उमरिया : अबूझ पहेली बना महेश, तीन सालों बाद फिर हो गया जिंदा

उमरिया, मध्य प्रदेश : महेश की 7 जून 2014 को हुई थी मौत, 25 अक्टूबर 2016 को महेश फिर आया सामने। शासन की कमियों से खेलते रहे नटवरलाल हरीश व महेश, आखिर तीन वर्षाे की मौत के दौरान कहां था महेश?
अबूझ पहेली बना महेश
अबूझ पहेली बना महेशRaj Express

उमरिया, मध्य प्रदेश। उमरिया जिले के बांधवगढ़ तहसील के उमरिया मुख्यालय में रहने वाले महेश व हरीश नामक दो भाईयों की कहानी किसी फिल्म से कम नहीं है, नाटकीय तरीके से महेश की 2014 में मौत हो गई, मृत्यु प्रमाण पत्र जारी हुआ, फौती में नाम भी कटा, लेकिन तीन सालों बाद वह फिर जिंदा होकर सामने आ गया।

संभाग के उमरिया जिला मुख्यालय से लेकर अनूपपुर जिले के कोतमा नपा क्षेत्र में नाम कमाने वाले महेश दासवानी व हरीश दासवानी नाम के दो सगे भाईयों के कारनामें व उनकी कहानी फिल्म से कमतर नहीं है। वर्ष 2014 में महेश की मौत का प्रमाण पत्र स्थानीय निकाय द्वारा जारी किया जाता है, निकाय ने यह प्रमाण पत्र किस आधार पर जारी किया, जमीनी स्तर पर मौत की पुष्टि किसने की, यह तो जांच का विषय है, लेकिन मजे की बात यह है कि तीन सालों बाद महेश फिर जिंदा होकर सामने आ गया, हैरान होने वाली बात यह है कि महेश की मौत और जिंदा होने के दस्तावेजों में उसके भाई हरीश और मां के साझा हस्ताक्षर मौजूद हैं।

क्या है इस खेल का राज :

इस पूरे मामले के साथ ही आवश्यक दस्तावेजों को संलग्न कर कलेक्टर उमरिया को शिकायत देते हुए जांच की मांग की गई है, शिकायत में यह उल्लेख किया गया है कि 7 जून 2014 को स्थानीय निकाय से महेश की मौत का प्रमाण पत्र जारी हुआ और उसी दिन भू-अभिलेखों में महेश-हरीश और उसकी मां के नाम पर दर्ज साझा नामों में से महेश का नाम विलोपित करने का आवेदन दिया गया, बिना जांच के नाम विलोपित हो गया और फिर तीन वर्ष बाद 25 अक्टूबर 2016 को पुन: हरीश और उसकी मां ने तहसील कार्यालय में आवेदन देकर महेश का नाम राजस्व अभिलेखों में जोड़ऩे का आग्रह किया, जिसके बाद यह नाम जोड़ भी दिया गया।

तीन सालों तक मुर्दा था महेश :

इस मामले में यदि शिकायतकर्ता के द्वारा दिये गये शासकीय दस्तावेजों का अवलोकन किया जाये तो, इन दोनों नटवरलालों के साथ ही पूरा राजस्व व स्थानीय निकाय का अमला भी कटघरे में खड़ा नजर आता है, महेश के भाई हर्ष उर्फ हरीश ने 7 जून 2014 को हुई महेश पिता नारायण दास दासवानी की मौत के बाद मृत्यु प्रमाण पत्र बनाये जाने हेतु 20 जून 2016 को नगर पालिका में आवेदन दिया था, जिसके बाद स्थानीय निकाय द्वारा महेश का मृत्यु प्रमाण पत्र जिसका अनुक्रमांक नगर पालिका के दस्तावेजों में 86 दर्ज है, हर्ष को जारी किया गया, लेकिन 25 नवम्बर 2016 को कमला दासवानी व महेश दासवानी ने ग्राम छटनकैंप पटवारी हलका नंबर 48 नामांकन पंजीयन क्रमांक 29 के भू-खण्ड में पूर्व में कटवाया गया, महेश का नाम जोड़ने के लिए आवेदन किया, लेकिन आवेदन में पूर्व में जमा किये गये मृत्यु प्रमाण पत्र व खुद से विलोपित कराई गई, नाम की प्रक्रिया को छुपा लिया। सवाल यह उठता है कि इन तीन वर्षाे के दौरान महेश को मुर्दा घोषित करने के पीछे हरीश उर्फ हर्ष की क्या मंशा थी।

सही कौन, कथित भाई या प्रशासन ?

7 जुलाई 2020 को चार पृष्ठो की शिकायत तथा उसके साथ संलग्न 7 दस्तावेजी प्रमाणों की शिकायत जब कलेक्टर उमरिया को हुई और उसके बाद जब यह मामला जांच में आया तो, जांच अधिकारियों को पसीने आ गये। 3 साल तक महेश को मुर्दा बनाने के पीछे दोनों भाईयों की क्या मंशा थी, स्थानीय निकाय सहित राजस्व में बैठे अधिकारियों ने कैसे उनकी मंशा के अनुरूप जिंदा व्यक्ति का न सिर्फ मृत्यु प्रमाण पत्र बना दिया, बल्कि उस आधार पर पटवारी आदि ने फौती बनाकर राजस्व अभिलेखों से उसका नाम हटा दिया, शिकायत में तो सिर्फ राजस्व अभिलेखों में हेराफेरी सामने आई है, कथित नटवरलालों की इतनी बड़ी कहानी रचने के पीछे और क्या-क्या मंशा रही होगी, यह तो, समय के साथ ही सामने आयेगा।

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