ण है, लेकिन इस गौरवगाथा को बहुत कम लोग ही जानते हैं। हिंदी साहित्य में राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कार की शुरूआत टीकमगढ़ के महाराज ने वर्ष 1935 में की थी। 'महावीर प्रसाद द्विवेदी' की एक पुस्तक को लेकर साहित्य समारोह का आयोजन इलाहाबाद में किया गया था। साहित्य के प्रति योगदान के कारण टीकमगढ़ महाराज ''वीर सिंह जू देव'' कार्यक्रम के मुख्य अतिथि बनाए गए थे। यहां महाराज को पता चला कि, देश में साहित्यकारों के लिए 1100 रुपए से अधिक का कोई पुरस्कार नहीं है। हिंदी साहित्य में सवश्रेष्ठ योगदान के लिए मंगला प्रसाद पारितोषिक पुरस्कार बनारस में दिया जाता था। इसके अलावा शौर्य पुरस्कार भी मिलता था।

अगले ही वर्ष महाराज ने हिंदी साहित्य में देश के सर्वश्रेष्ठ देव पुरस्कार की शुरूआत कर दी। 1935 में पहला देव पुरस्कार दुलारे लाल भार्गव लखनऊ को कुंडेश्वर में आयोजित समारोह के दौरान दिया गया। देव पुरस्कार संक्षिप्त नाम था, पूरा नाम महाराज वीर सिंह जू देव प्रथम था। इसके बाद प्रतिवर्ष पुरस्कार कुंडेश्वर से ही बसंतोत्सव मेले में प्रदान किया जाता था। टीकमगढ़ महाराज वीरसिंह जू देव द्वारा देव पुरस्कार के साथ 2000 रुपए भेंट किए जाते थे।

1964 से अखिल भारतीय हुआ पुरस्कार :

दूसरा देव पुरस्कार 1936 में रामकुमार वर्मा इलाहाबाद को मिला था, लेकिन वह पुरस्कार राशि को उठा नहीं पाए थे। दरअसल, महाराज ने पुरस्कार स्वरूप चांदी के थाल में चांदी के दो हजार सिक्के भेंट किए, लेकिन इकहरा शरीर होने के कारण रामकुमार पुरस्कार ग्रहण करते ही झुक गए थे। पुरस्कार राशि को संभालने के लिए उन्हें अन्य लोगों को सहारा लेना पड़ा था। महाराज के बाद पुरस्कार विंध्यप्रदेश शासन ने दिया। वर्ष 1964 से मध्य प्रदेश शासन द्वारा महाराज की परंपरा का निर्वहन किया जा रहा है। जिसके बाद से अखिल भारतीय स्तर पर महाराज वीर सिंह जू देव पुरस्कार दिया जा रहा है। दो हजार से शुरूआत के बाद अब पुरस्कार राशि एक लाख रूपए हो गई है।

कुंडेश्वर से दिया जाए देव पुरस्कार :

देव पुरस्कार प्रतिवर्ष देश के अलग-अलग शहरों में समारोह पूर्वक प्रदान किया जाता है। शुरूआत के 81 साल बाद कुण्डेश्वर निवासी साहित्कार गुणसागर शर्मा सत्यार्थी ने महाराज वीर सिंह जू देव पुरस्कार को उद्गम स्थल से जोड़ दिया। उन्हें वर्ष 2016 में हिंदी साहित्य के सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार महाराज वीरसिंह जू देव के लिए चुना गया। दिसंबर 2017 में हरियाणा के राज्यपाल कप्तान सिंह सोलंकी ने गुणसागर सत्यार्थी को पुरस्कार से नवाजा। तभी से देव पुरस्कार प्रतिवर्ष कुंडेश्वर से दिए जाने की मांग की जा रही है।

साहित्यकार गुणसागर सत्यार्थी के अनुसार :

साहित्यकार गुणसागर सत्यार्थी के अनुसार, लता मंगेश्कर पुरस्कार लताजी की जन्मभूमि इंदौर में देते हैं। तानसेन पुरस्कार ग्वालियर से देते हैं। इसलिए महाराज वीर सिंह जू देव पुरस्कार भी संस्कृति विभाग द्वारा प्रतिवर्ष आयोजित कुंडेश्वर महोत्सव में प्रदान किया जाना चाहिए। पूर्व विधायक के. के श्रीवास्तव द्वारा भी पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिखकर कुंडेश्वर महोत्सव में प्रतिवर्ष देव पुरस्कार दिए जाने की मांग की गई थी। कुंडेश्वर मंदिर ट्रस्ट द्वारा भी इस संबंध में संस्कृति विभाग से पत्राचार किया गया, लेकिन अब तक सार्थक परिणाम का इंतजार है।

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